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ज्ञानी जैल सिंह पर चली थी गोली! आखिर क्या वजह थी इस गोलीकांड के पीछे? आइये करते हैं तहकीकात ।


आचार्य संदीपन
क्राइम न्यूज़ नई दिल्ली।  हिन्दुस्थान के अंदर कहने को तो राष्ट्रपति का पद सर्वोच्च होता है , लेकिन कुछेक पॉकेट वीटो पावर की बात छोड़ दें तो इंडियन प्रेजिडेंट रबर स्टैम्प मात्र होता है।

हालाँकि कई मौके ऐसे भी आये जब सरकार में राष्ट्रपति ने अपनी मजबूत उपस्थिति भी दर्ज कराई। ऐसे ही एक राष्ट्रपति हुए हैं ज्ञानी जैल सिंह ! आज बात करेंगे ज्ञानी जी के बारे में। वर्तमान समय में भी देश में राष्ट्रपति चुनाव को लेकर हलचल तेज हो गयी है।बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने तीन दिग्गज मंत्रियों राजनाथ सिंह, वैंकेया नायडू और अरुण जेटली की एक कमेटी बनाई जो गैर एनडीए और गैर यूपीए के उन दलों से बात करेंगे जिन्होंने अभी किसी को समर्थन देने का फैसला नहीं किया है. दूसरी ओर विपक्ष भी अपनी पसंद का राष्ट्रपति बनवाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहा है.

इस सियासी उठापटक के बीच हम आपके लिए महामहिम को महान बनाने वाली  कुछ रोचक कहानियां लेकर आए हैं. सर्वोच्च संवैधानिक पद पर रहे लोगों के ऐसे किस्से जो आप शायद ही जानते हों. ऐसी कहानियां जो देश की अंखडता और संप्रभुता की गवाही देती हैं.


राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह की कहानी जिस पर गोली चली

31 अक्टूबर साल 1984 को प्रधानमंत्री निवास गोलियों की तड़तड़ाहट से गूंज उठा. देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की दिनदहाड़े हत्या कर दी गई. इस घटना से 5 महीने पहले भी एक गोली चली थी. उस बार निशाना वो व्यक्ति थे जो देश के सर्वोच्च् संवैधानिक पद पर विराजमान थे. भारतीय लोकतंत्र के इतिहास का वो पहला मौका था जब देश के राष्ट्रपति पर जानलेवा हमला हुआ था. वो राष्ट्रपति थे ज्ञानी 
ज़ैल सिंह.


आखिर  क्यों चली ज्ञानी जैल सिंह पर गोली

ज्ञानी जैलसिंह पर गोली चलने के पीछे एक दर्दनाक किस्सा है. साल 1984 का वक्त था. पंजाब खलिस्तानी आतंकी भिंडरावाले के आंतक से थर्रा उठा था। भिंडरावाले ने सिखों के पवित्र धर्म स्थल स्वर्ण मंदिर के अकाल तख्त पर कब्जा कर लिया था.
पंजाब को आतंक से मुक्ति दिलाने के लिए प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को एक बड़ा फैसला लेना पड़ा. इंदिरा गांधी ने स्वर्ण मंदिर को आंतकियों के कब्जे से छुड़ाने के लिए सेना भेज दी.


ऑपरेशन ब्लू स्टार, राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह को नही लगी भनक


5 जून 1984 को ऑपरेशन ब्लू स्टार शुरू हो गया, सेना ने स्वर्ण मंदिर को चारों तरफ से घेर लिया था. 6 जून की सुबह भिंडरावाले को मार गिराया गया, ऑपरेशन ब्लू स्टार में सिखों के धार्मिक स्थल अकाल तख्त को भी भारी नुकसान हुआ। सेना ने इतना बड़ा ऑपरेशन चलाया और सेना के सुप्रीम कमांडर यानि राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह को इसकी जानकारी नहीं थी। इससे राष्ट्रपति ज्ञानी ज़ैल सिंह बहुत आहत हुए, इंदिरा से नाराज ज़ैलसिंह अड़ गए कि या तो वो राष्ट्रपति पद से इस्तीफा देंगे या स्वर्ण मंदिर जाएंगे।
8 जून को ज्ञानी ज़ैल सिंह भारी भरकम सुरक्षा के साथ स्वर्ण मंदिर गए और भीड़ में से किसी ने उन पर गोली चला दी। गोली उनके साथी का सीना छलनी कर निकल गई और वो बाल-बाल बच गए।


जब राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने किया अपने वीटो का प्रयोग, अंत तक नही पास होने दिया बिल

इसी के कुछ दिनों बाद इंदिरा गांधी की हत्या हुई, राजधानी दिल्ली में सिख विरोधी दंगे हुए। इसके बाद राजीव गांधी से भी ज्ञानी ज़ैल सिंह के रिश्ते खराब हो गए। नतीजा ये हुआ कि ज्ञानी जैल सिंह ने पॉकेट वीटो का इस्तेमाल किया।इस अधिकार के तहत राष्ट्रपति किसी गैर फाइनैंस बिल को अनिश्चित काल तक अपने पास रख सकता है।
राजीव सरकार के इंडियन पोस्ट ऑफिस एमेंडमेंट बिल को अपने पास रोक लिया।जो कभी नहीं पास हो सका। 5 मई 1916 को फरीदकोट के किसान सिंह के घर जन्मे ज्ञानी ज़ैल सिंह का राजनैतिक ओहदा काफी बड़ा था।


गृह मंत्री रह चुके थे जैलसिंह, लगे थे भिंडरावाला को संरक्षण के आरोप!

वो साल 1972 में पंजाब के मुख्यमंत्री बने थे।साल 1980 की सरकार में इंदिरा ने उन्हें अपना गृहमंत्री बनाया था।गृहमंत्री रहते हुए उनपर भिंडरावाले को संरक्षण देने के आरोप भी लगते रहे।
पंजाब में आतंकवाद चरम पर था, इसी बीच इंदिरा गांधी ने उन्हें 25 जुलाई 1982 को देश का 7वां राष्ट्रपति बना दिया। ज्ञानी ज़ैल सिंह इंदिरा के काफी विश्वस्त थे लेकिन ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद गांधी परिवार और ज्ञानी जैल सिंह के बीच दूरियां बढ़ गईं, जो कभी नहीं भरी। 

इनपुट एबीपी साभार

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