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राजस्थान -टाक के बढ़ते ग्राफ ने उड़ाई नेताओं की नींद

एसडीएम यशपाल आहूजा प्रहलाद टाक के साथ डस्टबिन बांटते हुए

श्रीगंगानगर।[गोविंद गोयल] एक साल बाद विधानसभा चुनाव मेँ किस पार्टी की टिकट किसको मिलेगी। कौन बिना टिकट चुनाव लड़ेगा। कौन  आप से होगा और कौन अपने आप से, कुछ भी कहना मुश्किल है।

 लेकिन फिलहाल ये जरूर है कि बीजेपी के प्रहलाद राय टाक ने अपनी पार्टी के ही नहीं दूसरी पार्टी के नेताओं की भी नींद मेँ खलल जरूर डाला है। आराम से घूम रहे नेताओं को बेचैन किया है। अपने आप को चर्चित ही नहीं किया बल्कि लोगों की निगाह मेँ भी आए हैं। सट्टा कंपनी लेकर धानमंडी और गली चौराहों से दुकानों तथा  ड्राइंग रूम मेँ होने वाली राजनीतिक चर्चाओं मेँ प्रहलाद टाक का नाम लिया जाने लगा है।

 उनको गंभीर उम्मीदवार के रूप मेँ देखा जाता है। आज के दिन जितना कोर्डिनेशन प्रशासनिक अधिकारियों के साथ प्रहलाद टाक का है और किसी का भी नहीं दिखता।  कलक्टर का बस अड्डे पर उनके सफाई अभियान मेँ आना और खुद एसडीएम का उनके साथ सड़क पर डस्टबिन बांटना, इस बात का प्रमाण है। प्रहलाद टाक ने यह सब कैसे मैनेज किया, वही जाने। लेकिन जनता को ये  दिखाई दे रहा है कि सड़क पर प्रहलाद टाक के साथ अधिकारी हैं। 

जो कलक्टर किसी प्रोग्राम मेँ नहीं जाते वे सफाई अभियान मेँ प्रहलाद टाक के साथ खड़े हैं। एसडीएम सड़क पर डस्टबिन बांटते हैं। जबकि वे कोई नगर परिषद के आयुक्त तो है नहीं जिन पर सीधे सीधे शहर की सफाई और रखरखाव की ज़िम्मेदारी होती है। जनता को इससे क्या लेना कि अधिकारी कैसे मैनेज किए गए। उनको बस ये दिखता है कि प्रहलाद टाक को प्रशासन तवज्जो देता है। संजय महिपाल धीरे धीरे राजनीतिक रूप से कमजोर हो रहे हैं। 

जनता की नजर मेँ वे टिकट की दौड़ मेँ पीछे और पीछे हुए हैं। यूआईटी अध्यक्ष के रूप मेँ ना तो वे कोई राजनीतिक पकड़ दिखा पाये और ना कुछ ऐसा कर सके जिससे उनकी पहचान एक मजबूत नेता के रूप मेँ स्थापित हो पाती। वे दबे दबे दिखाई देते हैं। उनका तालमेल ना तो प्रशासन से है और ना अभी तक शहर के हर क्षेत्र के नागरिकों से उनकी पहचान ही  हो पाई है। हालांकि उनके पास मौका है। खुद भी सक्षम है और सरकारी साधन भी हैं, लेकिन उनकी दुविधा यही है कि वे 24 घंटे की राजनीति नहीं कर सकते। कभी कभी ऐसा लगता है जैसे वे आज की राजनीति मेँ खुद को समायोजित ही नहीं कर पा रहे हों।

 ऐसे मेँ वे उनको  जनता की नजर मेँ दमदार संभावित उम्मीदवार की दौड़ से बाहर मान लिए जाने का डर हो सकता है। रमेश राजपाल फिर से निकाल पड़े हैं। राजकुमार सोनी है। सुना है प्रदीप धेरड़ भी अपने आप को इस श्रेणी मेँ रख रहे हैं। बीजेपी जिला अध्यक्ष को भी श्रीगंगानगर से बीजेपी टिकट के सपने आते हैं। और भी हैं अनेक नेता जिनको लगता है कि वे ही पार्टी के लिए बेहतर उम्मीदवार हो सकते हैं, श्रीगंगानगर से। किन्तु इनमें से फील्ड मेँ कोई नहीं है। सीधे जनता से संवाद किसी का नहीं है। 

सार्वजनिक स्थानों पर इनकी मौजूदगी नाम मात्र की होती है। जनता की नजर मेँ टिकट के लिए इनकी दावेदारी केवल दिखावा है। छोटे कद की बड़ी बात है। यूं अशोक नागपाल भी आते जाते गंगानगर पर निगाह मार लेते हैं। पत्रकार और पुराने भाजपाई शिव स्वामी भी खुद को इस लाइन मेँ मानते हैं। परंतु ये सब तब होगा, जब श्रीगंगानगर मेँ विधानसभा के चुनाव होंगे। क्योंकि सोशल मीडिया पर कांग्रेस नेता राजकुमार गौड़ के उत्साही कार्यकर्ताओं और समर्थकों की पोस्ट पढ़ के कई बार चुनाव के संदर्भ मेँ कन्फ़्यूजन हो जाता है। 

क्योंकि वे तो गौड़ साहब को 2018 का एमएलए लिखने लगे हैं। इन शब्दों से तो ऐसे लगता है कि राजकुमार गौड़ तो एमएलए बन ही गए। जब गंगानगर का एमएलए है तो फिर चुनाव किसके लिए होंगे। बस, यही शब्द असमंजस मेँ डाल देते हैं। समय ही इस कन्फ़्यूजन को दूर करेगा। 

चार  लाइन पढ़ो-

सब के सब अंधे, बहरे और  गूंगे हैं जनाब 
तुम क्यों बेवजह यहां बवाल करते हो। 

झूठ की नगरी मेँ सच की बात करते हो

किस दौर के हो, बड़ा कमाल करते हो।

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