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अब मुमकिन हो रहा टीबी का इलाज,डॉट्स के जरिए ठीक हो रहे रोगी,कोर्स बीच में छोडऩे से फिर पैदा होता है खतरा


हनुमानगढ़। टीबी (क्षय) रोग अब लाइलाज नहीं रहा। हमारे देश में ऐसी दवाइयां बन चुकी हैं जिनसे टीबी रोग ठीक हो सकता है। इन दवाओं का कोर्स 6 से 9 महीने का होता है, लेकिन सामान्य तौर पर मरीज थोड़ा सा ठीक महसूस करने पर दवाओं का सेवन करना बंद कर देता। इससे टीबी के दोबारा होने का खतरा बढ़ जाता है। क्षय निवारण केन्द्र (डॉट्स) के जरिए टीबी के रोगियों को ठीक किया जाता है। इसके द्वारा कम समय में रोगी को पूरी तरह से इस रोग से मुक्ति दिलाई जा सकती है। यह विधि स्वास्थ्य संगठन द्वारा विश्व स्तर पर टीबी को नियंत्रण करने के लिए अपनाई गई एक विश्वसनीय विधि है, जिसमें रोगी को प्रतिदिन (डेली डॉट्स) उसके वजन के हिसाब से दवा का सेवन करवाया जाता है। हनुमानगढ़ स्थित क्षय निवारण केन्द्र में जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ. रविशंकर शर्मा के निर्देशन में स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की टीम कार्य कर रही है, जो टीबी रोगियों की खोज करने के साथ-साथ उनकी काउंसलिंग कर रही है। यह टीम टीबी रोग से घबराने वाले रोगियों को हिम्मत दे रही है। काउंसलिंग कर रोगियों एवं उनके परिजनों को इस रोग से छुटकारा दिलवाने की प्रेरणा भी दे रही है। डॉ. रविशंकर शर्मा प्रत्येक टीबी रोगी की जांच कर उन्हें उचित स्वास्थ्य उपचार देते है। उसी का प्रयास है कि जिले में कई टीबी रोगी आज इस रोग से मुक्ति पा चुके हैं। डॉ. शर्मा ने बताया कि  डॉट्स पद्धति के अन्तर्गत सभी प्रकार के क्षय रोगियों को तीन समूह में बांटकर उनका इलाज किया जाता है। वर्ष 2020 तक संगरिया व रावतसर ब्लॉक को टीबी मुक्त करने के लिए प्रयास भी किए जा रहे हैं। 
कुसुम बानो, फ़ोटो

केस-1
नि:शुल्क दवाइयों और आर्थिक मदद ने दिलाई टीबी से निजात
हनुमानगढ़ टाउन में रहने वाली 21 वर्षीय कुसुम बानो (परिवर्तित नाम) को पता ही नहीं था कि कब उन्हें टीबी हो गई। क्षय निवारण केन्द्र पर जांच करवाई, तो पता लगा कि उन्हें एमडीआर-टीबी है, जिसका इलाज काफी महंगा और लम्बा है। टीबी होने पर उनके पारिवारिक संबंध खराब होने लगे और उनका हौसला भी साथ छोडऩे लगा। उन्हें लगने लगा था कि अब मैं कभी सही हो पाउंगी या नहीं। बस हरदम यही चिंता सताती रहती थी। टीबी होने के बाद उन्हें कम सुनना, उल्टी आना, जी घबराना और दो बार खून की उल्टी आई, जिससें उनके परिजन काफी घबरा गए। कुसुम ने पहले 9 माह का द्वितीय केटेगरी का इलाज पूरा कर लिया था, लेकिन उनकी बीमारी सही नहीं हो रही थी। वे इतना निराश हो चुकी थी कि उनके पति उन्हें कई बार स्ट्रेचर पर हॉस्पिटल लेकर आते थे। उन्होंने बताया कि हनुमानगढ़ के क्षय निवारण केन्द्र में मुझे आपसी सहयोग व इलाज के लिए प्रोत्साहित किया जाता रहा, जिसकी वजह से मैं इलाज जारी रख पाई। डॉट्स केन्द्र से मिली नि:शुल्क दवाइयां व आर्थिक मदद मिलने से मुझे हिम्मत मिली और मैंने निरंतर दवा खाना जारी रखा। इसी का परिणाम है कि आज मैं बिल्कुल ठीक हूं। क्षय निवारण केन्द्र के स्टॉफ द्वारा दिया गया स्वास्थ्य उपचार व सहयोग से ही मुझे इस बीमारी से लडऩे की ताकत दी। पहले बाहर निकलने और घर वालों के साथ बैठने में भी डर लगने लगा था, लेकिन अब मैं बिना डरे कहीं भी आ-जा सकती हूं। 

केस-2
दवाइयों का कोर्स पूरा करने की समझदारी दिखाना साबित हुआ फायदेमंद
हनुमानगढ़ में रहने वाली 36 वर्षीय राजप्रीत (परिवर्तित नाम) के कंधों पर जिम्मेदारियों का इतना बोझ था, जिस कारण उन्हें बीमार होना भी एक परेशानी लगता था। उनके पति एक सड़क हादसे के कारण चलने-फिरने में असमर्थ हो गए थे। ऐसे में तबीयत खराब रहने पर जांच में उन्हें टीबी होने का पता लगा। घर पर पता चलते ही पूरा परिवार ही सहम गया। क्षय निवारण केन्द्र से जानकारी मिली कि इसका इलाज पूरी तरह से हो सकता है। परिवार की जिम्मेदारियों को निभाने के साथ-साथ टीबी का इलाज करने के लिए समय पर दवाइयां लेना भी जरूरी हो गया था। थोड़ा सा स्वास्थ्य सुधार होने पर सोचा कि दवाइयां छोड़ दूं, लेकिन पता लगा कि बीच में दवाइयां छोडऩे पर बीमारी अधिक बढ़ जाती है। अब दवा का पूरा कोर्स करने के बाद मैं बिलकुल सही हूं और अपने पति और बच्चों का सही से पालन-पोषण कर रही हूं। 

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