शिकायत करने पर चिकित्सा विभाग की टीम करती है जांच
मनमर्जी की फीस के चलते मरीजो को होती परेसानी
हनुमानगढ़।(कुलदीप शर्मा) कस्बे में निजी लेबोरेट्री का संचालन किया जा रहा है। यहां-वहां गली-गली में बड़ी संख्या में खुले लेबोरेट्री के संचालन से मरीजो को भी खासा परेसानी का सामना करना पड़ रहा है। जानकारो की माने तो इन लेबोरेट्रीयो में एक-दूसरे के प्रति प्रतिस्पर्धा का माहौल बना रहता है जिसके चलते अक्सर बीमारियों से ग्रसित रहने वाले मरीजो को भारी मुसीबत का सामना करना पड़ता है। आये दिन मरीजो के साथ कुछ ना कुछ घटित भी होता रहता है लेकिन मरीज अपनी आवाज को आगे तक लाने में असमर्थ होने के चलते बात वहीं दबी की दबी रह जाती है। सूत्रों की माने तो ज्यादातर लेबोरेट्री के पास किसी प्रकार का कोई प्रमाण पत्र भी नहीं होता है और ना ही कोई डिग्री धारक जो किसी व्यक्ति की लैब जांच करने में योग्यता रखता हो! लेकिन फिर भी बिना किसी रोक-टोक के ये कार्य बड़े ही धड़ले से किये जा रहे है।
शिकायत पर करती है चिकित्सा विभाग कार्रवाई!
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कस्बे में ऐसे भी कई मामले सूत्रों से सामने आए है जिसमे कई रोगियों को दो अलग-अलग लैब से अलग-अलग ही बीमारियो की जांच रिपोर्ट थमाई जा रही है। इससे सेहत के साथ-साथ मरीजों को धन का भी नुकसान हो रहा है। बड़ी बात यह है कि मानदंडों की पूर्ति करवाने, तकनीशियन के डिग्री डिप्लोमा, लैब के पंजीकरण, उनकी संख्या, जांच उपकरण आदि का रिकार्ड रखने की यहां कोई व्यवस्था नही है। हांलाकि शिकायत होने पर चिकित्सा विभाग की टीम भले ही लैब की जांच जरूर करती है परन्तु बिना किसी शिकायत के जांच नहीं करने की वजह से इनका हौंसला सातवे आसमान पर पहुंच गया है जिसके चलते हर रोज एक ना एक नई लोबोरेट्री बाजार में खुलती जा रही है। ऐसा नहीं है कि इसकी कोई जानकारी चिकित्सा विभाग को नहीं है लेकिन फिर भी चिकित्सा विभाग अपने स्तर पर कभी इस गम्भीर मुद्दे पर बैठक या निरक्षण नहीं करता है। अब लापरवाही नहीं कहेंगे तो ओर क्या कहेंगे?
बिना रजिस्ट्रेशन ही खोल लेते है लैब
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जानकारी के अनुसार कस्बे में दर्जनो ऐसी लैब है, जो पूर्णत: प्रशिक्षित व पंजीकृत तकनीशियन के बिना ही संचालित की जा रही है। इनमें से जानकारी के अनुसार अधिकांश कई तो साल या छह महीने किसी लैब में थोड़ा बहुत कामकाज सीखते है और उसके बाद खुद की लैब खोल लेते है। ऐसे लैब से जो जांच रिपोर्ट मिलेगी, उसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। इस कारण अधिकतर निजी चिकित्सक तो मरीजो को जांच के लिए ऐसी लैब पर भेजते है। हालांकि वे ऐसा अपने फायदे के लिए करते है। क्योंकि फर्जी लैब पर उनका कमीशन होता है। शहर में निरन्तर खुल रही लेबोरेट्री के जांच-पड़ताल के नाम पर चिकित्सा विभाग भी कुछ करते हुए नज़र नहीं आता है। हालांकि कुछ व्यक्तियों के पास इस प्रकार के लाइसेंस है जिनके बारे में सोचने भर से अजीब ही लगता है!
नहीं है कोई रिकार्ड
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अब जांच करने के लिए टेक्नीशियन तो अलग बात रही जानकारी के अनुसार लैब संचालक जांच के नाम पर मरीज का रिकार्ड भी नहीं रखते है और ना ही मरीज को जांच के नाम पर ली जाने वाली फीस की रसीद दी जाती है। उन्हें जांच के नाम पर सिर्फ जांच रिपोर्ट सौंप दी जाती है बल्कि जो पैसे मरीज ने जांच के नाम से दिए थे वो उन पेसो का कोई हिसाब-किताब नहीं दिया जाता है। जिससे कोई पुख्ता सबूत नहीं होने पर मरीज को शिकायत करने में भी परेशानी आती है। अब देखने वाली बात रहेगी कि आखिर मरीजो को कब तक इन लेबोरेट्री के चंगुल में फसते रहना पड़ेगा।
क्या कहा चिकित्सा विभाग ने
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चिकित्सा विभाग के पास शहर में चल लेबोरेट्री का कोई रिकॉर्ड नहीं है। इनको लाइसेंस भी हमारे द्वारा नहीं दिया जाता है हालांकि शिकायत करने पर चिकित्सा विभाग की टीम एक्ट के तहत निरक्षण की कार्रवाई करती है। अगर कोई शिकायत हो तो हमे निसंकोच कर सकता हैं- अरुण कुमार चमड़िया,जिला चिकित्सा अधिकारी हनुमानगढ़
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