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Hindi News - Article -गली में आया नागराज 13 फूट की थी नागिन


लुप्त होते जा रहे सपेरे

लोगों ने किए दर्शन दुर्लभ सांपों के जिनकी प्रजाति लुप्त हो रही है

सपेरे हमारे देश के विभिन्न रायों की संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा हुआ करते थे। वे रिहायशी इलाकों में घुस आए जहरीलें व खनरनाक सांपों को पकड़ कर लोगों की जिंदगियां में अपनी अहम भूमिका निभाते थे। सरकार ने सपेरे द्वारा सांप पकडऩे व उन्हें लोगों का मनोरंजन करने हेतु इस्तेमाल करने पर सन् 1991 में रोक लगा दी थी। ओर वन्य जीव संरक्षण कानून लागू कर दिया था। जिससें सपेरों की आजीविका पर एक महाड़ सा ही टूट पड़ा था। आज भी सपेरे इस प्रतिबंध को हटाने व लुप्त हो रही परपरा को बचाने का प्रयास कर रहे है।

बीन की स्वरलहरियों पर नाचते थे नागराज

तू नागन में सपेरा.................. गीत की धून पर बीन बजाता सपेरें ओर आस-पास देखने वालों को उमड़ा हुजूम। गोगामेड़ी का मुकेश नाथ एक पिटारे का ढक्कन खोलता है उसमें से धीरे-धीरे एक कोबरा सांप निकलता है बीन की धून पर खतरनाक कोबरा फनतान कर झूमना शुरू कर देता है। ये मुकेश एक प्राचीन सपेरे के काबिले से संबंधित है कई पीढिय़ों से यह कबीला सांप पकडऩे का काम करता आ रहा है उनको अपनी बीन की स्वरलहरियों पर नचाता आ रहा है। जिस से इनकी आजीविका चलती आ रही है। लेकिन प्रतिबंध के कारण सपेरे सांप पकड़ नहीं सकते ओर जब गांव में फैरी लगाते है तो लोग सांप दिखाने को कहते है ओर सांप पिटारे में नहीं होने का जबाव सपेरे द्वारा मिलते ही लोग भीक्षा भी नहीं डालते हैं । ऐसी स्थिति हो गई है सपेरों की। उस जमाने में गांव कि उगाड़ में सांप दिखाकर खूब कमा लिया करते थे। लेकिन अब पूरे दिन सांपों को लेकर लोगों को दिखाते हुए घूंमते रहने के बाद शाम को दो सौ रूपए मुश्किल से बनते है। जिसमें से पिटारे के सांप को भी दिन में तीन-चार बार दूध पिलाना पड़ता है। सपेरे सांप पड़कने की कला को छोड़ कर अन्य धंधे करने लगे है।

प्रतिबंध से लुप्त होती परपरा

सपेरे किसी समय भारतीय बाजारों व त्यौहारों का  अटूट हिस्सा हुआ करते थे। वे विश्व के अधिक विषेले सांपों पर नियंत्रण करने की अपनी असाधारण क्षमता से देखने वालों की भीड़ को जैसे समोहित कर दिया करते थे। उस जमाने में यदि किसी को सांप काट लेता था तो सपेरे ही उसका उपचार किया करते थे। या आस्था रखने वाले लोग सांप द्वारा काटे व्यक्ति को गांव की गेागामेडी पर ले जाया करते थे। जहां से इंसान मौत के मुंह से बहार निकल आता था। बुजुर्ग सांप के काटने को पान लगा हुआ कया करते थे। आज कल सांप के काटने पर उपचार करने वाले सपेरे तो सरकारी प्रतिबंध के चलते लुप्त हो गए ओर गोगामेडी के प्रति लोगों की आस्था आधुनिक युग में कम होने के कारण लोग सांप खाने पर अस्पताल का सहारा लेने लगे है। जहां दर्द ओर खर्च दोनों की दोगुने हो रहे है। लेकिन लोग फिर भी सांपों के राजा गोगा जी व भभूता जी की मेडी पर जाने में परहेज करने लगे है।

धोरों से लुप्त होती सांपों की प्रजाति
सपेरे ने जयलाल वर्मा के साथ ख़ास बातचीत में कहा की रेगिस्थान के रेत के धोरों में पाये जाने वाले सांप कालासांप,बांडी,नुगरी,सफेदा व अन्य सांप आज देखने को नहीं मिलते हैं। पहाड़ी क्षेत्र में आज भी सांपों की तादाद बहुत है। हरियाणा में घग्घर नदी के किनारे आज भी सांपों का हुजूम है जहां भयानक व जहरीलें सांप भी मिल जाऐगें। ये 13 फूट लंबाई वाली नागिन हरियाणा की ही प्रजाति हैं।  इन जीवों पर आए संकट ने ही जैव विविधता में एक बड़ा अंतर पैदा कर दिया हैं।
पत्रकार जयलाल वर्मा

पत्रकार जयलाल वर्मा

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