Advertisement

Advertisement

श्रीगंगानगर : हर तरफ चर्चा टिकट के दावेदारों की


श्रीगंगानगर।[गोविंद गोयल] एक साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव की गरमाहट राजनीतिक गलियारों मेँ ही नहीं अब हर उस स्थान पर दिखाई और सुनाई देने लगी है, जहां एक से अधिक व्यक्ति हों।  चर्चा शुरू बेशक किसी मुद्दे पर हो परंतु बीच मेँ टिकट जरूर आ जाती है। दावेदार कौन कौन है? किस दावेदार की दावेदारी किस कारण से मजबूत है! किसको टिकट मिलने से परिणाम क्या रहेंगे, इन सब का विश्लेषण चर्चा मेँ शामिल हर व्यक्ति कर ही लेता है। 



टिकट का मापदंड क्या होगा? जाति का कितना महत्व रहेगा? बागी कौन कौन हो सकते हैं? कौन सस्ते मेँ निपट सकता है और टक्कर देने की स्थिति मेँ कौन होगा, ये सब चर्चा के खास विषय होते हैं। विभिन्न सूत्रों से जो जानकारी मिली या राजनीतिक गलियारों मेँ जो नाम हैं, उनके आधार मेँ ये कहना तो बनता ही है कि इस बार जिले मेँ दोनों पार्टियां फिर से कोई प्रयोग करे तो कोई बड़ी बात नहीं। कांग्रेस को अपनी गिरती साख बचानी है और बीजेपी को अपनी सत्ता। इसके लिए कोई पार्टी कुछ भी कर सकती  है। इनका लक्ष्य केवल जीत होगा। जीत सकने वाला  व्यक्ति कौन है, कैसा है, किस विचार का है, कौनसी पार्टी मेँ था, कौनसी मेँ जा सकता है, इसकी कोई वैल्यू नहीं। जिसके जीतने की संभावना अधिकतम होगी, उसी पर पार्टी का दाव  लगेगा। एक एक सीट के लिए मारा मारी होगी। कोई पार्टी  जरा सा भी रिस्क नहीं लेगी। कौनसा नेता किस पार्टी का झण्डा उठा ले, कुछ भी नहीं पता।


 हवा बीजेपी के खिलाफ है, इसमें कोई शक नहीं। परंतु कांग्रेस नेताओं मेँ सत्ता के लिए मचे घमासान मेँ असली जीत किसकी होगी, कौन जाने! घात -प्रतिघात की तैयारी भी अंदर खाने है। बीजेपी-कांग्रेस के जिन जिन नेताओं की गुजरात-हिमाचल मेँ ड्यूटी लगी है, उनके समर्थक उत्साहित हैं। उनका मानना है कि उनके नेता की तो टिकट पक्की ही है। परंतु नेता जानते और समझते हैं कि टिकट यूं नहीं मिला करती। टिकट मिलते हैं नेताओं के गुट को। टिकट के लिए देखे जाते हैं जातिगत समीकरण। महिलाओं की संख्या। सभी को साथ लेकर चलना पार्टियों की मजबूरी होती है। इस मजबूरी के चलते एक दो सीट से हाथ धोना पड़े तो धोते भी हैं। एक बार फिर जिक्र कर दें कि श्रीगंगानगर -हनुमानगढ़ जिले की 11 सीटों मेँ से 3 एससी के लिए रिजर्व हैं। करनपुर सीट को जट सिख के लिए अघोषित रूप से आरक्षित मान लिया गया है।


 श्रीगंगानगर को छोड़ बाकी सभी सीटों पर प्रमुख पार्टियों के उम्मीदवार जाट ही होते हैं। 2013 मेँ कांग्रेस ने सालों बाद श्रीगंगानगर मेँ जाट नेता को टिकट दी। नोहर से जाट की बजाए अग्रवाल को उम्मीदवार बनाया। सादुलशहर से ओबीसी को टिकट दिया। कांग्रेस सूरतगढ़ से महिला को टिकट देती रही है। बीजेपी हर बार एक टिकट अरोड़ा बिरादरी के नाम लिखती है। एक साल बाद फिर इन्हीं क्षेत्रों मेँ किसी नए प्रयोग की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। पुराने नेता अपने घरों को लौट सकते हैं। कुछ अपने बसे बसाये घर को छोड़ दूसरे घर मेँ शरण लें तो कोई अचरज नहीं। वंशवाद नहीं हुआ तो सादुलशहर मेँ बीजेपी का नया चेहरा दिखाई दे सकता है। जमींदारा पार्टी का वजूद रहेगा या नहीं, इस पर भी खूब चर्चा है। पार्टी के मालिक चुप हो बैठने वाला जीव नहीं है। 


वो आर्थिक रूप से थोड़ा कमजोर हुए होंगे, उनके इरादे आज भी बुलंद और मजबूत हैं। उम्मीदवारों की लिस्ट बना अपनी दराज मेँ धर रखी है। गुजरात चुनाव का इंतजार है। बीजेपी की ओर जाने का मूड अभी तो नहीं लगता। कांग्रेस से मोल भाव हो तो हो। श्रीगंगानगर तो है ही, नजर हनुमानगढ़  पर भी है। जिधर गैर जाट एमएलए पर चिंतन और मंथन कर रहे हैं वोटर। आप चाहे किसी की तलाश ना करे जिले मेँ, लेकिन चुनाव लड़ने के कई इच्छुक आप की तलाश मेँ है। लगता है 2018 के चुनाव मेँ आप की उपस्थिति कहीं ना कहीं होगी जरूर। गणित के ये तमाम फार्मूले गुजरात चुनाव के बाद लगने शुरू हो जाएंगे। जो फार्मूला जहां फिट होगा, कर दिया जाएगा। जय राम जी की। 


दो लाइन पढ़ो-

पत्थर से पत्थर मिले कैसे करे वो बात 
पत्थर तो फिर पत्थर है क्या समझे जज़्बात 

एक टिप्पणी भेजें

3 टिप्पणियाँ

इस खबर को लेकर अपनी क्या प्रतिक्रिया हैं खुल कर लिखे ताकि पाठको को कुछ संदेश जाए । कृपया अपने शब्दों की गरिमा भी बनाये रखे ।

कमेंट करे

Advertisement

Advertisement