अर्जुन मेघवाल व निहालचंद मेघवाल की सीट अदला-बदली पर लगा विराम
सीमांत रक्षक ने पहले ही जता दिया था मेघवाल का नाम
सीमांत रक्षक की सटीक विश्लेषित खबरों से फिर बनाया विश्वास
हनुमानगढ़/श्रीगंगानगर(कुलदीप शर्मा) लोकसभा चुनाव-2019 से पहले निवर्तमान सांसद निहालचंद मेघवाल का दबी आवाज में विरोध होने के बावजूद भाजपा श्रीगंगानगर लोकसभा क्षेत्र में जातीय समीकरणों और खुद निहालचंद को अनदेखा नहीं कर पाई। इसी वजह से पार्टी ने लगातार सातवीं बार श्रीगंगानगर लोकसभा क्षेत्र से निहालचंद मेघवाल को टिकट देकर मैदान में उतार दिया है। बीते गुरुवार रात को जारी हुई भाजपा के 182 प्रत्याशियों की सूची में श्रीगंगानगर लोकसभा क्षेत्र से निहालचंद मेघवाल का नाम भी शामिल है। आपको ज्ञात होगा की दैनिक सीमांत रक्षक ने लगातार खबरों में श्रीगंगानगर संसदीय क्षेत्र से बीजेपी टिकट को लेकर निहालचंद मेघवाल का नाम खबरों के माध्यम से बता चुका है। अब सीमांत रक्षक समाचार पत्र की खबरों पर बीजेपी द्वारा टिकट फाइनल करने के बाद मुहर लग चुकी है।
मेघवाल का होगा सातवा चुनाव
जानकारों की माने तो निहालचंद मेघवाल की चुनावी पारी वर्ष 1996 से शुरू हुई बताई जाती है। वर्ष 1996 में पहली बार भाजपा ने यहां से निहालचंद मेघवाल को अपना उम्मीदवार बनाया था। गंगानगर जिले की रायसिंहनगर तहसील के मूल निवासी निहालचंद मेघवाल ने अब तक छह चुनाव लड़े हैं, जिनमें से चार जीते हैं और दो हारे हैं। यह उनका सातवां चुनाव होगा। वर्ष 1998 में उन्हें कांग्रेस के उम्मीदवार शंकर पन्नू ने हराया था जबकि 2009 में उन्हें फिर से कांग्रेस के उम्मीदवार भरतराम मेघवाल ने पराजित किया था। इन दो चुनावों को छोड़ कर निहालचंद मेघवाल अभी तक सांसद का कोई चुनाव नहीं हारे हैं। लगातार सातवीं बार भाजपा की ओर से उन्हें उम्मीदवार बनाए जाने से यह भी साबित होता है कि पार्टी यहां से अभी तक उनके मुकाबले में कोई कार्यकर्ता या नेता तैयार नहीं कर पाई है। पार्टी में उनका वर्चस्व कायम है। इसी की बदौलत उनके भाई लालचंद मेघवाल भी एक बार विधायक और एक बार पंचायत समिति के प्रधान भी रह चुके हैं। उनके पिता बेगाराम मेघवाल भी राजनीति में वर्षों तक सक्रिय रहे। चुनाव से पूर्व उनके जातिगत विरोध के स्वर भी पार्टी में गूंजे थे, लेकिन भाजपा ने इन सबको अनदेखा करते हुए उन्हें फिर से मौका दिया है।
मंत्री अर्जुन मेघवाल की बनी थी चर्चा लेकिन सीमांत रक्षक ने बोला था पार नहीं पड़ेगी!
पूर्व में यह चर्चा थी कि निहालचंद के मामूली विरोध को देखते हुए भाजपा श्रीगंगानगर लोकसभा क्षेत्र से केंद्रीय राज्य मंत्री अर्जुन मेघवाल को उतार सकती है जबकि निहालचंद को बीकानेर संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ाया जा सकता है। ऐसा होने पर श्रीगंगानगर और बीकानेर के उम्मीदवारों की आपस में अदला-बदली की बड़ी चर्चा रही, लेकिन गुरुवार देर रात भाजपा की ओर से प्रत्याशियों की सूची जारी करते ही इन सब चर्चाओं पर विराम लग गया। हालांकि एक पक्ष यह भी है की केंद्रीय राज्य मंत्री अर्जुनराम मेघवाल भी श्रीगंगानगर से चुनाव लड़ने के इच्छुक नहीं थे और निहालचंद भी अपना संसदीय क्षेत्र छोड़कर बीकानेर जाने को राजी नहीं थे। इन सब को देखते हुए पार्टी ने बीच का रास्ता निकालते हुए दोनों नेताओं पर एक बार फिर से भरोसा जताया है। पिछले चुनाव की भांति इस चुनाव में भी भाजपा की ओर से कैलाश मेघवाल का नाम निहालचंद के साथ प्रमुखता से चर्चा में रहा, लेकिन कैलाश मेघवाल पार्टी का विश्वास जीतने में कामयाब नहीं हो सके। इसी तरह बीकानेर से भी अर्जुनराम मेघवाल का विरोध करने वाले देवीसिंह भाटी की परवाह किए बिना भाजपा ने अर्जुन मेघवाल को फिर से टिकट थमा दी है।
ऐसा है श्रीगंगानगर लोकसभा क्षेत्र में जातीय समीकरण
श्रीगंगानगर लोकसभा क्षेत्र के जातीय समीकरणों को देखें तो कुल 8 विधानसभा क्षेत्रों में से 3 विधानसभा क्षेत्रों (श्रीकरणपुर, सादुलशहर, संगरिया) में सिख बाहुल्य, 1 (श्रीगंगानगर) में अरोड़ा तथा 2 में (सूरतगढ़ और हनुमानगढ़) में जाट मतदाताओं का मजबूत आधार माना जाता है। 2 सीटों (रायसिंहनगर, पीलीबंगा) में एससी वर्ग के मतदाताओं की संख्या अधिक है। इसके बावजूद श्रीगंगानगर लोकसभा क्षेत्र में निहालचंद मेघवाल की पकड़ मजबूत है। उनकी दावेदारी इतने वर्षों के बाद भी कमजोर नहीं हुई है। मेघवाल समाज के साथ-साथ अन्य जातियों में भी उनकी पैठ है। यही वजह है की पार्टी को निहालचंद मेघवाल से बड़ा उम्मीदवार श्रीगंगानगर लोकसभा क्षेत्र में कोई नजर नहीं आता है।
किस्मत के धनी है निहालचंद मेघवाल
अगर निहालचंद मेघवाल के राजनैतिक सफर पर गौर किया जाए तो ऐसा भी वक्त आया जब उन्होंने अपना रुख बदला लेकिन किस्मत के धनी रहे है मेघवाल। निहालचंद ने पार्टी में कई दफे बगावती रुख अपनाया, लेकिन वे हमेशा किस्मत के धनी साबित हुए। 1998 में पार्टी ने उन्हें रायसिंहनगर विधानसभा सीट से उम्मीदवार बनाया था और चुनाव अधिकारी ने उन्हेें पार्टी का चुनाव चिन्ह कमल आवंटित भी कर दिया। पर नाटकीय घटनाक्रम में पार्टी ने यह सीट समझौते के तहत हरियाणा राष्ट्रीय लोकदल को दे दी और उन्हें मैदान से हटने को कहा। इनकार करने पर उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया, पर वे डटे रहे और चुनाव जीत भी गए। उन्होंने 2013 के विधानसभा चुनाव में भी बागी तेवर दिखाया। पार्टी ने रायसिंहनगर से उनके दावे को खारिज कर बलवीर लूथरा को उम्मीदवार बनाया, तो उन्होंने अपने भाई को निर्दलीय लड़ाने का ऐलान कर दिया। पार्टी के दिग्गज नेताओं के समझाने पर निहालचंद ने ऐन वक्त पर यह विरोध बंद कर दिया था। अब कहना तो पड़ेगा ही की किस्मत हो तो निहालचंद मेघवाल जैसी!
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