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ख़ास: मोदी की चाल? चुनाव के वक्त ही कम होंगे पेट्रोल, डीजल के दाम?


नई दिल्ली। देश में पेट्रोलियम पदार्थों के दामों में विशेष रूप से डीजल और पेट्रोल के दामों में आग लगी हुई है। देश की राजधानी में जहा पेट्रोल के दाम 83 रूपए प्रति लीटर पार कर चुका है वहीं देश की वित्तीय राजधानी कहे जाने वाली मुंबई में पेट्रोल के दाम 91 रूपए प्रति लीटर पार कर चुका है। जिससे जनता की जेब पर रोजाना भारी मार पड़ रही है। लेकिन मोदी सरकार है कि बढ़ते तेल के दामों से जनता को कोई राहत देने के मूड में नहीं दिखाई देती। नरेन्द्र मोदी सरकार अपने कार्यकाल का चौथा साल पूरा कर चुकी है और सरकार का अंतिम साल चल रहा है। लेकिन कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों ने उसके अच्छे दिनों के सपनों को चकनाचूर कर दिया है। बीते चार साल के दौरान जहां कच्चे तेल की कीमतों ने मोदी सरकार की राजस्व के क्षेत्र सबसे ज्यादा मदद की है। अब पेट्रोल और डीजल की लगातार बढ़ती कीमतों से साफ हो गया है कि आम आदमी की जेब पर भारी पड़ने वाली है।
हम बता दें कि 2014 से पहले यानि मोदी सरकार के पहले विश्व में कच्चे तेल की कीमतें 100-120 डॉलर प्रति बैरल हुआ करता था, उस समय देश में पेट्रोल के दाम 75-80 रूपए प्रति लीटर हुआ करता था और डीजल 40 रूपए प्रति लीटर के आस-पास हुआ करता था। मोदी सरकार के कार्यकाल से पहले मनमोहन सिंह सरकार में आम आदमी को महंगाई का मार पड़ रही थी। जहां वैश्विक बाजार में कच्चा तेल शीर्ष स्तर पर बिक रहा था वहीं देश में 2013 के दौरान पेट्रोल-डीजल की कीमतें सरकार का गणित खराब कर रही थीं। पहला महंगे पेट्रोल-डीजल से बड़ती महंगाई और दूसरा महंगे कच्चे तेल से बढ़ता सरकारी खर्च और सरकार का सिमटता राजस्व। मोदी सरकार ने कच्चे तेल की कीमतों में इस फिसलन का फायदा उठाते हुए केन्द्र सरकार ने पेट्रोल-डीजल पर लगने वाली एक्साइड ड्यूटी में बड़ा इजाफा किया। जहां प्रति लीटर पेट्रोल पर 21.50 रुपये एक्साइड ड्यूटी वसूली गई वहीं प्रति लीटर डीजल पर सरकार ने 17.30 रुपये बतौर ड्यूटी वसूला।
इसके चलते केन्द्र सरकार की पेट्रोल-डीजल की बिक्री से कमाई दो गुनी हो गई। जहां वित्त वर्ष 2014 में केन्द्र सरकार को पेट्रोल-डीजल पर टैक्स से कमाई जीडीपी का महज 0.7 फीसदी था वहीं वित्त वर्ष 2017 में दोगुना होकर 1.6 फीसदी हो गई। नतीजा यह कि केन्द्र सरकार के इस फैसले से आम आदमी के लिए पेट्रोल डीजल की कीमतें कम नहीं हो सकीं। दुनिया में कच्चे तेल के दामों में गिरावट आ रही है, मगर देश में पेट्रोलियम पदार्थों के दाम बढ़ रहे हैं। इससे उपभोक्ता की जेब खाली हो रही है और सरकार का खजाना भर रहा है। पिछले आठ महीने में सरकार ने पेट्रोलियम पदार्थों पर लगने वाले टैक्स से 1,50,000 करोड़ रुपये की कमाई की है।
डायरेक्ट्रोरेट जनरल ऑफ सिस्टम्स एंड डाटा मैनेजमेंट की तरफ से उपलब्ध कराए गए आंकड़ों से पता चलता है कि केंद्र सरकार को अप्रैल, 2017 से नवंबर, 2017 की अवधि में कुल 1,50,019.23 करोड़ रुपये की आमदनी हुई है। इसमें सेंट्रल एक्साइज से हुई आमदनी 1,43,896.64 करोड़ रुपये और कस्टम ड्यूटी (इंपोर्ट) से हुई आय 6123.10 करोड़ रुपये है। डायरेक्ट्रोरेट जनरल ऑफ सिस्टम्स एंड डाटा मैनेजमेंट से सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगी गई थी कि वित्तीय वर्ष 2017-18 के पहले 9 महीने में पेट्रोलियम पदार्थों से कुल कितने राजस्व की प्राप्ति हुई है।
आरटीआई आवेदन के जवाब में केवल 8 महीने की जानकारी दी गयी। जिसके मुताबिक, मई महीने में केंद्र सरकार को सबसे ज्यादा राजस्व 20,260 करोड़ रुपये बतौर सेंट्रल एक्साइज ड्यूटी के रूप में मिला, वहीं सबसे ज्यादा कस्टम ड्यूटी के तौर पर जून महीने में 1883 करोड़ रुपये मिले। सबसे कम सेंट्रल एक्साइज ड्यूटी के जरिए 16,952 करोड़ नवंबर में और कस्टम ड्यूटी से अप्रैल माह में 371 करोड़ रुपये का राजस्व मिला।
पेट्रोलियम पदार्थों के खुदरा मूल्य उनके आधार मूल्य पर सीमा शुल्क, उत्पाद शुल्क और मूल्यवर्धित कर यानी वैट को शामिल कर तय किए जाते हैं। पेट्रोल पर 41.38 रुपए लीटर के आधार मूल्य पर ढाई प्रतिशत की दर से सीमा शुल्क लगता है जोकि 1.04 रुपए लीटर बैठता है। इसके ऊपर केन्द्र सरकार 6.35 रुपए लीटर मुख्य सेनवेट शुल्क, छह रुपए लीटर की दर से विशेष अतिरिक्त उत्पाद शुल्क और दो रुपए लीटर की दर से राजमार्ग के लिए जुटाया जाने वाला अतिरिक्त उत्पाद शुल्क वसूलती है। तीन प्रतिशत की दर से शिक्षा उपकर शामिल करने के बाद कुल उत्पाद शुल्क 14.78 रुपए लीटर तक हो जाता है।
कच्चे तेल के दाम में वृद्धि होने पर केन्द्रीय करों यानी उत्पाद शुल्क में कोई वृद्धि नहीं होती है क्योंकि ये शुल्क स्थिर दर के हिसाब से लगाए जाते हैं। लेकिन वैट जो कि दिल्ली में 20 प्रतिशत की दर से लगाया जाता है, वह पेट्रोलियम पदार्थों के दाम बढ़ने के साथ ही बढ़ जाता है। पेट्रोल के दाम बढ़ने से पहले दिल्ली में वैट 10.62 रुपए लीटर था, लेकिन दाम बढ़ने के बाद यह 11.44 रुपए प्रति लीटर हो गया।
डीजल के मामले में दिल्ली में 41.29 रुपए लीटर दाम पर केवल 7.66 रुपए प्रति लीटर विभिन्न कर शामिल हैं। करों के तौर पर इसमें 0.76 रुपए सीमा शुल्क और 2.06 रुपए लीटर की दर से उत्पाद शुल्क है जबकि वैट के रुप में 4.84 रुपए प्रति लीटर का भुगतान करना होता है। डीजल पर मात्र ढाई प्रतिशत सीमा शुल्क और दो रुपए लीटर की दर से सड़क निर्माण के लिए विशेष शुल्क लिया जाता है। इस पर फिलहाल कोई भी केन्द्रीय उत्पाद शुल्क नहीं लिया जाता है।
पिछले लगभग साढ़े चार साल में पेट्रोलिएम पदार्थों पर विभिन्न करों में बेतहाशा वृद्धि की गयी। पेट्रोलियम पदार्थों पर लगाए गए विभिन्न कर से 2014-15 में यह 99,184 करोड़ रुपये थी। जो करों में वृद्धि से 2017-18 में 2,29,019 करोड़ रुपये हो गई है। वहीं राज्यों की VAT से होने वाली कमाई में भी इस दौरान वृद्धि हुई है। सरकार चाहे तो कुछ नीतियों के जरिए बिना टैक्स में कटौती किए पेट्रोल और डीजल की कीमतें कम कर सकती है। पेट्रोल और डीजल के खुदरा मूल्य में लगभग आधा टैक्स होता है।
कच्चे तेल की कीमतों में इस फिसलन का फायदा उठाते हुए केन्द्र सरकार ने पेट्रोल-डीजल पर लगने वाली एक्साइड ड्यूटी में बड़ा इजाफा किया। जहां प्रति लीटर पेट्रोल पर 21.50 रुपये एक्साइड ड्यूटी वसूली गई वहीं प्रति लीटर डीजल पर सरकार ने 17.30 रुपये बतौर ड्यूटी वसूला. इसके चलते केन्द्र सरकार की पेट्रोल-डीजल की बिक्री से कमाई दो गुनी हो गई। जहां वित्त वर्ष 2014 में केन्द्र सरकार को पेट्रोल-डीजल पर टैक्स से कमाई जीडीपी का महज 0.7 फीसदी था वहीं वित्त वर्ष 2017 में दोगुना होकर 1.6 फीसदी हो गई। नतीजा यह कि केन्द्र सरकार के इस फैसले से आम आदमी के लिए पेट्रोल डीजल की कीमतें कम नहीं हो सकीं।
चर्चा यह है कि मोदी सरकार अभी दो महीने और बढ़ती तेल की कीमतों से आम जनता को राहत देने के मूड में नहीं है। यानि अभी तेल के दामों में वृद्धि लगातार जारी रहेगी। हां चुनाव आते-आते यानि फरवरी से दामों में गिरावट शुरू हो सकती है। जिससे मोदी सरकार जनता की सहानुभूति बटोर सके। ओर वोट पा सके। यानि तब तक आम जनता तेल के खेल में बुरी तरह से पिस चुकी होगी। फरवरी के बाद सरकार जो तेल की कीमती में कमी भी ला सकती है वह जाकर 70-75 रूपए प्रति लीटर पर जाकर ठहरेगी। यानि तेल के दाम में कमी तो आयी नहीं ऊपर से सरकार की झोली और भारी हो गयी। और जनता की जेब खाली हो गयी।


उदाहरण के तौर पर सरकार पहले किसी वस्तु की कीमत 60 से बढ़ाकर 100 पर ले जाती है फिर जनता को बेवकूफ बनाने के लिए 100 की चीज को 80 पर लाकर कर देती है। कहने की जनता की नजर में 20 रूपए कम हुई लेकिन हकीकत यह है कि 60 वाली चीज को 80 पर कर दिया। यानि जनता की बाहें मरोड़कर जेब खाली कर दी गयी। मोदी सरकार भी बड़ी चालाकी से जनता को मूर्ख बनाने के लिए यही चाल चलेगी। आश्चर्य नहीं है कि जैसा कि पहले भी होता रहा है, जनता एक बार फिर मूर्ख बनने के लिए तैयार रहेगी। इसके अलावा उसके पास कोई और चारा भी नहीं है?

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