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देश की कानून व्यवस्था के मुंह पर करारा तमाचा! 10 करोड़ में मिली थी गायत्री प्रजापति को जमानत, 5 करोड़ तीन वकीलों को और बाकि के 5 करोड़ लिए थे दो जजों ने!

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आचार्य संदीपन
नयी दिल्ली, फैसले देने वाली जिस कलम को न्याय का अख्तियार हो, फैसला सुनाने वाले जिस जज को भगवान का दर्जा हो और कानून का वही भगवान कागज के टुकड़ों में बिक जाये तो ऐसी कानून व्यवस्था को चिता सजाकर जला देना ही श्रेयकर होता है। गायत्री प्रजापति की घटना यही साबित करती है कि अदालतों में न्याय के नाम पर सिर्फ एक ड्रामा  होता है।


यूपी के म्हाभृष्ट एक पूर्व मंत्री गायत्री प्रजापति को मिली जमानत की जब देश की एक शीर्ष जाँच एजेंसी एवम इलाहाबाद हाईकोर्ट  द्वारा जांच की गयी तो सनसनीखेज खुलासा हुआ। सामने आये तथ्य साबित करते हैं कि गायत्री को मिली जमानत एक साजिश का परिणाम थी , जिसमें एक वरिष्ठ जज शामिल थे और जाँच रिपोर्ट के बाद कोलेजियम द्वारा उनका नाम हाइकोर्ट की पदोन्नती सूची से हटा दिया गया।


इलाहाबाद हाईकोर्ट और आई बी की जाँच में खुलासा हुआ कि प्रजापति की जमानत के खेल में 10 करोड़ रुपयों का लेन देन किया गया। 
इलाहबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस दिलीप बी भोंसले द्वारा कराई गई जाँच में संवेदनशील मामलों की सुनवाई करने वाली अदालतों में जजों की नियुक्ति में तगड़े भ्र्ष्टाचार की बात सामने आयी। इस तरह की अदालतों में बलात्कार और हत्या जैसे संगीन मामले सुने जाते हैं।
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भोसले की रिपोर्ट में जो सनसनीखेज तथ्य सामने आये हैं उनके मुताबिक अतिरिक्त सेशन जज ओपी मिश्रा को उनके रिटायरमेंट से मात्र 3 सप्ताह पहले 7 अप्रैल को ही पोक्सो जज के रूप में तैनाती दी गयी। गायत्री को 25 अप्रैल को जमानत भी ओपी मिश्रा ने ग्रांट कर दी। ओपी मिश्रा की नियुक्ति नियमो के विपरीत की गयी और एक अच्छे तरीके से कार्यरत जज को हटाकर की गयी।


आईबी ने अपनी रिपोर्ट में ओपी मिश्रा की पोक्सो जज के रूप में तैनाती में घूस की बात को मानते हुए प्रजापति की जमानत में 10 करोड़ के लेनदेन पर मुहर लगाई है। बलात्कार के आरोपी गायत्री की जमानत में 5 करोड़ उन 3 वकीलों को दिए गए जो दलाल की भूमिका निभा रहे थे और बाकी के 5 करोड़ पोक्सो जज ओपी मिश्रा और उसकी संवेदनशील मामलों की सुनवाई वेस्ली कोर्ट में नियम विरुद्ध  नियुक्ति करने वाले जिला जज राजेंद्र सिंह को दिए गए।
राजेंद्र सिंह से पहले ही पूछताछ हो चुकी है एवम उनकी हाईकोर्ट में होने वाली पदोन्नति को भी रोक दिया गया है।


अपनी गोपनीय रिपोर्ट में भोंसले ने कहा कि 16 जुलाई 2016 को पोक्सो जज के रूप में लक्ष्मीकांत राठौर की नियुक्ति की गयी थी और राठौर बेहतरीन तरीके से काम कर रहे थे, लेकिन अचानक उन्हें हटाकर उनकी जगह 7 अप्रैल को ओपी मिश्रा को लगाने का कोई औचित्य या उपयुक्त कारण नही था। ओपी मिश्रा की तैनाती रिटायरमेंट से मात्र 3 सप्ताह पहले की गयी।


पूर्व मंत्री गायत्री पर मंत्री रहते सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर दर्ज हुआ था बलात्कार का मुकदमा


अखिलेश के प्रिय मंत्री पर सपा सरकार में ही सुप्रीम कोर्ट की तगड़ी फटकार के बाद यूपी पुलिस ने  17 फरवरी 2017 को रिपोर्ट दर्ज की थी। 15 मार्च को उसे गिरफ्तार किया गया व 24 अप्रैल को उसने जज ओपी मिश्रा की कोर्ट में जमानत की अर्जी दी थी। जज मिश्रा ने जाँच जारी रहने के दौरान की गायत्री को बेल ग्रांट कर दी। आईबी ने अपनी रिपोर्ट में जंहा मिश्रा की नियुक्ति में भ्र्ष्टाचार की बात कंही वंही ओपी मिश्रा की छवि और ईमानदारी को भी संदेहास्पद बताया है।


तीन वकीलों ने ओपी मिश्रा की नियुक्ति की डील कराई फिक्स


जाँच में ये बात भी सामने आयी की ओपी मिश्रा की नियुक्ति की डील 3 वकीलों ने सयुंक्त रूप से कराई और इन 3 वकीलों व जिला जज की मीटिंग ओपी मिश्रा के चैम्बर में गायत्री को जमानत मिलने से 3 या 4 सप्ताह पहले कई बार हुयी।
आखिरी बैठक 24 अप्रैल को हुयी और इसी दिन प्रजापति ने जमानत अर्जी लगा दी। जज, वकील और मुल्जिम के इस गठजोड़ ने यूपी में एक नया सवाल खड़ा कर दिया है कि अब न्याय व्यवस्था किस ओर जा रही है। वंही दूसरा सवाल ये भी है कि ओपी मिश्रा और राजेंद्र सिंह जैसे जजों के कारण क्या पूरी न्याय व्यवस्था पर ऊँगली उठाना उचित होगा?

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