26 जनवरी गणतंत्र-दिवस को हम हर साल तो मनाते हैं लेकिन इस दिन लागू हुए संविधान का पूरी तरह सम्मान कर पाते हैं या नहीं,बिल्कुल भी नहीं कर पाते । सबसे पहले हम अपने आप को बदल कर देश की राजनीतिक-पार्टियों के नेताओं का गुणगान ना करके अपने देश के संविधान का सम्मान करना सीखें । हमारा देश सर्वोपरि है ना कि हमारे द्वारा थोड़े समय के लिए चुने गए यह मुट्ठी भर सेवक नेता ।
सता मे सत्ता में चाहे कोई भी सरकार हो हम जनता को इन नेताओं से समय रहते जन-हित के लिए कार्य करवाना आना चाहिए,ना कि अपने निजी-काम निकलवाने के लिए हाथ जोड़कर इन की चापलूसी करके इनको साधारण सेवक-नेता से राज-नेता के दर्जे का एहसास करवा कर "आ बैल मुझे मार" वाला काम कतई नहीं करना चाहिए । सबसे पहले हमें खुद को स्वार्थी से निस्वार्थी बनने की अत्यन्त आवश्यकता है । देश-हित के लिए दूसरों को बदलने से पहले हमारा खुद को ही बदलना बहुत जरूरी है ।
यदि देश को विकासशीलता की डगर पर चलाना है , विकासशील देशों की लाइन में खड़े पाना है, तो सबसे बड़े लोकतंत्र के नाम से विख्यात इस आजाद-देश के आजाद-नागरिक होते हुए भी गुलामी करने की आदत को हमें हमेशा-हमेशा के लिए छोड़ना पड़ेगा । स्वाभिलंबी बनकर कामचोरी,रिश्वतखोरी,मक्कारी जैसी घटिया आदतों को सदा के लिए छोड़ना पड़ेगा । विकासशील देशों के नागरिक कभी भी किसी के गुलाम नहीं होते । वह स्वाभिमानी और मेहनतकश होते हैं ।
लेखक परिचय
लेखक:-बलविंद्र खरोलिया |
बलविन्द्र खरोलिया, गोलूवाला(हनुमानगढ़)
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