अगले विधानसभा चुनाव के लिए बिछने लगी राजनीतिक चौसर, नेताओं में बढ़ी प्रतिस्पर्धा।
केसरीसिंहपुर (गुरविन्द्र बराड़) सत्ताधारी भाजपा के लिए विधानसभा चुनाव 2018 में टिकट वितरण चुनौती भरा रहेगा। विधानसभा सीटों पर टिकट के लिए कई दिग्गजों में कांटे का दंगल है। चुनाव भले ही अभी दूर है, लेकिन दावेदार अपनी पैठ बनाने व आला नेताओं के सामने यह प्रदर्शन में जुट गए हैं कि उन्हें अवसर मिला तो वे पार्टी को जीत दिलाएंगे। करणपुर सीट पर टिकट को लेकर सर्वाधिक संघर्ष होगा क्योंकि यहां कई प्रभावशाली चेहरे मैदान में हैं। ऐसे में प्रदेश नेतृत्व के लिए किसी एक सर्वमान्य चेहरे का चयन मुश्किल रहेगा। चुनावी बिसात बिछने से पहले ही नेताओं में शह-मात का खेल शुरू हो चुका है।
मौजूदा विधायक मंत्री सुरेन्द्र पाल सिंह टीटी
इस सीट से दो बार चुनाव जीत चुके है और वर्तमान सरकार में मंत्री हैं। इस बार भी प्रबल दावेदारी जता रहे है ।हालांकि पिछले चुनाव में चर्चा आई थी कि ये चुनाव उनका आखिरी है।लेकिन जिस तरह से उनकी सक्रियता है इस बार भी वे मैदान में खुद या अपने पुत्र जिलाउपाध्यक्ष समन दीप सिंह के लिए तैयार नजर आ रहे है। स्वास्थ्य व उम्र टिकट कटने के कारण बन सकते हैं, लेकिन वे खुद को फिट प्रदर्शित करने में जुटे हैं। मंत्री रहते कोई गंभीर आरोप नहीं का फायदा उन्हें फिर से मिल सकता है।
लेकिन पिछले चुनावों में भाजपा की लहर में भी बड़े कम अंतराल में उन्होंने चुनाव में विजय श्री प्राप्त की थी वर्तमान समय की बात की जाएं तो भाजपा के प्रति समीकरण बढ़िया नजर नहीं आ रहे क्योकि सरकार तो विकास के बड़े दावे जनता के सामने पेश कर रही है।लेकिन जमीनी हकीकत पर जनता को कोई खास काम दिखाई नही दे रहे है। करोडो की कमीनपुरा में नई लगी शुगर मिल जो दो साल गन्ना किसानों की कसौटी पर खरी नहीं उतरी गन्ना किसान पूरा सीजन धरने प्रदर्शन करते रहे। नहरी पानी,फसलो के भावों, नोट बन्दी, जी एस टी को लेकर किसान एव व्यापारी वर्ग सरकार से खफा नजर आ रहा है। किसी भी कार्यालय में सरकारी कर्मचारीयो के रिक्त पदों के कारण लोगो को निराश होकर वहा से लौटना पड़ता है। कसबे की बात की जाये तो यहा भाजपा गुटबाजी का शिकार हो चुकी है जिस कारण पालिका चुनावो में भाजपा के पास बहुमत होते हुए भी अपना बोर्ड बनाने में कामयाबी हासिल नही कर पाई जिससे यहा भगवा पार्टी के स्तर में गिरावट आई है। क्योंकि कई गुटो में बंट चुके कार्यकर्ताओं को 180 का टारगेट लेकर चल रहे संगठन के पदाधिकारी ने जोड़ने का काम नही किया जिसका सीधा लाभ विपक्ष को मिलने से नकारा नही जा सकता।
इसी तरह टिकटो की आस में दूसरी पार्टिओ को अल विदा कर आये टिकट न मिलने से पार्टी को भीतरी घात करने से भी गुरेज नही करेंगें।
सत्ता में काबिज होने के कारण भाजपा के दावेदारों की तुलना कांग्रेस से कही ज्यादा है।जिनमे पिछले 20 वर्षो से संगठन में काम कर रहे जिलाउपाध्यक्ष राजन तनेजा जो प्रतिष्ठित व्यापारी होने के साथ साथ ही कुशल राजनैतिज्ञ होने के कारण विधानसभा क्षेत्र में ही नहीं जिले की राजनीति में भी अपना विशेष स्थान रखते है ।
पूर्व जिला अध्यक्ष महेन्द्र सिंह सोढ़ी जो आज तक कोई भी चुनाव नही लड़े लेकिन संगठन में काफी समय से सक्रिय होकर काम करते आ रहे है जिनकी 2013 के विधानसभा के चुनावो में मजबूत दावेदारी मानी जा रही थी अबकि बार वो फिर से टिकट के लिए प्रयास में जुटे हुए है। 2008 के विधानसभा चुनावों में बसपा के उमीदवार के रूप में चुनाव लड़कर भाजपा एवं कॉंग्रेस के प्रत्याशियों को कड़ी टक्कर देकर बाइस हजार के करीब वोट प्राप्त करने वाले महेन्द्र कुमार रस्सेवट भी भाजपा में आने के बाद से टिकट के लिए प्रयास में लगे हुए हैं जो दूसरे दावेदारों के मुकाबले सीदे वोटरों तक जुड़े होने से एक मजबूत दावेदार माने जा रहे हैं। किसान मोर्चे के जिला अध्यक्ष सरदूल सिंह 7 डब्लयू , अगर युवाओं को टिकट देने की बात आती है तो विरासत में मिले राजनीति कैरियर को मंत्री पुत्र समन दीप सिंह भी तगड़े दावेदार है ।
इनके अलावा पूर्व जिला प्रमुख पति हंसराज पूनिया, पूर्व पदमपुर पालिका अध्यक्ष बहादर चन्द नारंग,किसान मोर्चा के पूर्व जिला अध्यक्ष इक़बाल सिंह कंग सहित अन्य कई नए चेहरे सामने आ सकते है।
दूसरी और राज्य में विपक्ष की भूमिका निभा रही कॉंग्रेस के भी चार पांच सक्रिय दावेदार सामने आ रहे जो सरकार के खिलाफ होने वाले धरना प्रदर्शनो के माध्यम से जनता के बीच जाने का कोई भी मौका न गवा कर पार्टी हाई कमान के सामने अपनी मजबूत दावेदारी रख रहे है। इनमे दो बार विधायक रह चुके गुरमीत सिंह कुन्नर सबसे मजबूत दावेदार माने जा रहे है राजनीति के जानकारों का मानना है कि अगर प्रदेश की कमान फिर से कांग्रेस हाई कमान पूर्व मुख्य मंत्री अशोक गहलोत को बागडोर सोपते है तो गुरमीत सिंह कुन्नर की टिकट पक्की मानी जा रही है ।
लेकिन कुन्नर के दोनों चुनावो में उनका साथ देने वाले पदमपुर के पूर्व पालिका अध्यक्ष घनश्याम दास शर्मा,पंचायत समिति के पूर्व प्रधान तेजदीप सिंह संधू उनसे अलग नजर आ रहे है। क्योंकि घनश्याम दास इकबाल सिंह भंडाल के लिए टिकट का जुगाड़ करने में लगे हुए हैं,जबकि तेजदीप सिंह संधू खुद के लिए जोड़तोड़ कर टिकट का प्रयास कर रहे है।इसके अलावा यूरेंद्र सिंह यूरी,डॉक्टर सिकंदर सिंह कंग भी अपनी दावेदारी पिछले विधानसभा चुनावों से रखते आ रहे है। राजनितिक परिवार के सिकंदर कंग का परिवार अर्से से कांग्रेस से जुड़ा हुआ है उनके ताया एक बार मंत्री भी रह चुके है । लेकिन उसके बाद से ही जनाधार खिसका है । यहां तक की पंचायत चुनाव तक भी नहीं जीत पाए ।
क्या है विधानसभा के समीकरण?
चुनावो के पूर्व सभी राजनैतिक पार्टियां टिकट वितरण करने से पहले वहा के जातीय समीकरण को टटोल कर उमीदवारों का चयन करती है श्री करणपुर विधानसभा पंजाबी बाहुल्य क्षेत्र होने के कारण सभी राजनैतिक पार्टिया भी जटसिख उमीदवार को ही प्राथमिकता देती आ रही है । अब तक के हुए चुनावो में अधिकतर विधायक जट सिख समाज के खाते में ही रही है ।
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