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फ़ोटो सोर्स गूगल |
कुलदीप शर्मा की कलम से दर्द
हनुमानगढ़ । देश मे लगातार हो रही पत्रकारों की हत्या ,हमलों व षड्यंत्रो से जहां राष्ट्र का चौथा स्तम्भ असुरक्षित महसूस कर रहा हैं ! आजकल पत्रकारिता में एक अजब सा मोड़ आ गया हैं जिसके चलते खबरों का वो पहले जैसा अंदाज़ व नज़रिया कहीं दिखाई नहीं दे रहा हैं ! वो दौर भी क्या दौर हुआ करता था जब खबरों की दुनिया मे गजब प्रतिस्पर्धा हुआ करती थी । हर कोई खौजी पत्रकारिता से सबको हैरान कर देने वाली रिपोर्ट देता हैं जिसको लेकर ग्रामीण,तहसील व जिले से लेकर देश-प्रदेश में हलचल मच जाया करती थी लेकिन अब तो मानो सभी अपने धर्म को भूलते जा रहे हैं ! ये कहना भी अनुचित नहीं होगा कि देश का कलमकार अपने आप को असुरक्षित महसूस करने लगा है जिसके चलते वो भयभीत रहता हैं !
ग्रामीण पत्रकारिता सबसे बड़ी चुनौती
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खबरों की दुनिया में मुख्यधारा की पत्रकारिता की अपनी अलग चुनौतियां तो हैं ही, ग्रामीण इलाकों में भी चुनौतियां कुछ कम नहीं हैं । ग्रामीण पत्रकारिता बहुत आसान नहीं है । संसाधनों की कमी से जूझते ग्रामीण पत्रकार की चुनौतियों में से सबसे बड़ी चुनौती अनियमित तनख्वाह है । कई बार तो इन पत्रकारों को दो जून की रोटी जुटाना भी मुश्किल हो जाता है । इसलिए गांवों में जो भी लोग पत्रकारिता से जुड़े हैं वे कोशिश करते हैं कि उनके पास आय के दूसरे स्रोत भी हों ताकि परिवार का खर्च चलाने में मुश्किलें न आएं ।
कॉन्ट्रेक्ट आधारित नौकरी से पत्रकारिता की स्वतंत्रता हुई खत्म
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हमे भी ज्ञात है कि इसलिए वे खेती जैसे आजीविका के दूसरे साधनों पर भी निर्भर रहते हैं । मैं एक दिन किसी वरिष्ठ पत्रकार के विचार पढ़ रहा था जो मुझे सटीक से लगे ,मैग्सेसे पुरस्कार प्राप्त और भारत में ग्रामीण पत्रकारिता के जाने-पहचाने नाम पी. साईनाथ भी इस बात से सहमति रखते हैं । उनके अनुसार, ‘ग्रामीण पत्रकारों को बहुत ही कम वेतन पर गुजारा करना पड़ता है, जिसकी वजह से उन पर दबाव ज्यादा होता हैं । पत्रकार संगठनों की कमी और कॉन्ट्रैक्ट (ठेका) आधारित नौकरी के चलते पत्रकारों की स्वतंत्रता खत्म हो रही है ।
जाति व आर्थिक स्थिति भी आती हैं आड़े
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गांवों में पत्रकार जब किसी खबर की छानबीन करता है तब जाति और आर्थिक स्थिति जैसे तमाम तत्व काम करते हैं । पी. साईनाथ कहते हैं, ‘मामलों का अतिसंवेदनशील होना भी ग्रामीण पत्रकारों के लिए बड़ा मसला है । ग्रामीण क्षेत्रों में पत्रकारिता करते वक्त हम (शहरी मध्य वर्ग पेशेवर) में से अधिकांश को हमारी जाति, श्रेणी और सामाजिक पृष्टभूमि के आधार पर फायदा मिलता है । ग्रामीण पत्रकारों के लिए कई बार ये सब बड़ी चुनौतियां साबित होती हैं ।’
ग्रामीण पत्रकार का खबरों से नाम विलुप्त होना भी बड़ी समस्या
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मुख्यधारा के पत्रकारों की तुलना में अपने संस्थानों से सहयोग की कमी के कारण उनकी रिपोर्ट की गुणवत्ता में कमी आती है । किसी लेखक को जब मैने पढ़ा तो उन्होंने लिखा कि ‘पेड न्यूज से संबंधित कोई खबर अगर एक ग्रामीण पत्रकार करता तो उसे कई तरह के गंभीर परिणाम भुगतने पड़ते हैं ! इतना ही नहीं खबर को प्रकाशित करवा पाना उसके लिए और बड़ी चुनौती साबित होता । उनकी तुलना में हम लोग ज्यादा महफूज हैं, इसलिए उनके लिए स्थितियां और कठिन हैं ऐसा भी कहा जाता है की शहरी पत्रकारों की तुलना में ग्रामीण पत्रकारों के लिए इस तरह की रिपोर्टिंग कहीं ज्यादा श्रमसाध्य और खतरों से निपटना कठिन होता है ।’ पत्रकरिता के क्षेत्र में इस तरह के उदहारण भी मौजूद हैं जहां ग्राउंड रिपोर्ट करने पर ग्रामीण पत्रकारों को उनका मेहनताना तक नहीं मिल पाता. ‘अक्सर देखा जाता है कि ग्रामीण पत्रकार मौके पर मौजूद होता है । ऐसे में गांवों से जब कोई खबर राष्ट्रीय स्तर की बनती है तो यह ग्रामीण पत्रकार की वजह से ही संभव हो पता है । कई बार ऐसा होता है जब गांव की कोई खबर बड़ी होकर राष्ट्रीय महत्व की हो जाती है, तब मुख्यधारा का मीडिया उस ग्रामीण पत्रकार का नाम तक नहीं देता जो उस खबर को सबसे पहले उठाता है ।’
सुविधाओ की कमी से झुझते हैं ग्रामीण पत्रकार
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देश के ग्रामीण इलाकों में बुनियादी और दूसरी सुख-सुविधाओं की कमी का भी सामना पत्रकारों को करना पड़ता है । ‘कहीं आने-जाने के लिए काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है, क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में कहीं आने-जाने के साधन बहुत ही सीमित होते हैं । इतना ही नहीं संस्थानों से कहीं आने-जाने का खर्च मिल पाना भी मुश्किल होता है। इसके अलावा गांवों में इलेक्ट्रॉनिक सुविधाओं की भी कमी होती है। इंटरनेट की स्थिति बहुत ही खराब होती है । स्पीड नहीं मिल पाती और खबर भेजने में काफी दिक्कत होती है ।’ दूसरे ग्रामीण पत्रकार आय के पहले स्रोत के रूप में खेती पर निर्भर हैं । ‘ये तो हम शौक के लिए करते हैं। आजीविका के लिए हम पूरी तरह से पत्रकारिता पर निर्भर नहीं रह सकते ।'
अपने को मजबूत करे ग्रामीण पत्रकार
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राष्ट्रीय स्तर पर शोहरत पाने के लिए ग्रामीण पत्रकारों को अभी लंबी लड़ाई लड़नी है । तब तक ग्रामीण पत्रकारों को न सिर्फ अपने ऊपर के दबाव से निपटना होगा, बल्कि सामाजिक लांछन, राजनीति और गरीबी से भी लड़ना होगा । पत्रकारों को अपनी क्षमता के अनुसार कार्य करने की जरूरत हैं उन्हें जरूरत हैं सही व सच्चे मार्गदर्शन की ।
जय हिंद, जय पत्रकारिता
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