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इन्दिरा रसोई ने छुआ एक करोड़ का आंकड़ा

 

श्रीगंगानगर, । मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत के “कोई भूखा ना सोए” के संकल्प के साथ स्व. श्रीमती इन्दिरा गाँधी की जयन्ती पर शुरू की गई इन्दिरा रसोई योजना ने साढे तीन माह की अल्पकालिक अवधि में ही एक करोड़ लाभार्थियों को खाना खिलाने का आंकडा छू लिया है।
नगरीय विकास, आवासन एवं स्वायत्त शासन मंत्राी श्री शांति धारीवाल ने इंदिरा रसोई के अल्प समय में इतनी बडी संख्या में कोरोना काल में आमजन को सस्ता एवं पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराने पर हर्ष जताया है।
इंदिरा रसोई योजनान्तर्गत प्रदेश के सभी 213 नगरीय निकायों में 358 स्थायी रसोईयां स्थापित की गई है, जहां लाभार्थी 8 रू. में बैठकर भोजन कर सकता है। भोजन में मुख्यतः दाल, सब्जी, आचार व चपाती है। नगरपलिका एवं नगरपरिषद क्षेत्रों में प्रतिदिन भोजन सीमा 300 थाली एवं नगर निगम क्षेत्रा में प्रतिदिन 600 थाली प्रति रसोई प्रतिदिन है एवं आवश्यकता होने इसे 100 प्रतिशत तक बढाया जा सकता है। राज्य में प्रतिदिन की भोजन क्षमता 1,33,500 है। वहीं वार्षिक 4.87 करोड़ लंच, डीनर वितरित करने का लक्ष्य रखा है। जिस पर प्रतिवर्ष 100 करोड़ व्यय होगा।
जिले में जिला कलक्टर की अध्यक्षता में जिला स्तरीय समन्वय एवं माॅनिटरिंग समिति का गठन किया गया है। जिला स्तरीय समिति द्वारा इंदिरा रसोई संचालन के लिए क्षेत्रीय प्रतिष्ठित एन. जी. ओ. का चयन किया गया है, इन्हीं एन. जी. ओ. के मार्फत “ना लाभ ना हानि” के आधार पर रसोईयों का संचालन किया जा रहा है। रसोई संचालक (एन.जी.ओ.) को प्रति थाली 20 रू. प्राप्त होते है, इनमें से 8 रू. लाभार्थी से व 12 रू. राज्य सरकार से अनुदान प्राप्त होता है। जिलावार निर्धारित लक्ष्य से अधिक भोजन कराने वाले जिलों में प्रतापगढ 127 प्रतिशत, बांसवाडा 125 प्रतिशत एवं बाडमेर 107 प्रतिशत है।नगर निगम क्षेत्रों में बीकानेर 78 प्रतिशत एवं जोधपुर साउथ 74 प्रतिशत के साथ सर्वोपरि है।
रसोई हेतु आधारभूत एवं आवर्ती व्यय
रसोई संचालन के लिए राज्य सरकार द्वारा न केवल राजकीय भवन उपलब्ध कराये गए है, वरन रसोई संचालन हेतु प्रत्येक रसोई में आधारभूत व्यय के पेटे 5 लाख रू व्यय कर फर्नीचर, बर्तन, फ्रिज, वाटरकूलर, आटा गूंदने की मशीन, वाटर प्यूरीफायर, कम्प्यूटर, गैस, बिजली, पानी कनेक्शन, इण्टरनेट कनेक्शन इत्यादि उपलब्ध कराये गए है।
इतना ही नहीं, सरकार द्वारा प्रति रसोई प्रतिवर्ष आवर्ती व्यय के पेटे 3 लाख रू. उपलब्ध कराये गये हैं, जिनमें से कम्प्यूटर आॅपरेटर, बिजली पानी, इंटरनेट आदि पर होने वाला व्यय सरकार वहन करती है। साथ ही इसी व्यय से रसोई में कार्य करने वाले स्टाफ की ड्रेस, बर्तन, फर्नीचर के खराब होने पर नया लेने का भी प्रावधान है।
रसोईयों में सूचना एवं प्रौद्योगिकी का व्यापक प्रयोग
इंदिरा रसोईयों में आईटी का बेहतर ढंग से उपयोग किया गया है। लाभार्थी के रसोई में प्रवेश करते ही उसका स्वतः ही फोटो खिंच जाती है एवं उसका नाम एवं मोबाईल नम्बर कम्प्यूटर में फीड कर वेब पोर्टल पर अपलोड किया जाता है। इसके पश्चात लाभार्थी को तुरंत मोबाईल पर मैसेज आता है कि इंदिरा रसोई में पधार कर भोजन ग्रहण करने के लिए आपका धन्यवाद। इस मैसेज में मोबाईल पर कोविड गाईडलाइन का पालन करने का भी आग्रह किया जाता है।
वेब पोर्टल पर लाभार्थी एवं समस्त 358 रसोईयों का डाटा पब्लिक डोमेन में रहता है जिसे कोई भी व्यक्ति लाईव देख सकता है। वेब पोर्टल एवं वेबसाईट पर लाभार्थियों की संख्या, पुरूष, महिला, आयुवार लाईव काउन्टर रहता है, जिसमें पल-पल की सूचना प्रदर्शित होती रहती है।
लाभार्थियों को स्वायत्त शासन विभाग के काॅल सेन्टर एवं सूचना प्रौद्योगिकी विभाग के राज्य स्तरीय काॅलसेन्टर से फोन कर भोजन की गुणवता आदि के बारे में सुझाव लिया जाता है।
रसोई संचालकों को आॅनलाईन भुगतान
स्टेट नोडल आॅफिसर श्री नरेश गोयल ने बताया कि रसोई संचालकों को देय राजकीय अनुदान के मासिक भुगतान की विशेष व्यवस्था की गई है। रसोई संचालकों द्वारा पोर्टल पर सिंगल क्लिक से आॅनलाईन बिल जनरेट किया जाता है एवं यूआईडी पोर्टल के माध्यम से आधार आॅथेन्टिकेट किया जाता है और बिल को आॅनलाईन ही बिना भौतिक हस्ताक्षर किए आॅनलाईन साॅफ्टकाॅपी में सम्बन्धित नगरीय निकाय को भुगतान हेतु भेज दिया जाता है। नगरीय निकाय में सम्बन्धित रसोई संचालक को भुगतान हेतु नोटशीट भी आॅनलाईन तैयार हा जाती है। इसके पश्चात सम्बन्धित नगरीय निकाय द्वारा रसोई संचालक को आॅनलाईन सीधे बैंक खाते में भुगतान हस्तांरित हो जाता है।
इस पूरी प्रक्रिया में समस्त थालियों की गणना आॅनलाईन स्वतः होकर इनवाॅइस जनरेट होता है, रसोई संचालक को कहीं भी हस्ताक्षर नहीं करने पड़ते और ना ही बिल लेकर नगरीय निकाय में जाना पड़ता है। भुगतान पक्रिया पूर्णतः पारदर्शी है।
रसोईयों में जन सहभागिता
वहीं राज्य में अनेक इन्दिरा रसोईयां ऐसी भी है, जिनमें रसोई संचालक द्वारा लाभार्थी अंश अथवा राज्य सरकार से किसी प्रकार का अनुदान नहीं लिया जाता अर्थात रसोई संचालक अपने स्तर पर लाभार्थियों को खाना खिलाते है।
इंदिरा रसोई में कोई भी व्यक्ति एक या एक से अधिक समय का खाना प्रायोजित कर लाभार्थियों को मुफ्त में खाना खिला सकता है इसके लिए उसे किसी भी इन्दिरा रसोई में जाकर पैसा जमा कराना होता है, सम्बन्धित व्यक्ति के पास मोबाइल एवं ईमेल पर मैसेज आता है एवं प्रायोजित दिन के भोजन के समय प्रत्येक कूपन पर यह मैसेज लिखा आता है कि “आज का खाना श्री.... द्वारा प्रायोजित है। प्रायोजक व्यक्ति को स्थानीय निकाय विभाग का प्रशस्ति पत्र भी दिया जाता है। अब तक 1,898 व्यक्तियों द्वारा भोजन प्रायोजित किया गया है।
इन्दिरा रसोई योजना अन्नपूर्णा रसोई योजना से किस प्रकार अलग है
जहां अन्नपूर्णा रसोई योजना में लाभार्थियों को मोबाईल वैन से खाना खुले में खिलाया जाता था। वहीं इंदिरा रसोई में स्थाई रसोईयों में सम्मानपूर्वक बैठाकर भोजन कराया जाता है। जहां अन्नपूर्णा रसोई योजना पूर्णतः केन्द्रीकृत थी, एक ही ठेकेदार को सम्पूर्ण कार्य दिया हुआ था वहीं इंदिरा रसोई योजना पूर्णतः विकेन्द्रीकृत है, इसका संचालन 350 से अधिक स्थानीय प्रतिष्ठित संस्थाओं एन.जी.ओ. के माध्यम से संचालन किया जा रहा है। इन एन.जी.ओ. का चयन भी जिला कलक्टर की अध्यक्षता में जिला स्तरीय समन्वय एवं माॅनिटरिंग समिति द्वारा किया गया है। जहां अन्नपूर्णा रसोई में रसोई संचालक को 20 रू प्रति थाली राजकीय अनुदान था। वहीं इन्दिरा रसोई में 12 रू प्रति थाली राजकीय अनुदान है। जहां अन्नपूर्णा रसोई संचालक द्वारा लाभार्थी को निजी अंशदान प्राप्त कर राजकीय अनुदान प्राप्त कर लिया जाता था। वहीं इंदिरा रसोई में ऐसा नहीं है, इंदिरा रसोई में दानदाता को लाभार्थी का अंशदान व राजकीय अनुदान दोनों देना होता है।

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