श्रीगंगानगर। जिला कलक्टर श्री शिवप्रसाद एम नकाते ने बताया कि चिकित्सा विभाग राजस्थान जयपुर के निर्देशानुसार वर्तमान में गर्मी का मौसम प्रारंभ हो गया है। अधिक गर्मी के कारण लू-तापघात के रोगी होने की आशंका बढ़ जाती है। इससे लू-तापघात के रोगी होने की संभावना को मध्यनजर रखते हुए लू-तापघात से बचाव तथा उपचार के लिये आवश्यक दिशा निर्देश की पालना सुनिश्चित की जाये। चिकित्सा व आयुर्वेद विभाग आमजन को लू-तापघात के बचाव की जानकारियां दें।
लू और तापघात के दिशा निर्देश
लू-तापघात से आम जनता भली प्रकार से परिचित है एवं समय-समय पर सरकार एवं अन्य स्वयं सेवी संस्थायें विभिन्न माध्यमों से स्वास्थ्य शिक्षा एवं लू-तापघात से बचने के लिये जन जागृति पैदा करती रही है। लू व तापघात से आम जनता अपना बचाव कर सकें। इस गर्मी के प्रकोप में लू से कोई भी आक्रान्त व ग्रसित हो सकता है। परन्तु बच्चे, वृद्ध, गर्भवती महिलाएं धूप में व दोपहर में कार्यरत श्रमिक, यात्री, खिलाड़ी व ठंडी जलवायु में रहने वाले व्यक्ति अधिक आक्रान्त होते है।
लू और तापघात के लक्षण
शरीर में लवण व पानी अपर्याप्त हो, पर विषम गर्म वातावरण में लू व तापघात इन लक्षणों के द्वारा प्रभावी हेाता है। लक्षणों में सिर का भारीपन व सिरदर्द, अधिक प्यास लगना व शरीर में भारीपन के साथ थकावट, जी मिचलाना, सिर चकराना व शरीर का तापमान बढ़ना, शरीर का तापमान अत्यधिक हो जाना व पसीना आना बंद होना, मुहं का लाल हो जाना व त्वचा का सूखा होना। अत्यधिक प्यास का लगना बेहोशी जैसी स्थिति का होना, बेहोश होना, प्राथमिक उपचार, समुचित उपचार के अभाव में मृत्यु भी संभव है।
ये लक्षण लवण पानी की आवश्यकता व अनुपात विकृति के कारण होती है। मस्तिष्क का एक केन्द्र जो मानव के तापमान को सामान्य बनाये रखता है, काम करना छोड़ देता है। लाल रक्त कोशिकायें रक्त वाहिनायों में टूट जाती है व कोशिकाओं में जो पोटेशियम लवण होता है व रक्त संचार में आ जाता है। जिसमें हृदय गति व शरीर के अन्य अवयस व अंग प्रभावित होकर लू-तापघात के रोगी को मृत्यु के मुहं में धकेल देते है।
लू-तापघात से बचाव के उपाय
लू-तापघात से प्रायः कुपोषित बच्चे, वृद्ध गर्भवती महिलाएं, श्रमिक आदि शीघ्र प्रभावित हो सकते है। इन्हें प्रायः 10 बजे से सायं 6 बजे तक तेज गर्मी से बचाने हेतु छायादार ठंडे स्थान पर रखने का प्रयास करें। तेज घूप में निकलना आवश्यक हो तो ताजा भोजन करके उचित मात्रा में ठंडे जल का सेवन करके बाहर निकलें। थोड़े अंतराल के पश्चात ठंडे पानी, शीतल पेय, छाछ, ताजा फलों का रस का सेवन करते रहें। तेज धूप में बाहर निकलने पर छाते का उपयोग करें अथवा कपडे़ से सिर व बदन को ढककर रखें। अकाल राहत कार्यों पर अथवा श्रमिकों के कार्य स्थल पर छाया एवं पानी का पूर्ण प्रबंध रखा जावे, ताकि श्रमिक थोड़ी-थोड़ी देर में छायादार स्थानों पर विश्राम कर सकें।
उपचार
लू-तापघात से प्रभावित रोगी को तुरन्त छायादार ठंडे स्थान पर लिटा दें रोगी की त्वचा को गीले कपड़े से स्पंज करते रहे तथा रोगी के कपड़ों को ढीला कर दें। रोगी होश में हो तो उसे ठंडे पेय पदार्थ देवें। रोगी को तत्काल नजदीक के चिकित्सा संस्थान में उपचार हेतु लेकर जावें।
गंभीर रोगियों को चिकित्सा संस्थानों में दिये जाने वाला उपचार
चिकित्सा संस्थानों के एक वार्ड में दो-चार बैड लू-तापघात के रोगियों के उपचार हेतु आरक्षित रखे जावें। वार्ड का वातावरण कूलर व पंखे से ठंडा रखा जावे। मरीज तथा उसके परिजनों के लिये शुद्ध व ठंडे पेयजल की व्यवस्था रखी जावें। संस्थान में रोगी के उपचार हेतु आपातकालीन किट में ओआरएस, ड्रीप सेट, जीएनएस, जीडी डब्ल्यू, रिंगरलेकटेट (आरएल) फलूड एवं आवश्यक दवाईयां तैयार रखी जावें। चिकित्सक एवं नर्सिंग स्टाॅफ को इस दौरान डयूटी के प्रति सतर्क रखा जावे। जन साधारण को लू-तापघात से प्रभावित होने पर बचाव के उपायों की जानकारी दी जावें। जिला स्तर पर सभी विभागों का सहयोग प्राप्त कर कार्य व्यवस्था को सुचारू रूप से बनाया रखा जावें।
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