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गणतंत्र दिवस 2019:-उजड़ते हुए गांव,पलायन करना बना मजबूरी!

उजड़ते गांव,पलायन करते गांव(Demo Photo)



जब गाँव का नाम आता है तो तब मन में कल्पना बनती है वह खुला मोसम, शुद्ध हवा,पौष्टिक भोजन,संस्कार, मेहमाननवाजी, सयुक्त परिवार,शुद्ध  प्राकृतिक  परिवेश,खेत खलिहान आदि मनमोहक द्रश्य आंखो के सामने छवि बनकर दोङते हैं।लेकिन आज 21वी सदी में  अपना रहें पश्चिमी सभ्यता के कारण गाँव की हालात नाजुक हो गए हैं।आज गाँव के अन्दर शहरी चकाचौंध के कारण गाँव के लोग शहर की और अग्रसर हो रहें हैं।



वह जाकर शहर में बस जाते हैं उनके माता-पिता परे जीवन  अकेले जीवन व्यतीत करते हैं।वर्तमान की खेतीबाङी विष में परिवर्तित हो गयीं हैं।आज के भारतीय किसान को बचत नहीं तो वर्तमान की पीढ़ी खेती करना नहीं चाहती। शुद्ध देशी खाना बर्गर, इटली,डोसा,पिज्जा में बदल गया है वर्तमान पीढ़ी नेनेफेड अपने आदर-संस्कार और संस्कार को भूल गयें हैं।इस भाग दौड़ भरी जिंदगी में सयुक्त परिवार टूटकर एकल परिवारों में बदल गयें हैं।



जब कोई गाँव में अजनबी,मित्र या रिश्तेदार आता तो उसकी मेहमाननवाजी पूरा घर क्या पूरा गाँव जूट जाता  था आज उसका उल्टा हो गया है।आज बहुत बार जब कोई आता है तो घर के दरवाजा बंद होते देखें हैं खो-खो, गिल्ली-डंडा कबड्डी जेसे खेल विडियो गेम में    सिमट गयें हैं।

हा समय के साथ परम्परा ओर सभ्यता सब बदल रही हैं।बदल रहीं इन परम्पराओं ओर सभ्यता में अपनी संस्कृति ओर संस्कार को नहीं भूलना चाहिए।इन्हें  हमेशा जिन्दा रखने की जरूरत है ।ओर उजङते हुए गाँव को बचाये

लेखक परिचय
लेखक:-मनोज उपाध्याय
पंडित मनोज उपाध्याय 

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