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विशेष: राममंदिर के लिए जो किया कांग्रेस ने किया! भाजपा का योगदान शून्य?


नई दिल्ली। चुनाव निकट आते ही राजनीतिक दलों विशेष रूप से भारतीय जनता पार्टी को भगवान राम याद आ जाते हैं। और अयोध्या में भगवान राम के मंदिर के निर्माण की चर्चाएं शुरू हो जाती हैं। इस समय केंद्र और उ.प्र. दोनों जगहों पर भारतीय जनता पार्टी की पूर्ण बहुमत वाली सरकार है। केंद्र में मोदी सरकार के लगभग साढ़े चार साल से ज्यादा का समय बीत चुका है। लेकिन इन सालों में न तो कभी भाजपा ने राम मंदिर की बात की न ही भाजपा समर्थित हिंदू संगठनों चाहे वह आरएसएस, विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल, हिंदू वाहिनी आदि तथाकथित हिंदू संगठनों ने इन सालों में एक बार भी अयोध्या में भगवान राम के मंदिर के निर्माण को लेकर डकार तक नहीं ली। यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सारे गुरूद्वारे, मस्जिद हो आए लेकिन आज तक अयोध्या के पंड़ाल में पड़े भगवान राम के दर्शन करने नहीं गए।
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अब जब चुनाव सर पर दिखाई दे रहा है तो भगवान राम के मंदिर की याद भाजपा और उससे जुड़े हिंदू संगठनों को आ गयी है कि अयोध्या में भगवान राम का मंदिर का निर्माण जल्द से जल्द किया जाना चाहिए। सवाल उठता है कि जिस आरएसएस को भगवान राम की मंदिर की याद आयी है वह भाजपा की पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनने के बाद मोदी पर मंदिर निर्माण के लिए दबाव क्यों नहीं बनाया। सच्चाई यह भी है कि अयोध्या में राम मंदिर को लेकर आज तक भाजपा का कोई विशेष योगदान रहा ही नहीं। राममंदिर का ताला खोलवाने से लेकर विवादित ढांचे को नेस्तानबूत करने तक का योगदान कांग्रेस का रहा है। क्योंकि यदि उस समय के कांग्रेस के तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव नहीं चाहते तो विवादित ढांचे को गिराना संभव नहीं था। उससे पहले कांग्रेस के ही राजीव गांधी ने विवादित ढांचे के बगल शिलान्यास करने का आदेश दिया था। भाजपा सिर्फ मंदिर का मुद्दा राजनीतिक फायदे के लिए करती रही है। राममंदिर के निर्माण के प्रति यदि भाजपा गंभीर होती तो अब तक राममंदिर का निर्माण हो चुका होता।

एक नज़र राम के नाम पर उठे तूफान पर डालते हैं:

6 दिसंबर 1992, एक ऐसा दिन जब कुछ ऐसा हुआ जिसने पूरे देश में हड़कंप मचा दिया। वो दिन जब अयोध्या ‘जय श्री राम’ के नारों से गूंज रहा था और सैकड़ों साल पुराने एक विवादित ढांचे पर चोट करती ठक-ठक की आवाजें हर तरफ सुनाई दे रही थीं। और फिर आया अगला दिन यानी 7 दिसंबर जब यही आवाजें खामोशी में तब्दील हो गईं और देश में आने वाले तूफान का संकेत देने लगीं। देश में सांप्रदायिक दंगे शुरू हो गए। जिसको संभालने में कई दिन लग गया। हम यहां पर आपको बता यह भी बता दें कि बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि का ये विवाद लगभग 492 साल पुराना है।

अयोध्या में रामंदिर को लेकर कब क्या हुआ आइए एक संक्षिप्त नजर डालते हैं-
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1528: बाबर ने यहां एक मस्जिद का निर्माण कराया जिसे बाबरी मस्जिद कहते हैं। हिंदू मान्यता के अनुसार इसी जगह पर भगवान राम का जन्म हुआ था। और बाबर भगवान राम के मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण कराया था।

1853: हिंदुओं का आरोप कि भगवान राम के मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण हुआ। मुद्दे पर हिंदुओं और मुसलमानों के बीच पहली हिंसा हुई।

1859: ब्रिटिश सरकार ने तारों की एक बाड़ खड़ी करके विवादित भूमि के आंतरिक और बाहरी परिसर में मुस्लिमों और हिदुओं को अलग-अलग प्रार्थनाओं की इजाजत दे दी।

1885: मामला पहली बार अदालत में पहुंचा। महंत रघुबर दास ने फैजाबाद अदालत में बाबरी मस्जिद से लगे एक राम मंदिर के निर्माण की इजाजत के लिए अपील दायर की।

23 दिसंबर 1949: करीब 50 हिंदुओं ने मस्जिद के केंद्रीय स्थल पर कथित तौर पर भगवान राम की मूर्ति रख दी। इसके बाद उस स्थान पर हिंदू नियमित रूप से पूजा करने लगे। मुसलमानों ने नमाज पढ़ना बंद कर दिया।

16 जनवरी 1950: गोपाल सिंह विशारद ने फैजाबाद अदालत में एक अपील दायर कर रामलला की पूजा-अर्चना की विशेष इजाजत मांगी।

5 दिसंबर 1950: महंत परमहंस रामचंद्र दास ने हिंदू प्रार्थनाएं जारी रखने और बाबरी मस्जिद में राममूर्ति को रखने के लिए मुकदमा दायर किया। मस्जिद को ‘ढांचा’ नाम दिया गया।

17 दिसंबर 1959: निर्मोही अखाड़ा ने विवादित स्थल हस्तांतरित करने के लिए मुकदमा दायर किया।

18 दिसंबर 1961: उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड ने बाबरी मस्जिद के मालिकाना हक के लिए मुकदमा दायर किया।

1984: विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) ने बाबरी मस्जिद के ताले खोलने और राम जन्मस्थान को स्वतंत्र कराने व एक विशाल मंदिर के निर्माण के लिए अभियान शुरू किया। एक समिति का गठन किया गया।

1 फरवरी 1986: फैजाबाद जिला न्यायाधीश ने विवादित स्थल पर हिदुओं को पूजा की इजाजत दी। ताले दोबारा खोले गए। नाराज मुस्लिमों ने विरोध में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन किया।

जून 1989: भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने वीएचपी को औपचारिक समर्थन देना शुरू करके मंदिर आंदोलन को नया जीवन दे दिया।

1 जुलाई 1989: भगवान रामलला विराजमान नाम से पांचवा मुकदमा दाखिल किया गया।

9 नवंबर 1989: तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार ने बाबरी मस्जिद के नजदीक शिलान्यास की इजाजत दी।

25 सितंबर 1990: बीजेपी अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी ने गुजरात के सोमनाथ से उत्तर प्रदेश के अयोध्या तक रथ यात्रा निकाली, जिसके बाद साम्प्रदायिक दंगे हुए।

नवंबर 1990: आडवाणी को बिहार के समस्तीपुर में गिरफ्तार कर लिया गया। बीजेपी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह की सरकार से समर्थन वापस ले लिया।

अक्टूबर 1991: उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह सरकार ने बाबरी मस्जिद के आस-पास की 2.77 एकड़ भूमि को अपने अधिकार में ले लिया।

6 दिसंबर 1992: हजारों की संख्या में कार सेवकों ने अयोध्या पहुंचकर बाबरी मस्जिद ढहा दिया। इसके बाद सांप्रदायिक दंगे हुए। जल्दबाजी में एक अस्थायी राम मंदिर बनाया गया।

16 दिसंबर 1992: मस्जिद की तोड़-फोड़ की जिम्मेदार स्थितियों की जांच के लिए लिब्रहान आयोग का गठन हुआ।

जनवरी 2002: प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने कार्यालय में एक अयोध्या विभाग शुरू किया, जिसका काम विवाद को सुलझाने के लिए हिंदुओं और मुसलमानों से बातचीत करना था।

अप्रैल 2002: अयोध्या के विवादित स्थल पर मालिकाना हक को लेकर उच्च न्यायालय के तीन जजों की पीठ ने सुनवाई शुरू की।

मार्च-अगस्त 2003: इलाहबाद उच्च न्यायालय के निर्देशों पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने अयोध्या में खुदाई की। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का दावा था कि मस्जिद के नीचे मंदिर के अवशेष होने के प्रमाण मिले हैं। मुस्लिमों में इसे लेकर अलग-अलग मत थे।

सितंबर 2003: एक अदालत ने फैसला दिया कि मस्जिद के विध्वंस को उकसाने वाले सात हिंदू नेताओं को सुनवाई के लिए बुलाया जाए।

जुलाई 2009: लिब्रहान आयोग ने गठन के 17 साल बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अपनी रिपोर्ट सौंपी।

28 सितंबर 2010: सर्वोच्च न्यायालय ने इलाहबाद उच्च न्यायालय को विवादित मामले में फैसला देने से रोकने वाली याचिका खारिज करते हुए फैसले का मार्ग प्रशस्त किया।

30 सितंबर 2010: इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बांटा जिसमें एक हिस्सा राम मंदिर, दूसरा सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़े में जमीन बंटी।

9 मई 2011: सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी।

जुलाई 2016: बाबरी मामले के सबसे उम्रदराज वादी हाशिम अंसारी का निधन।

21 मार्च 2017: सुप्रीम कोर्ट ने आपसी सहमति से विवाद सुलझाने की बात कही।

19 अप्रैल 2017: सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद गिराए जाने के मामले में लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती सहित बीजेपी और आरएसएस के कई नेताओं के खिलाफ आपराधिक केस चलाने का आदेश दिया।

5 दिसंबर 2017: इस विवाद पर से सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हो रही है।

29 अक्टूबर 2018 को भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने अगली तारीख तय करने का समय जनवरी 2019 दिया हुआ है।

यानि राममंदिर के नाम पर सिर्फ राजनीति हो रही है। भाजपा और उसके पाले गए हिंदू संगठन और अन्य राजनीतिक दल सिर्फ राम पर राजनीति कर रहे हैं। मंदिर निर्माण को लेकर कोई भी दल न तो गंभीर है और न हीं कोई पहल करते हुए दिख रहा है।
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