क्यों लायी वसुंधरा सरकार ये अध्यादेश, पर्दे के पीछे की कहानी।
खो नागोरियन मे 200 बीघा ईकोलोजिकल भूमि को जेडीए ने आवासीय मे बदल दिया था जिसके विरूद्ध यशवंत शर्मा ने जनहित याचिका लगायी थी उस पर हाईकोर्ट ने 2005 मे आदेश दिया कि भविष्य मे ईकोलोजिकल भूमि का भू-उपयोग नहीं बदला जावे लेकिन इस आदेश की धज्जियाँ उड़ाते हुए 2006 मे जेडीए ने मिलीभगत करके 1222.93 हेक्टेयर भूमि का उपान्तरण ईकोलोजिकल से आवासीय व मिश्रित भू उपयोग कर दिया क्योंकि ये ज़मीन ज़्यादातर IAS-IPS ने ख़रीद रखी थी
जिनमें डी.बी.गुप्ता,वीनू गुप्ता, दिनेश कुमार गोयल, मधुलिका गोयल, सुनील अरोड़ा, रीतू अरोड़ा, सत्यप्रिय गुप्ता, प्रियदर्शी ठाकुर , ईश्वर चन्द श्रीवास्तव , अलका काला, पुरूषोत्तम अग्रवाल, डाक्टर लोकेश गुप्ता, ऊषाशर्मा, एम के खन्ना, केएस गलूणडिया, चित्रा चोपड़ा, पवन चोपड़ा अशोक शेखर , संदीप कुमार बैरवा वग़ैरह हैं इतना ही नहीं इन अधिकारियों ने जेडीए से इनके आसपास की ज़मीनों को सड़के बनाने के लिए अधिग्रहण करवा दिया ताकि इनकी ज़मीनों के आगे 160 फ़ीट चौड़ी सड़के बन जाएँ । 21.01.017 को जोधपुर हाईकोर्ट ने मास्टर प्लान याचिका मे आदेश पारित किया और इस 1222 हैक्टेयर ज़मीन का रिकोर्ड मँगवाया
लेकिन जेडीए ने कोर्ट को गुमराह करने के लिए उपांतरण का रिकोर्ड ही पेश किया लेकिन वो रिकार्ड नहीं पेश किया जिसके द्वारा उपांतरण किया गया था और न्यायालय मे कहा कि इसके अलावा कोई रिकोर्ड नहीं है हमने ज़बर्दस्त एतराज़ किया और हाईकोर्ट ने फटकार लगायी तो जेडीए ने रिकोर्ड पेश किया तब पोल खुली कि मुख्य नगर नियोजक ने ईकोलोजिकल से भूउपयोग बदलने से इंकार किया था
लेकिन इन अधिकारियों ने मिलिभगत करके भू-उपयोग परिवर्तन करा लिया और कोड़ियों की ज़मीन करोड़ों रूपए की होगयी जिसमें मोहन लाल गुप्ता एम एल ए और अशोक परनामी एमएलए वग़ैरह भी शामिल हैं हमने याचिका मे सारे दस्तावेज़ व जमाबंदियां भी पेश की थी हाईकोर्ट ने सरकार से पूछा था कि क्या कार्यवाही करोगे और ये जानकारी मिलने के बाद हम भी रिपोर्ट दर्ज करने की कार्यवाही कर रहे थे कि सरकार इनको बचाने के लिए ये ordinance लेकर आगयी जो असंवैधानिक है।
इसके अलावा हम हाईकोर्ट से बारबार कह रहे थे कि जेडीए योजनाओं का नियमन बिना ज़ोनल प्लान बनाए कर रहा है जो अवैध है हाईकोर्ट ने मना किया लेकिन नियमन लगातार जारी रहा मैंने अवमानना याचिका 02 जून को लगायी तो सरकार एवं अधिकारी समझ गए कि वे जेल जा सकते हैं तो सरकार ये ordinance लायी ताकि अधिकारियों को बचाया जा सके।और इनके ख़िलाफ़ FIR भी दर्ज नहीं हो सके।
सोशल मीडिया से साभार.....
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