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जयपुर:-खाकी ने अपने सम्मान को भुला मांगी माफी!असामाजिक तत्वों के नही आई रास,मामले को तूल देने का कर रहे हैं प्रयास.......


पत्रकार कमलेश शर्मा
अपने समाज के लिए, अपने धर्म के लिए, अपनी जाति के लिए लड़ना अच्छी बात है | लेकिन अपने शहर मे अफवाओ का बाजार गरम कर अराजकता का माहौल खड़ा करना कहा कि बात है, चंद अराजकता फैलाने वाले व्यक्तियों के बहकावे में आकर शहर की शांति के लिए अपने सम्मान की परवाह ना करने वाले पुलिसकर्मी का सम्मान करने के बजाए उसका उपहास करना या उस मामले को तूल देना एक सभ्य नागरिक की पहचान नहीं होती हैं| 

प्राय देखने को मिलता है हर जगह, हर चीज़, हर मामले में  अपवाद जरूर होते हैं | बात करे पुराणो की तो रावण के घर भी अपवाद के रूप में विभीषण था, तो राम के घर भी मंथरा अपवाद के रूप में थी | और आज भी इस तरह के अपवाद हमारे इर्द गिर्द है | हाल ही में खौ नागोरियन से  कानोता ईलाके मे निकाली गई भगवान परशुराम की शोभायात्रा के बाद हुए मामले में थानाधिकारी भी एक अपवाद ही रहे जिन्होने शहर की शांति व्यवस्था के लिए अपने सम्मान की परवाह नही कि, वही दुसरी और कुछ असामाजिक तत्वों ने इसको तोड मरोड कर जनता के सामने सोशल मीडिया आदि पर पेश कर शहर की शांति को अराजकता मे फैला कर समाज के मंथरा रूपी अपवाद बनने की कोशिश कर रहे है | 

जबकि देखा जाए तो प्राय पुलिस शांति व्यवस्था के लिए बल प्रयोग लेती है, ऐसे में ईस्ट डीसीपी कंवर राष्ट्रदीप के सराहनीय पहल कर माफी मांग कर समाज में खाकी की आमजन के सामने विश्वास की पहचान को बनाने का काम किया है | डीसीपी ईस्ट से हुई मुलाकात मे उन्होने बताया कि  परशुराम जयंती के उपलक्ष्य में 500-600 लोगों का एक जुलूस खोनागोरियान से कानौता क्षेत्र के लिए रवाना हुआ। 

उक्त जुलूस में कुछ लोगों के पास प्रतीकात्मक रूप से फरसे थे किन्तु एक व्यक्ति के पास एयर गन थी जिस पर थानाधिकारी ने ऐतराज किया। थानाधिकारी के ऐतराज के बाद उक्त एयर गन पुलिस को दे दी गई। थोड़ी देर में ही भीड़ में एक अफवाह फैल गई कि थानाधिकारी ने भगवान परशुराम को अपशब्द कहे। देखते ही देखते भीड़ बेहद आक्रोशित हो गई और मारपीट के हालात पैदा हो गए। बिगड़ती हुई स्थति को समझते हुए उसी भीड़ से कुछ लोगों ने थानाधिकारी का बचाव करते हुए उन्हें भीड़ से दूर ले जाने का कार्य किया ‌| थोडी़ देर में ये उग्र भीड़ थाने पहुंची और थानाधिकारी को हटाने और बर्खास्त करने की मांग करने लगी।

 परिस्थितियों को देखते हुए मैं व अन्य अधिकारी मौके पर पहुंचे। भीड़ बेहद आक्रोशित थी और उसे तितर बितर करने का कोई फोर्सफुल तरीका पूरे मामले को और गंभीर रूप दे सकता था। हम सभी ने बातचीत करके स्थति संभालने के प्रयास शुरू किए। थाने के अंदर भीड़ के प्रतिनिधि मंडल से लंबी वार्ता हुई और वे पुलिस पक्ष से संतुष्ट भी हो गये, किंतु जब वे भीड़ से बात करने पहुंचे तो लोगों ने उनकी कोई भी बात मानने से इंकार कर दिया और अपनी मांगों पर अडे रहे।काफी कोशिशों के बाद भी जब स्थितियां नियंत्रण में नहीं आई तो मैंने थाने के गेट पर बैठे लोगों से सीधे संवाद करने का निर्णय लिया। इस बीच थानाधिकारी जो भीड़ द्वारा लगाए जा रहे आरोपों से बेहद आहत थे, ने स्वयं भीड़ से बात करने की मांग रखी जिसे परिस्थितियों को देखते हुए मैंने अनुमति नहीं दी। मेरा भीड़ से संवाद शुरू हुआ और काफी खींचतान के बाद कई लोग पुलिस पक्ष से सहमत होने लगे, यहां मैं यह स्पष्ट करना चाहूंगा कि उन्हें किसी ने डिक्टेट नहीं किया  थानाधिकारी ने लोगों की धार्मिक भावनाओं को समझते हुए पूरी वस्तुस्थिति को स्पष्ट किया। 

उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया कि उन्होंने किसी की धार्मिक भावनाएं आहत करने वाला कोई कार्य नहीं किया है साथ ही उन्होंने बड़प्पन दिखाते हुए माफी भी मांग ली। उनकी यह माफी पूरी तरह से उनका व्यक्तिगत निर्णय था जिसके लिए उन्हें किसी ने विवश अथवा प्रेरित नहीं किया था। उनकी यह माफी पुलिस की अपराधियों से माफी नहीं थी बल्कि सक्षम पुलिस अधिकारी द्वारा आमजन में फैल रही अफवाह पर नियंत्रण लगाने वाली माफी थी। उनकी यह माफी पुलिस की कमजोरी दिखाने वाली नहीं बल्कि एक समझदार पुलिस अधिकारी की समझदारी से मामला संभालने वाली माफी थी। लोगों ने आधी अधूरी जानकारी के आधार पर तरह तरह के आरोप लगाये| डीसीपी की वार्ता के बाद यह तो तय हो गया कि  भीड़ में बहुत से ऐसे लोग भी शामिल हो जाते जो इस तरह के अवसरों पर कानून व्यवस्था की स्थिति बिगाड़ कर पूरे मामले को अलग ही रंग दे देते हैं और ऐसे मौकों को अपने लाभ के लिए इस्तेमाल करते हैं। और ऐसा होता तो इस प्रकरण का प्रभाव केवल  खोनागोरियान तक सीमित नहीं रहता।जिस माफी को लोगों ने आलोचनात्मक दृष्टि से देखा, यदि संपूर्ण परिप्रेक्ष्य में देखें तो वही माफी एक बड़ी अव्यवस्था को रोकने वाली थी।


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