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प्रजातंत्र में राजतंत्र हावी होने से अपराधियों को मिलती शह समाज के लिए विनाशक.....


अपराधियों के द्वारा आए दिन अपराध की पिडा बना रही है समुदायों के बीच दुरिया.......

राजनीतिक तंत्र के दबाव के कारण पुलिस  अंकुश से बाहर अपराधी रहते हैं बेखौफ..... 

प्रजा की पीर, राज के दबाव में खाकी शांति दूत तक ही सीमित, अपराधियों में नहीं कायम कर पा रही डर को कायम............ 

पत्रकार कमलेश शर्मा की कलम से
अपराध के क्राइम ग्राफ को बहुत ही खूबसूरती से राजस्थान सरकार के गृहमंत्री ने नीचे की ओर गिरता दिखा दिया। लेकिन चाहिए सत्यता है यह आप और हम सभी जानते हैं। आज बढ़ते अपराधों की मूल जड़ तथा अपराधियों पर पुलिस प्रशासन का अंकुश ना होना कहीं ना कहीं राजतंत्र से जुड़ा है


 क्योंकि एक आम आदमी अगर किसी अपराध को अंजाम देता है तो चंद दिनों में वह पुलिस की गिरफ्त में पाया जाता है वही अगर उसी प्रकार का अपराध कोई आदतन अपराधी करता है 2 महीनों तक वह पुलिस की पकड़ से दूर रहता है कारण यह नहीं है कि वह कहीं लुप्त हो जाता है कारण यह है कि सफेदपोश नेताओं के साए में वह पल रहा होता है इन दिनों ऐसा ही कुछ राज्य में कई जगहों पर हो रहा है


 कुछ आदतन अपराधी लगातार अपने अपराधों का ग्राफ बढ़ाते जा रहे हैं जिससे प्रजातंत्र बहुत ज्यादा पीड़ित हो चुका है सरकार और प्रशासन को अपनी पीड़ा जाहिर करने के लिए वह सड़कों पर भी उतर जाता है चंद्र अपराधियों के कारण समाज मैं एक समुदाय दूसरे समुदाय को घृणा की दृष्टि से देखने लगे हैं क्योंकि राजतंत्र से पुलिस प्रशासन के हाथ बंधे होने के कारण पुलिस सिर्फ शांतिदूत बनकर रह जाती है अपराधियों पर अपना डर कायम नहीं कर पाती है। 


और अगर ऐसा नहीं है तो आखिर क्यों अपराधी बेखौफ होकर अपराध को अंजाम देते जा रहे हैं और पुलिस प्रशासन सिर्फ तमाशा देखती रहती है अगर ऐसा नहीं है तो प्रजातंत्र की पीर राजतंत्र दूर नहीं कर पा रहा है आखिर क्यों एक आदतन अपराधी से पीड़ित व्यक्ति न्याय के लिए इधर-उधर घूमता नजर आता है समय के इस बदलाव ने लोगों को इस कदर बदल दिया कि वह निर्वाचन के समय चंद्र अपनी आपूर्ति यों के कारण ऐसे व्यक्तियों का चुनाव कर लेते हैं जो 5 साल तक प्रजातंत्र के लिए नासूर बन जाते हैं प्रजातंत्र पर आज राजतंत्र का इस प्रकार हावी होना समाज को तथा देश को विनाश की ओर धकेलने का काम कर रहा है।

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