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जब भी मार्च आता हैं आंसुओ की बौछार खुद-ब-खुद निकल पड़ती हैं-कुलदीप शर्मा


लेख/विचार:- आज से ठीक दो साल पहले 8 मार्च के दिन हुआ वो मेरे लिए बहुत बड़ा काला दिन कहा जा सकता हैं। जिंदगी के अच्छे लम्हो में अचानक आये बड़े तूफान(दुःख) ने सब कुछ तहस-नहस कर दिया। आज भी उस लम्हे को भुला पाना मेरे व मेरे परिवार के लिए आसान नहीं हैं। जिंदगी की सबसे बड़ी खुशी भगवान हर इंसान को उसके वंश(औलाद) के रूप में देता हैं। लेकिन अगर उसी औलाद को भगवान देकर छीन ले तो क्या गुजरेगी कह नहीं सकते हैं। शायद उस लम्हे व दुःख को शब्दो मे पिरोने के लिए शब्द ही कम पड़ जाते है। अब जरा वो दिल को झकझोर देने वाले लम्हे को भी आपके सामने रख रहे है।

हक़ीक़त बयां बदनसीब पिता की जुबानी.......

पापा मम्मी, डॉक्टर साहब ये बोल क्यों नहीं रहा

अपने बेटे को अपनी आँखों के सामने जिंदगी और मौत से लड़ते देखा और करीबन 30 से 45 मिनट के अंदर-अंदर सारी खुशिया समेट कर अपने साथ ही ले गया ।

वो एक एक पल मेरी जिंदगी का सबसे डरावना पल था । मुझे और मेरे परिवार को ये कभी उम्मीद नहीं थी कि हमारे साथ अगले ही पल जो होने वाला है वो हमे इतना बड़ा सदमा देने वाली है कि परिवार के एक-एक सदस्य को सम्भाल पाना शायद बहुत मुश्किल हो जाएगा ।

भगवान ने भी इतना बड़ा खेल खेला कि हम कुछ समझ भी नहीं पाये । अचानक ही देकर छीन भी लिया। 
हर तरफ सन्नाटा छा गया । सिवाए रोने और बिलखने के शिवा कुछ नहीं हो रहा था , मानो ऐसा लग रहा था कि जिंदगी में सिर्फ रोना ही होता है कोई यहां हंसता या मुस्कराता तो है ही नहीं ।

मेरे समझ में नहीं आ रहा था मैं क्या करूँ, खुद को इतना सम्भालने के बावजूद भी आंसू निकल रहे थे और दिल बार बार बाहर आने को था ।

मुझे सबसे ज्यादा चिंता मेरी पत्नी की थी जो इतनी बदनसीब थी कि अपने मासूम बेटे का मुँह भी नहीं देख पायी थी । मेरे समझ में नहीं आ रहा था कि एक "माँ" को किस लहजे या शब्दों में समझाया जाए ताकि उसको सदमा ना लगे । पूरा परिवार सन्न था मेरे भी आंसू रुक रुक कर किसी ना किसी तरह से बाहर निकल ही जाते थे । मैं एक मेरी पत्नी को तो समझा सकता था लेकिन एक "माँ" को कैसे समझा पाउँगा समझ नहीं आ रहा था । क्यूँ कि पत्नी का नाम सुनते ही आँखों से आंसू छलक रहे थे । बार-बार उस पिता की आत्मा रोते-रोते ये ही कह रही थी कि हे भगवान ऐसा दर्द और दुःख किसी को ना देना । एक बार तो उस बदनसीब पिता को लगा कि तुम अब "ज़ी" कर क्या करोगे लेकिन अगले ही पल "माँ, पापा, पत्नी, बेटे " का चेहरा याद किया तो महसूस हुआ तुम भी तो अपने "माँ-बाप" के इकलौते पुत्र हो । तुम्हे अगर इतना झटका लगा है तो तुम्हारे "माँ-बाप" को कितना झटका लगेगा तुम्हारी मौत पर , वो तो इस सदमे को झेल पाएंगे या नहीं शायद ये भी वो पिता नहीं जान पा रहा था।

फिर मुझे अपनी इस "निडरता" का अहसास हुआ और अपने आपमें हौंसला भरके अपनी पत्नी से मिला तो वो मुझ से अपने बच्चे के बारे में पूछने लगी तो मेरा दिल घबरा गया, आवाज लड़खड़ाने लगी और आँख से आंसू निकलते देर ना लगी।

बस फिर क्या था उसके सवाल तेज़ होने लगे और मानो उसकी साँसे थम सी रह रही थी।
उसकी इस हालत को देख मेरा परिवार और ज्यादा सदमे में आ गया। क्यूँ कि अक्सर सुना था कि डिलीवरी के समय अगर बच्चा खत्म हो जाए और माँ को सदमा लगे तो शरीर का सन्तुलन बिगड़ सकता है और माँ की भी मृत्यु हो सकती है।
 बदकिस्मत "माँ" ने हौंसला छोड़ दिया और उसके आँख से आंसू फिर से बहने लगे और रोने की आवाज ने चारो तरफ गूंज उठा दी। हर तरफ बस ये ही था कि ऐसा क्या हुआ कि इतनी रोने की आवाज आ रही थी।

आगे की कहानी बदनसीब पिता बता नहीं सकता क्यूँ कि उन्होंने कहा कि मुझमे इतनी हिम्मत नहीं है ना ही मेरी कलम में इतनी हिम्मत कि मैं आगे कुछ और लिख भी पाऊँ ।
आज भी मेरी पत्नी की आँखों से आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे है लेकिन उसकी भी हिम्मत और हौंसले की दाग देना चाहूँगा।

क्यूँ कि वो अकेले में खूब रोती है लेकिन जब हम उसके सामने आते है तो अपने आँसु छुपा लेती है और कहती है आपकी तो बैठक थी ना आप जाओ मुझे कुछ नहीं हुआ है मैं ठीक हूँ।
आपने जो कार्य किसी की भलाई के लिए चुना है वो पूरा करना है।
अब क्या करता उसकी बातो का कोई जवाब नहीं था मेरे पास और आँख से एक बार फिर आंसुओ का सेलाब सा बहने लगा ।
जिस पिता ने ठीक अपने लड़के की मौत के बाद अगले ही दिन अपने ही बच्चे की शान्ति और सुकून के लिए हवन करवाये तो उस समय उसकी आत्मा कितनी रो रही होगी।

सोचो क्या बीती होगी उस पिता पर जो अपने ही बच्चे की आत्मा की शान्ति के लिए हवन करवा रहा हो ।

आज फिर सुबह थोड़ी बहुत नींद आने के बाद जब उठा और अपनी पत्नी की तरफ देखा तो उसका एक ही सवाल था आज तो "पत्रकारो" की जो बैठक रखी थी उसमे जाना नहीं क्या ?

अब आप ही बताओ इस महान पत्नी और माँ को कितना और कैसे सम्मान दूँ ।

जिसको हमे हौंसला बढ़ाना चाहिए था वो हमे समझा रही थी ।
लेकिन मुझे पता है कि वो चुपके-चुपके कितना रोती है क्यूँ कि हम तो उसको ये भी नहीं कह सकते की तुम क्यूँ रोती हो
हमे पता है इतना कहते ही वो रो देगी । हम उसकी हर बात का ध्यान रखते है ।उसकी डॉक्टरी दवाईया चल रही है हर रोज़ चेकअप करवाना पड़ रहा है । फिर भी इतना हौंसला ।

भगवान से दुआ है सातो क्या अगर हज़ारो जन्म भी तुम मुझे इंसान के रूप में देना तो सिर्फ और सिर्फ इस महान पत्नी को ही मेरी पत्नी के रूप में देना ।

बस आगे क्या लिखूँ मेरे खुद के समझ में नहीं आ रहा है, आँख में आँसू निकल रहे है और दिल बहुत डरा हुआ है ।

वो बदनसीब पिता रिपोर्ट एक्सक्लूसिव सम्पादक व स्वतन्त्र लेखक "कुलदीप शर्मा" हैं। 
एक बदनसीब पिता जिसने अपने ही बच्चे को अपनी आँखों के सामने जिंदगी और मौत से लड़ते देखा तो जरूर लेकिन कुछ भी नहीं कर पाया ।

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