निजी स्कूल की मनमानी फ़ीस के नाम पर हो रही बल्ले बल्ले
अच्छी कमाई के लिए धनाड्य लोगो ने खोल लिए कमाई के लिए निजी स्कूल
दिलीप सेन की रिपोट प्रतापगढ़
प्रतापगढ़ । जिले भर में सहित उपखंड लेवल पर के कई निजी स्कूल इन दिनों अपनी हाई प्रोफाईल फिस के चलते काफी चर्चा में चल रहे है। शिक्षा हमारे जीवन का महत्वपूर्ण अंग है। हर अभिभावक यह चाहता है कि उनके बच्चों को बेहतर से बेहतर शिक्षा मिले ताकि उनका भविष्य बेहतर हो सके। लेकीन आज के समय में माता-पिता द्वारा अपनें बच्चों बेहतर शिक्षा दिलवा पाना टेड़ी खीर साबित हो रहा है। सक्षम माता-पिता अपने बच्चों को निजी स्कुलों में दाखिला दिलवाते है ताकि उनके बच्चे अच्छे से बेहतर माहोल में पड़ सके। लेकीन जब बात मिडिल क्लास और गरीब वर्ग की आती है तो निजी स्कुलों की हाई प्रोफाइल फिस के चलते मिडिल क्लास और गरीब वर्ग को निराश होना पड़ता है।
नगर में ऐसे कई निजी स्कुल चल रहे है जिनकों बच्चों के अभिभावकों की कोई परवाह नही है सूत्रौं से मिली जानकारी के अनुसार पता चला है की नगर के कई निजी स्कूल अपनी हाई प्रोफाइल फिस के साथ बच्चों के अभिभावकों से डोनेशन, अनुदान , दान , चंदा सहयोग के नाम से रसीदे काट कर अभिभावकों को परेशान करने में लगे हुऐ है? साथ ही बाकी कसर निकालने के लिऐ नगर के कई निजी स्कूलों ने नया तरीका निकाला है। पाठयकर्म सामग्री गणवेष आदी अपने चहेते दुकानदारों से अच्छे मोटे दामों पर बिकवाकर खूब मलाई झाड़ने में लगे हुऐ है। नगर के कई निजी स्कूलों मे बालकों के अभिभावकों को स्कूल संचालकों द्वारा पाठ्यक्रम सामग्री या तो स्कूलों में ही अच्छे मोटे दामों में दे दी जाती है या अपने किसी चहेते दुकानदार का पता दे दिया जाता है। और जब बेचारे अभिभावक स्कूल संचालकों द्वारा बताई गई दुकान पर जाकर पाठ्यक्रम के पुरे कोर्स का दाम सुनते है तो अचानक ही उनके पेरों तले जमीन खिसक जाती है।
लेकीन मजबूरी मे उनहे मेहंगा पाठ्यक्रम खरीदना ही पड़ता है उसका कारण यह है कि नगर के कई निजी स्कूल सचांलको ने एक-दो दुकानों को ही अपने स्कूलों के पाठ्यक्रम यूनिफार्म के लिए अधिकृत किया हुआ है। यही नहीं अभिभावकों को प्रवेष के साथ ही पर्ची पकड़ा दी जाती है कि उन्हें किस दुकान से पाठ्यक्रम सामग्री यूनिफार्म लेनी है। आरटीई कानून के तहत सभी स्कूलों का पाठ्यक्रम समान रहेगा , लेकीन कई निजी स्कूल अपना- अपना पाठ्यक्रम चला रहें है। या यह कह सकते है कि शिक्षा के मंदीर कहलाने वाले ऐसे कई निजी स्कूल भ्रष्टाचार का अड्डा बन कर रह गऐ है।सख्त कार्रवाई का प्रावधानशिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत इस तरह की मनमानी करने वाले निजी स्कूल संचालकों पर कड़ी कार्यवाही का प्रावधान है। समय रहते स्कूल संचालक नियमों का पालन नही करते हैं तो उन पर शिक्षा विभाग को नियमनुसार कार्यवाही करने का अधिकार है।
संचालकों द्वारा तय दुकानों से किताबों की बिक्री होती है तो इसकी शिकायत मिलने पर स्कूल की मान्यता भी निरस्त करने का प्रावधान है। वेसे ज्यादातर निजी स्कूलों में देखा जाऐ तो शिक्षा विभाग के नियम ताक पर ही रखे जाते है। हर साल देखने में आता है कि निजी स्कूल शिक्षा विभाग के निर्देषों को अनदेखा करते हैं। इससे अभिभावको पर आर्थिक बोझ बड़ता जा रहा है। निजी स्कूल स्टेशनरी की दुकान का नाम बताकर किताबे खरीदने के लिए अभिभावकों को बाध्य करतें हैं। बाजार में स्टेशनरी की दुकानों पर प्रिंट रेट पर ही किताबें दी जाती है। जिनहे विवष होकर अभिभावकों को खरीदना पड़ता है।
निजी स्कूलों और प्रकाषकों के इस खेल में अभिभावक खुद को ठगा सा महसूस करतें है। अगर देखा जाऐ तो शिक्षा आज सबसे सफल और कमाई करने का प्रमुख व्यवसाय बन कर रह गया है।नेताओं द्वारा राजनीतिक संरक्षणनगर में चल रहे कई निजी स्कूलोन के संचालकों की राजनीति में गहरी पेठ के चलते भी नगर के कई निजी स्कूलों मे मनमानी का खेल बदसतुर जारी है। उसकी खास वजह यह भी है कि नगर के कई स्कूल संचालक कही ना कही किसी ना किसी राजनीतिक पार्टी से जुड़े हुऐ है इसलिये वो अपना राजनीतिक रोब झाड़ने से भी नही चुकते और अगर कोई अभिभावक इनके खिलाफ आवाज उठाने की कोशीश करता भी है तो यह साफ साफ कह देते हैं कि आप फिस देने मे सक्षम हो तोही स्कूल में दाखिला करवाओ नही तो अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में ही भर्ती करवाओ वेसे नगर के कई स्कूल संचालकों को राजनीतिक संरक्षण तो प्राप्त है ही साथ में यह भी देखने को मिला है कि कई बिल्डरों ने स्थायी कमाई के लिए भी स्कूल खोल लिए हैं।
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