ऐ *भगवान* मेरा समय बुरा हैं, पर मैं *घबराता* नहीं,
*जीत* सच्चाई की होती हैं मैं क्यूं *हार* मानने लगा हुँ,
ऐ *खुदा* तेरा *इंसान* रोने लगा है,
*सच्चाई* की *कलम* को कुछ होने लगा है,
*तूँ* ऊपर से *बैठ* कर क्या देख रहा हैं,
तेरा *इंसान* अपनो की ही *जड़े* काटने लगा हैं,
ये *कलमकारों* के लिए कैसा *वक़्त* ला दिया ऐ *खुदा*
*लिखने* के बाद *कलमकार* भी *जख्मी* होने लगा हैं,
अब ले भी ले इस *युग* में *अवतार*,
क्यूँ *सच्चाई* को हर वक़्त *तपती* में तपाने लगा हैं,
तूँ कहे तो *दुनिया* को कह दूं कि अब खुल कर करो *अत्याचार*
ना कोई *भगवान* हैं ना ही *सच्चाई* अब सब *गलत* होने लगा हैं,
अब *नेताओं* को नहीं *चिंता* अपने *शहर* की
अब *सरकार* का *नुमाइंदा* भी *फैल* होने लगा हैं,
अब भी कुछ *बिगड़ा* नहीं हैं, *सम्भाल* ले अपनी *दुनिया* को
कहीं ऐसा तो नहीं ये *इंसान* तुम्हे तुम्हारी *गद्दी* समेत *उखाड़ने* लगा हैं
*कलमकारों* व *क्रांतिकारियों* ने *आजाद* किया हैं *भारत* को,
अब क्यूँ हर किसी का एक दूसरे से *विवाद* होने लगा हैं,
मेरी *कलम* सच्चाई लिखती रहेगी
अब मैं भी *देखता* हुँ ,तूँ कितना सताने लगा है ।
पंक्ति *निर्माता* व *लेखक*
*कुलदीप शर्मा*
छोटा सा *कलमकार*
9414540955
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