जनता की गाढ़ी कमाई से अय्याशी करने वाले क्या हमारे सेवक हो सकते है ?
इस पर आपका जवाब होगा कतई नही ।
बल्कि इनको सेवा की आड़ में मेवा खाने वाले लुटेरो अथवा पिस्सू की संज्ञा दी जाए तो कतई अतिशयोक्ति नही होगी ।
देश मे प्रत्येक सांसद को करीब 7 लाख रुपया तथा विधायक को 3 लाख रुपये वेतन और भत्ता, हाई क्लास सुविधाएं, हवाई और ट्रेन की उच्च श्रेणी में मुफ्त की यात्रा, सहायक के तौर पर निजी सहायक की सुविधा । सुरक्षा का तामझाम और इसके अलावा हमारे ये जन प्रतिनिधि किसी ना किसी कमेटी के सदस्य होते है ।
बैठक में उपस्थित होने पर मोटा भत्ता ।
इसके अतिरिक्त दस-बीस रुपये में लग्जीरियस खाना । देश-विदेश में सपत्नीक घूमने के अवसर इत्यादि, इत्यादि।
बावजूद इसके विधायक और सांसद हमेशा कम वेतन और भत्तो का रोना रोते है ।
जब भी किसी सदन में इन जन प्रतिनिधियों के वेतन बढ़ोतरी का प्रस्ताव पेश होता है, तब कोई माई का लाल इसका विरोध नही करता । चाहे वह प्रतिनिधि कांग्रेस, भाजपा, जेडीयू, टीएमसी, सीपीएम हो या अन्य किसी और दल का, सब सुर में सुर मिलाते दिखाई देते है ।
एक जन प्रतिनिधि को करीब 50 हजार रुपये टेलीफोन के भत्ते के रूप में प्राप्त होते है । जबकि सरकार के संरक्षण में फल-फूल रही मुकेश अम्बानी की कंपनी 3 महीने तक 400 रुपये में अनलिमिटेड काल, 1 जीबी प्रतिदिन नेट डाटा उपलब्ध कराती है । यही टेरिफ बीएसएनएल की है । फिर जन प्रतिनिधियों को 50 हजार रुपये प्रतिमाह खैरात में क्यो.....?
हकीकत यह है कि हमारे ये तथाकथित लोक सेवक, जनसेवक, माननीय, जन सेवा का लबादा ओढ़कर देश की जनता का निरंतर खून चूस रहे पिस्सू ही है ।
इनको वास्तव में जन सेवा करनी है तो अविलम्ब वेतन और भत्ते से परहेज करना चाहिए वरना बंद करना चाहिए अपने आपको जन सेवक कहना, इन तथाकथित जन सेवको की संपत्ति में चुनाव जीतने के बाद एकाएक कैसे इजाफा हो जाता है, किसी से छिपा नही है....?
पिछले 69 साल से ये परजीवी, जोक की तरह खून चूसते आ रहे है ।
यह सिलसिला थमने के बजाय अब और ज्यादा बढ़ने वाला है ।
वन्देमातरम, जय हिंद।
अवस्थी बी के✍🏻
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