रायसिंहनगर। (गोविन्द शर्मा ) पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के सन् 1947 के विस्थापितों को जिस प्रकार सन् 1952 में राजस्थान की बीकानेर रियासत के श्रीगंगानगर जिले में बसाया गया,यह एक नवोदित पत्रकार की बदौलत संभव हो पाया,अन्यथा बीकानेर रियायत में बसाए विस्थापितों का ठिकाना छत्तीसगढ़ का रायपुर शहर होता। आजादी के बाद हर रियासत के राजा को भारत या पाकिस्तान का हिस्सा बनने या स्वतंत्र रहने का हक दिया गया था।
पाकिस्तान का सीमावर्ती होने के कारण बीकानेर रियासत की स्थिति महत्वपूर्ण थी।बीकानेर के शासक सार्दुल सिंह असल में पाकिस्तान का हिस्सा बनना चाहते थे ।इसके लिए सार्दुल सिंह नें पाकिस्तान की बहावलपुर रियासत के मुस्लिम शासक से संपर्क कर बहावलपुर के प्रधानमंत्री नवाब मुश्ताक अहमद गुरमानी को गुप्त वार्ता हेतु अपने लालगढ़ पैलेस में आमंत्रित कर लिया और पैलेस के हिंदू अधिकारी से लेकर निम्न कर्मचारी तक 3 दिन की छुट्टी पर भेज दिए गए और उनके स्थान पर मुस्लिमों की ड्यूटि लगा दी गई और गैर मुस्लिम व्यक्ति के पैलेस में प्रवेश पर रोक लगा दी गई।
तीन दिन की गुप्त बैठक के बाद इन दोनों रियासतों के बीच एक संधि पर दस्तखत हुए।यह संधि एक राजनैतिक संधि के रूप में परिवर्तित होने को थी,जिसके फलस्वरूप बीकानेर रियासत सदा के लिए पाकिस्तान में मिल जाती कि एक नवोदित पत्रकार दाऊलाल आचार्य को इस दुरभिसंधि की भनक लग गई।इस पत्रकार नें राजकोप का जबरदस्त खतरा उठाकर आधी रात के समय जब समूचा शहर चिरनिद्रा में था,लगभग 450 शब्दों का एक अर्जेंट टेलीग्राम अपने अखबार को भेजा,जिसके फलस्वरूप दूसरे दिन प्रातःकालीन संस्करण में इस षड़यंत्र का भंडाफोड़ हो गया।उसके बाद भारत के गृह मंत्री तथा रियासती मंत्रालय के प्रमुख स. वल्लभ भाई पटेल नें तत्काल आवश्यक कदम उठाकर इस षड़यंत्र को विफल कर दिया।
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