मुंबई(जी.एन.एस) केंद्र की मोदी सरकार ने 19 सितंबर को ही कैबिनेट की बैठक में तीन तलाक बिल पर अध्यादेश को मंजूरी दी थी। पर, इसे लेकर गतिरोध भी जारी है। मुंबई के एक पूर्व पार्षद, एक एनजीओ और एक वकील ने संयुक्त रूप से बॉम्बे हाई कोर्ट में एक याचिका दायर कर एकबार में तीन तलाक को संज्ञेय अपराध बनाने वाले अध्यादेश के प्रावधानों को चुनौती दी है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 19 सितंबर को अध्यादेश पर हस्ताक्षर किया था। इसके अनुसार एकबार में तीन तलाक देने दिए जाने को अवैध और अमान्य बना दिया गया है और ऐसा करने पर पति को तीन वर्ष की सजा होगी।
सरकार ने कानून के दुरुपयोग की आशंकाओं को दूर करने के लिए इसमें कुछ सुरक्षा उपाय शामिल किए हैं जैसे इसमें आरोपी पति के लिए जमानत का प्रावधान किया गया है। पूर्व पार्षद और सामाजिक कार्यकर्ता मसूद अंसारी, गैर सरकारी संगठन ‘राइजिंग वॉयस फाउंडेशन’ और अधिवक्ता देवेंद्र मिश्रा ने हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की जिसमें दावा किया कि अध्यादेश के प्रावधान अवैध, अमान्य, अनुचित और मनमाने हैं।
याचिकाकर्ताओं के वकील तनवीर निजाम ने कहा, अध्यादेश की बनावट दिखाती है कि यह चुनिंदा तरीके से मुस्लिम क्षेत्र के पुरुषों को निशाना बनाता है। अध्यादेश के प्रावधान मुस्लिम पुरुषों के मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन है। याचिका में अध्यादेश के उन धाराओं पर अंतरिम रोक की मांग की गई है जो मुस्लिम पति द्वारा तलाक कहने के कृत्य को अपराध बनाती हैं।
हाई कोर्ट की वेबसाइट के अनुसार, उम्मीद है कि यह याचिका 28 सितंबर को किसी खंडपीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आ सकती है। केंद्र की मोदी सरकार ने तीन तलाक बिल के संसद में अटकने पर इसे लागू कराने के लिए अध्यादेश का रास्ता अपनाया है। यह अध्यादेश 6 महीने तक लागू रहेगा। इस दौरान सरकार को इसे संसद से पारित कराना होगा। सरकार के पास अब इस बिल को पास कराने के लिए शीतकालीन सत्र तक का वक्त है।
Source Report Exclusive
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