श्रीगंगानगर।[ गोविंद गोयल] वर्षों की दोस्ती टूट जाने के बाद दोस्त की राह को मुश्किल बनाने की कोशिश करने वाले को क्या कहा जाए, ये हर व्यक्ति की सोच पर निर्भर है। अपने पुराने दोस्त की पराजय को ही अपनी जय समझने वाले इंसान को क्या समझा जाए, इस संबंध मेँ हर इंसान के विचार अपने विवेक और अनुभव के अनुसार होंगे। भूमिका गुरमीत सिंह कुन्नर और घनश्याम शर्मा के मनमुटाव के संदर्भ मेँ। जब से घनश्याम शर्मा और गुरमीत सिंह कुन्नर अलग हुए हैं, तब से घनश्याम शर्मा का एक ही लक्ष्य है, और वो है गुरमीत सिंह कुन्नर के राजनीतिक जीवन का दी एंड करना।
इसके लिए वे कई साल से कोशिश मेँ हैं। इस बार उन्होने कुन्नर विरोधियों को इकट्ठा कर एक मंच पर लाने की कोशिश की है। इसके लिए दिवाली का स्नेह मिलन किया गया। बेशक उसमें भीड़ नहीं थी, लेकिन पंडित जी को थोड़ी तसल्ली इस बात की जरूर हुई होगी कि कुन्नर विरोधी कांग्रेस नेता आए। यूं पंडित जी ने एक इकबाल भंडाल नाम के अपने एक व्यक्ति को टिकट के लिए आगे कर रखा है। श्रीकरनपुर विधानसभा क्षेत्र मेँ इकबाल भंडाल के पोस्टर लगे हैं। बैनर हैं। जिनमें घनश्याम शर्मा का बड़ा चित्र है। कई सौ घरों मेँ निमंत्रण पत्र और मिठाई का डिब्बा भेजा गया। भंडाल की गिनती कांग्रेस मेँ किस रूप मेँ है, ये खुद पंडित जी भी जानते होंगे।
इसमें कोई शक नहीं कि पंडित जी बहुत तिकड़मी है। रणनीति मनाने के मास्टर माइंड माने जाते हैं। दिल खोल के पैसा खर्च करने की क्षमता भी है। लेकिन आज के दिन गुरमीत सिंह कुन्नर राजनीति मेँ बहुत आगे निकल चुके हैं। भंडाल को सारथी बना उनके पीछे जाया तो जा सकता है, लेकिन कुन्नर को पकड़ना मुश्किल लगता है। क्योंकि टिकट के लिए भंडल का कद बहुत छोटा है। फिर भंडाल के नेतृत्व मेँ बाकी कांग्रेस नेता पंडित जी की छतरी के नीचे आएंगे, इसमें संदेह है। पंडित जी बुलावे पर आने वाले किस कांग्रेस नेता मेँ आज के दिन निर्दलीय लड़ने की ताकत है, ये पंडित जी से छिपा हुआ नहीं है। उनमें से तो कोई पार्टी टिकट पर भी जीत सकने की क्षमता नहीं रखता, निर्दलीय चुनाव लड़ विधानसभा पहुँचने का ख्वाब तो बड़ी बात है।
इस वक्त तो करनपुर की राजनीतिक स्थिति यही है। कल राजनीति का ऊंट किस करवट बैठ जाए कौन जाने! किसी समय श्रीगंगानगर मेँ ऐसी स्थिति राधेश्याम गंगानगर के खिलाफ हुआ करती थी। राधेश्याम एक तरफ और बाकी सभी नेता एक ओर। आज करनपुर मेँ ठीक ऐसा ही परिदृश्य है, कुन्नर वर्सेज़ उनके सारे विरोधी। पहला टारगेट,कुन्नर को किसी भी सूरत मेँ कांग्रेस की टिकट ना मिले। दूसरा,टिकट मिल जाए तो जीत ना हो। इसके लिए चाहे कुछ भी करना पड़े।
जिस प्रकार राधेश्याम गंगानगर के विरोधी जानते थे कि उनके पास राधेश्याम गंगानगर की कद काठी का कोई नेता नहीं जो उनकी जगह टिकट निकाल सके। यही कमजोरी श्रीकरनपुर मेँ कुन्नर विरोधी नेताओं मेँ है। जिस प्रकार की राजनीतिक कमजोरी मेँ कांग्रेस पार्टी मेँ राष्ट्रीय स्तर पर है, वह किसी भी हालत मेँ कोई रिस्क नहीं लेना चाहेगी। श्रीकरनपुर से लेकर जयपुर तक सभी जानते हैं कि श्रीगंगानगर जिले मेँ कांग्रेस की सबसे सुरक्षित सीट गुरमीत सिंह कुन्नर के रूप मेँ श्रीकरनपुर ही है। जब अपने अस्तित्व को बचाने का सवाल हो तब पार्टी प्रयोग करने की स्थिति मेँ नहीं होती। अब कांग्रेस को अपना अस्तित्व बचाना है। एक एक सीट की गिनती होगी।
कांग्रेस के बड़े पदाधिकारी इस बात से अंजान नहीं होंगे कि टिकट ना मिलने पर गुरमीत सिंह कुन्नर निर्दलीय चुनाव लड़ने की हैसियत रखते हैं। पंडित जी की छाया मेँ आने को उतावले होने वाले इस बात से अंजान नहीं होंगे फैक्ट्री मेँ हाजिर होने का अर्थ है इकबाल भंडल को नेता मानना। पंडित जी की हां मेँ हां मिलाना। ये संभव नहीं लगता। हां, अपने विरोधी को पराजित करने के लिए कोई अपना कद घटा दे या स्वाभिमान को भुला दे तो फिर कुछ भी संभव है।
अभी एक साल बाकी है। सब टिकट के लिए अपने अपने प्रयास कर रहे हैं। पंडित जी का प्रयास है कुन्नर की राजनीतिक रूप से नीचे गिराना। बेशक वे सीधे सीधे कुन्नर के खिलाफ कुछ नहीं कहते। उनके प्रति अपने शब्दों और वाणी को भी कठोर नहीं करते, इसके बावजूद उनका लक्ष्य एक ही है, कुन्नर की पराजय। लेकिन इसके लिए उन्होने वो मोहरा चला है जो ना तीन मेँ ना तेरह मेँ। इस मोहरे की ताकत बढ़ाने और रक्षा के लिए हाथी, घोड़े, ऊंट, वजीर कितने जुड़ते हैं, इस बारे मेँ अभी कुछ नहीं कहा जा सकता।
फिलहाल दो लाइन जो जो बहुत पहले सुनी थी कहीं-
दुश्मनी जम के करो, ये गुंजाइश रहे मगर
फिर कभी दोस्त बने तो शर्मिंदा ना हों।
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