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चिंता !टूटते-बिखरते रिश्ते,पलों में टूट रहे हैं जीवन के सात फेरे


समेजा कोठी।(सतवीर सिह मेहरा) हर देश में मनुष्य व स्त्री के परिपूर्ण जीवन यापन करने के लिए विवाह को सामाजिक आवश्यकता समझा गया हैं।भारत देश में तो मनुष्य को विवाह के बिना अधूरा माना जाता हैं।हर धर्म में विवाह अलग अलग रीति रिवाजों से किये जाते हैं।लेकिन वर्तमान में विवाह के पवित्र बंधन को मिनटो में तोड़ दिया जाता हैं।

स्त्री के लिए सरकार द्वारा उनके हित को देखते हुये सदैव प्रयासरत रहती हैं इसी प्रयास की कड़ी दहेज प्रतिषेध नियम हैं।लेकिन आजकल विवाहित महिला छोटे छोटे घरेलू बातों को सहन करने की बजाये दहेज की धारा 498 का प्रयोग कर पति को सलाखों के पीछे पंहुचाने में कमी नही छोड़ती जो बडी चिंता का विषय हैं।वर वधू द्वारा भगवान को हाजिर नाजर मान कर जो अग्नि के समक्ष फेरे लिये जाते हैं वह सब मिनटों में ताक पर रख दिये जाते हैं।आखिर क्या कारण पनप जाता हैं की तीन-   चार बच्चों की मॉ बनने के बाद महिला द्वारा पुलिस थाने में दहेज का केस दर्ज करवा दिया जाता हैं।उसकी पति से विश्वास उठ जाता हैं।क्या यह सब चरित्र पतन की ओर कदम नही।क्या वर्षों से साथ बिताये पल में छटके जा सकते हैं यह कहते हैं हमारे संस्कार।सही मायने में हमारी संस्कृति में पश्चिम सभ्यता का भूत चिपक रहा हैं।


युवा पीढ़ी संयुक्त परिवार में रहना नही चाहती।संयुक्त परिवार में बुजूर्गो का हस्तक्षेप होता हैं जो युवा पीढ़ी को पंसद नही।लेकिन परिवार की नींव ठोस करने के लिए घर में बुजूर्गो की आवश्यकता महसूस की जाती रही हैं व आगे भी की जाती रहेगी।हर  समाज में पत्ति पत्नी में थोडी बहुत नोकझोक होती रहती थी पर बुजूर्गों के मार्गदर्शन से सब ठीक हो जाता था।लेकिन वर्तमान में मामूली घरेलू बात हुई चल दिये  498 की और।मामला चंद दिन पुराना हैं मैं किसी का नाम नही लिखना चाहता। पति पत्नी मजदूरी करने घर से अन्यत्र चले गये वहा रिश्तेदारी में रहकर गुजारा करने लगे,लेकिन दो माह बात मामूली बोल चाल हुई और पत्नी रूठकर मायके चल दी।पति बेचारे ने सोचा कुछ दिन बाद मना ले आयेगे पर अगले दिन पति के पास पंहुची पुलिस की घण्टी की 498 का केस दर्ज हैं।


पति पचायत लेकर गया पक्ष रखा लेकिन एक न सूनी।पत्नी का व्यवहार ऐसा की जैसे यह व्यक्ति से कभी पहले मिली तक नही।लाख मनाई नही मानी,पति अपनी जमीन तक नाम करवाने को राजी पर न मानी।अगले कुछ दिन इंतजार करने के बाद सारा समान पुलिस को सपुर्द कर दिया।वह समान आज भी थाने में पड़ा खून के आंसू रो रहा हैं परन्तु महिला को परवाह तक नही की मेरा घर टूट गया।लड़का व परिजन बच्चों की याद कर रोते नही रूकते पर करे तो करे क्या।भगवान की मर्जी मान दिल समझा लेते हैं।


पर बात यह नही की समान थाने पड़ा हैं बात यह हैं की ऐसा क्या हुआ की घर टूटने की नौबत आई। इतनी बार मनाने पर भी न मानी व बच्चो से उनका पिता दूर कर दिया।क्या कानून यह कहता हैं की विवाह के बाद दो चार बच्चें होने के बाद पत्नी जब मन में आये पीहर चली जाये व मना करने पर दहेज का केस डाल दिया जावे।यह कानून का दुरूपयोग नही तो क्या हैं।यह हर व्यक्ती की पीड़ा हैं जो इस झूठे दहेज केस दर्ज कराने से  पीडित हैं।क्या सरकार के पास पुरूष की पीडा समझने के लिए कोई मशीन हैं।यदि हैं को असली दहेज आरोपी को पकडे न की साजिश के शिकार हुये हर व्यक्ति को।


यदि समय रहते इस सामाजिक रिवाज के पतन को नही रोका तो समाज के लिए घातक हो सकता हैं।
विवाह के पवित्र बंधन को अटूट बनाये रखा जाना चाहिये।सूख दूख में साथ नही छोडा जाना चाहिये।

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