कुलदीप शर्मा,लेखक एक पत्रकार हैं और स्वतंत्र लेख,आलेख ,व्यंग्य लिखते आये हैं।
अक्सर दुसरो की न्याय की लड़ाई लड़ने वाला पत्रकार खुद के लिए नहीं लड़ पाता है। उसका सबसे बड़ा कारण अक्सर वो खुद ही होता है। समाज मे बनी प्रतिष्ठा के गिरने की शंका के चलते खुद के लिए कभी आवाज बुलंद नहीं कर पाता है। यही कारण है कि आज पत्रकार आर्थिक रूप से सबसे कमजोर तबके में शुमार होने की कगार पर आ चुका है। कोरोना काल मे जहां बेरोजगारी बढ़ती जा रही है और निजी सेक्टरों में छंटनी का कार्य शुरू हो चुका था जो आज भी जारी है। ऐसा ही मीडिया संस्थानों में भी छंटनियो का दौर शुरू हो चुका है जिसके चलते विपरीत परिस्थितियों में पत्रकार भी इस दौर में कार्य कर रहे हैं। यूपी में आत्महत्या करने वाले पत्रकार की माली हालात कुछ ठीक नहीं थी। देश भर के पत्रकारों की हालात पर न तो किसी मीडिया संस्थान में जगह मिल पाती है और न ही कहीं कुछ खुद ये अपनी आवाज को बुलंद कर पाए हैं। गुपचुप तरीके से मीडिया संस्थान से निकाले जाने वाले पत्रकार खुद को घरों में कैद किये हुए बैठे हैं। हर किसी को अपने परिवार के लालन-पालन की समस्या सताने लगी है। पत्रकारिता अब तो पत्रकारों के लिए काल बनती जा रही है। इस समय तमाम सरकारों को राष्ट्र के तथाकथित चौथे स्तम्भ मीडिया को और उनके शहरी से लेकर ग्रामीण स्तर पर कार्य करने वाले पत्रकारों को बचाने की आवश्यकता है। अब तमाम पत्रकारों को राहत पैकेज की घोषणा का इंतजार है। बड़े शहरों से लेकर ग्रामीण आँचल तक अपनी जान जोखिम में डाल कर पत्रकारिता करने वाले पत्रकार के लिए अब अपनी आजीवका चलाना धीरे-धीरे मुश्किल होता जा रहा है। इसका सबसे बड़ा कारण देश भर में बढ़ती आर्थिक मंदी और छोटे-मोटे उद्योग धंधों का चौपट होना माना जा सकता है। अब सरकारें जैसे सभी सेक्टरों के लिए राहत पैकेज का ऐलान करती आई है वेसे ही अब पत्रकारों ओर उनके परिवार के लिए राहत पैकेज की घोषणा की आवश्यकता नजर आने लगी है। अब हर पत्रकार अपनी नौकरी बचाने की जदोजहद के बीच खुद को विपरीत परिस्थितियों के लिए तैयार करने में जुटा हुआ है। अब देखने वाली बात ये ही है कि उम्मीदें कब जिंदा होगी।
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