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काश! लोकसभा एवं विधानसभा के चुनाव एक साथ होते!


देश में इस बार लोकसभा एवं विधानसभा के चुनाव एक साथ कराने की चर्चा जोरों पर चल रही है जिसमें विशेष रूप से देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस प्रकार की योजना को अमल में लाने की वकालत कर रहे है। इस तरह की चर्चा केन्द्रीय बजट सत्र के प्रारम्भ में संसद में राश्ट्रपति के अभिभाशण के दौरान उभर कर सामने भी आया जो पूर्ण रूप से सरकार की नीतियों के तहत समायोजित होता है।जब कि देश के अधिकांश भाग में अभी हाल ही विधानसभा के चुनाव सम्पन्न हुए हैं। कुछ राज्यों में चुनाव की तैयारी चल रही है, केवल अधिसूचना जारी होना बाकी है। कुछ राज्यों में जहां भाजपा की सरकार चल रही है, वर्श के अंतराल में चुनाव होने है, कुछ राज्यों में जहां भाजपा की सरकारें नहीं है, आगामी वर्श में लोकसभा चुनाव के बाद होने है। इस तरह देश में विधानसभा के चुनाव अलग - अलग समय पर होंने बाकी है जिसे एक साथ करा पाना संभव नहीं। एक समय ऐसा था , जब पूरे देश में स्वतंत्रता उपरान्त लोकसभा एवं विधानसभा के चुनाव मत पत्र द्वारा एक साथ ही हुआ करते पर जब से इस व्यवस्था में अस्थिरता आई एवं राज्य की सरकारें अलग-अलग समय पर मध्यावधि चुनाव के कारण गठित होने लगी, लोकसभा एवं विधानसभा के चुनाव अलग-अलग होने लगे। काश! लोकसभा एवं विधानसभा के चुनाव एक साथ होते पर वर्तमान हालात में इसकी प्रांसगिकता कहीं से नजर नहीं आ रही है।  
देश में जब से लोकसभा एवं विधानसभा के चुनाव अलग - अलग होने लगे है, प्रशासनिक व्यवस्था को लेकर चुनाव कई चरणों में होते देखे जा सकते हैं। इस तरह के हालात में भी देश में लोकसभा एवं विधानसभा के चुनाव एक साथ होने की संभावना दूर-दूर तक नजर नहीं आ रही है। इस तरह के परिवेश में होने वाले चुनाव में नियंत्रण अभाव बना रहेगा जो चुनाव में होने वाली गड़बड़ियों को बढ़ावा दे सकता है। फिलहाल होने वाले संवेदनशील चुनाव स्थलों पर चुनाव कराना कितना कठिन हो जाता है, सभी भलीभॉति जानते है। इस तरह के परिवेश लोकसभा एवं विधानसभा के चुनाव एक साथ होने की इजाजत कभी नहीं दे सकते। फिर भी इस दिशा में मंथन जारी है। केन्द्र में भापजा की पूर्ण बहुमत वाली सरकार है जहां लोकसभा में इस पर समर्थन पाने के लिये किसी के सहयोग की जरूरत नहें। राज्य सभा में बहुमत तो नहीं पर इस दिशा में प्रयास कर सकती है। केन्द्र सरकार चुनाव आयोग को इस प्रक्रिया के लिये प्रेरित भी कर सकती है। 

जब बदलते हालात एवं वर्तमान परिवेश में लोकसभा एवं विधानसभा के चुनाव एक साथ हो ही नहीं सकते फिर इस तरह के विचार केन्द्र सरकार के पटल पर कैसे आया ? विचारणीय मुद्दा है। इस तरह के उभरते परिवेश के पीछे राजनीतिक चाल समाई हो सकती है जिसे नकारा नहीं जा सकता। वर्श के अंतराल में भाजपा शासित जिन राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने है वहां अधिकांश में भापजा सरकार के प्रति उभरते जनाक्रेाश को देखा जा सकता है, जिससे विधानसभा चुनाव परिणाम पर प्रतिकूल प्रभाव उभर सकते है। अभी हाल ही राजस्थान में हुये दो लोकसभा एवं एक विधानसभा सीट पर उपचुनाव के परिणाम भाजपा की पूर्णबहुमत वाली सरकार होते हुये भी भाजपा के पक्ष में ही केवल नहीं रहे बल्कि पूर्णरुपेण भाजपा को नकारते नजर आये जिसकी गूंज दिल्ली तक भाजपा शासित केन्द्र सरकार के पास पहुंच गई। वैसे भी राजस्थान एवं छत्तीसगढ़ दोनों राज्य में जनाक्रेाश भापजा सरकार के विपरीत नजर आ रहा है जो वर्श के अंतराल में होने वाले विधानसभा चुनाव पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है। बिहार राज्य में भाजपा वर्तमान दौर में सरकार में शामिल तो हो गई पर निकट भविश्य में वहां वह पूर्णरुपेण अपना सम्राज्य कायम करना चाहती है। इस दिशा में लोकसभा एवं  विधानसभा के एक साथ होने वाले चुनाव लाभदायक साबित हो सकते है जहां केन्द्र की वर्तमान भापजा सराकर फिर से केन्द्र में पूर्णरुपेण अपना सम्राज्य कायम कर सके एवं इन भापजा शासित राज्यों की प्रतिश्ठा बचा सके।  

देश के राजनीतिक हालात बदल रहे है जहां मोदी लहर की थाप कम होती नजर आ रही है। नरेन्द्र मोदी के गृह प्रदेश गुजरात राज्य में होने वाले विधान सभा के चुनाव इस बात के परिचायक है , जिस पर पूरे देश की नजर टिकी हुई थी ,जहां अपनी प्रतिश्ठा बचाने के लिये नरेन्द्र मोदी ने ऐड़ी चोटी तक दम लगा दिया। केन्द्र सरकार की एक देश एक टैक्स की नीति जीएसटी खेखली ही साबित हुई जिससे आम जन को राहत तो मिली नहीं , व्यापारी वर्ग में  उपजा जनाक्रोश सरकार के लिये भारी पड़ गया। गुजरात विधानसभा में अपनी जीत जिस तरीके एवं मापदंड पर भापजा दर्ज करा सकी, विचारणीय मुद्दा है। केन्द्र सरकार का आम बजट जिस पर पूरे देश की नजर टिकी हुई थी , जहां आम वर्ग को इस बजट में पाने की बहुत बड़ी उम्मीदें समायोजित थी, अंतत: निराशा ही हाथ लगी। केन्द्र सरकार द्वारा इस बजट को गरीबों एवं किसानों के हित वाला बताया गया पर देश के गरीब एवं किसान किस तरह एवं कितना राहत पा सकेंगे, स्पश्ट कहीं से भी नजर नहीं आ रहा है। देश की बेरोजगार युवा पीढ़ी के लिये रोजगार देने के लिये रोजगार देने वाले प्रमुख संसाधन नये उद्योग लाने एवं बंद होते उद्योग को बचाने के लिये बजट में कहीं प्रावधान नजर नहीं आ रहा है फिर युवाओंं को कैसे रोजगार मिलेगा ? इस तरह के उभरते हालात मोदी के पक्श में पूर्व की भॉति किस तरह जनमानस बना क सकेंगे जिसपर भापजा का वर्चस्व पूर्णरूपेण टिका हुआ है। इस तरह के परिवेश में लोकसभा एवं विधासभा के एक साथ चुनाव कराने के निर्णय स्वयं के लिये घातक न साबित हो जाय।
लेखक-डॉ हिदायत अहमद खान



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