दिनेश एमएन की हाईकोर्ट से जमानत रद्द करवाने वाले आईओ के हुए बयान
उदयपुंर। सोहराबुद्दीन-तुलसी एनकाउंटर केस में सोमवार को मुंबई की सीबीआई स्पेशल कोर्ट में सीआईडी के अनुसंधान अधिकारी इंस्पेक्टर आरएच हड़िया के बयान हुए, ये वहीं अधिकारी है, जिन्होंने इस केस की पहली चार्जशीट कोर्ट में पेश की थी और दिनेश एमएन की जमानत भी इन्हीं की याचिका पर हाईकोर्ट से रद्द हुई थी। हड़िया ने कोर्ट में बताया कि जब उन्होंने सोहराबुद्दीन एनकाउंटर केस की चार्जशीट पेश की, तब तक आईपीएस दिनेश् एमएन, डीजी बंजारा, राजकुमार पांडियन सहित 13 आरोपी गिरफ्तार हो चुके थे और चार्जशीट में इन सभी के खिलाफ पर्याप्त गवाहों के बयान, पारिस्थितिजन्य साक्ष्य और विशेषज्ञों की राय थी।
हड़िया ने टायल कोर्ट को बताया कि 2007 में जब सोहराबुद्दीन एनकाउंटर केस का अनुसंधान कर रहे मुख्य अनुसंधान अधिकारी सीआईडी इंस्पेक्टर गंभीर सिंह पडेरिया बीमार पड़े तो यह जांच 5 जुलाई 2007 को उन्हें सौंपी गई। पड़ेरिया ने अनुसंधान के समस्त दस्तावेज उन्हें सुपुर्द कर दिए थे। जांच की सुपरवाइजरी अधिकारी डीआईडी गीता जौहरी थीं। तब तक मामले में तीनों आईपीएस दिनेश एमएन, डीजी बंजारा और राज कुमार पांडियन को गिरफ्तार हुए 90 दिन होने वाले थे। मामले मेें कुल 12 आरोपी गिरफ्तार हो चुके थे, इनमें चार रिमांड पर थे।
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फाइल मिलने के बाद मैंने 13 जुलाई 2007 को 13वें आरोपी एनवी चौहान को गिरफ्तार किया और उसी दिन फाइल चार्जशीट की स्वीकृति के लिए डीआईजी गीता जौहरी के जरिए एडीजी क्राइम ब्रांच ओपी माथुर को भेज दी थी। 14 जुलाई को एडीजी ने चार्जशीट की स्वीकृति दे दी, तो 16 जुलाई 2007 को मैंने मामले की पहली चार्जशीट कोर्ट में पेश की थी। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने सीआइडी द्वारा की गई तफ्तीश को दोषपूर्ण मानते ही यह जांच सीबीआई को सौंपी थी और बाद में सीबीआई ने गीता जौहरी और ओपी माथुर दोनों को ही इस केस में आरोपी बनाया था। तुलसी एनकाउंटर केस में सीबीआई ने इन दोनों को मुख्य षडयंत्रकारी माना था और चार्जशीट पेश की थी, हालां कि दोनों ही इस केस से बरी हो चुके हैं।
चार्जशीट में 627 पेज थे, इनमें 13 पेज ऑपरेटिंग पार्ट के, 27 पेज इनडेक्स के और 587 पेज में गवाहों के बयान, एवीडेंस सहित मैटेरियल, एटीएस की तफ्तीश फाइल और इंस्पेक्टर वीएल सोलंकी की प्राथमिक जांच रिपोर्ट की फाइल भी थी। चार्जशीट जब कोर्ट में पेश की गई, तब इन सभी आरोपियों के खिलाफ पर्याप्त पारिस्थितिकजन्य साक्ष्य, गवाह और विशेषज्ञ की राय थी।
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हाईकोर्ट से खारिज हुई जमानत तो दोबारा हुए गिरफ्तार
कोर्ट में हडिया ने बताया कि चार्जशीट पेश होने के 20 दिन बाद दिनेश एमएन और नरेन्द्र अमीन को सेशन कोर्ट से जमानत मिल गई थी। इस पर मैंने सीआईडी की ओर से हाईकोर्ट में अपील की थी और कोर्ट से निवेदन किया था कि इनकी जमानत को खारिज कर दिया जाएं। हाईकोर्ट ने इन दोनों की जमानत ही निरस्त कर दी थी और चार सप्ताह में सुप्रीम कोर्ट जाने का समय दिया था। चार सप्ताह में भी इन्हें सुप्रीम कोर्ट से कोई राहत नहीं मिली तो इन दोनों ने 22 दिसंबर 2007 को सरेंडर किया था, जिन्हें गिरफ्तार कर दोबारा जेल भेज दिया गया था। सभी 13 आरोपियों की जमानत याचिका का सीआईडी की ओर से मैंने हाईकोर्ट में विरोध किया था, जिस पर हाईकोर्ट ने सभी की जमानत याचिकाएं खारिज कर दी थीं। गौरतलब है कि इन 13 आरोपियों में से मुख्य चार आरोपी बरी हो चुके हैं।
सप्लीमेंटी चार्जशीट में 23 गवाह व साक्ष्य थे
हड़िया ने कोर्ट को बताया कि चार्जशीट पेश करने के बाद हमें अनुसंधान में अतिरिक्त साक्ष्य मिले और हमने 23 गवाहों के बयान भी लिए। 10 दिसंबर 2007 को हमने कोर्ट में पहली सप्लीमेंटी चार्जशीट पेश की थी। 1 मार्च 2008 को मेरा तबादला हो गया था, तो मैंने समस्त दस्तावेज इंस्पेक्टर एएस त्रिवेदी को सौंप दिए थे।
बार-बार बयान पलटे थे अहम गवाहों ने
क्रॉस में बचाव पक्ष के वकील के पूछने पर हड़िया ने बताया कि जब अनुसंधान मिला था और इसके पेपर पढ़े थे तो पता चला था कि केस के मुख्य गवाह नाथूबा जडेजा, भाईलाल राठौड़ और गुरूदयाल ने अपने बयान बार-बार बदले थे। पहले एटीएस आईओ को जो बयान दिए, उसमें यह प्रतीत हुआ कि यह एनकाउंटर पूरी तरह वास्तविक और सही था। लेकिन जब सीआईडी के आईओ टीके पटेल ने इनके बयान लिए तो एनकाउंटर को इन्होंने फर्जी बताया और हैदराबाद से सांगली लाते समय हुए अपहरण, एनकाउंटर स्पॉट, एनकाउंटर से लेकर कौसरबी की हत्या और इलोल में शव के जलाने की घटना तक के इन्होंने बयान दिए। टीके पटेल को बयान देने के तुरंत बाद ही इन्होेने गुजरात कोर्ट में एक एफीडेबिड लगाया था कि सीआईडी हमें झूठे बयान देने के लिए धमकी दे रही है और दबाव बना रही है। हड़िया ने कोर्ट को बताया कि उन्हें इन तीनों गवाहों के कोर्ट में पेष किए गए एफीडेबिड से संबंधित दस्तावेजों की जानकारी थी।
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