पुलिस अभियान बनने लगा सिर दर्द! पेंडेंसी के साथ बढ़ेगी जवानों की बीमारियां!



कुलदीप शर्मा,जर्नलिस्ट

पुलिस मुख्यालय स्तर पर चलाया जा रहा अभियान बेशक आमजन को राहत भरा नजर आ रहा है लेकिन उसके पीछे का दर्द बहुत ही अलग सा है। मुखबिर और तकनीकी साक्ष्यों के सहारे पुलिस अभियान में अनेकों जनों के घर,ऑफिस,दुकान और अन्य ठिकानों पर दबिश दे रही है। दबिश के बाद अब गाहे बगाहे पुलिस पर आमजन को बेवजह परेशान करने का आरोप भी लगने लगा है। पुलिस मुख्यालय से अभियान के एक आदेश से पुलिस चक्कर गिनी बन जाती है। पिछले कई माह से चलाए जा रहे लगातार धरपकड़ अभियान ने पुलिस के सूचना तंत्र को हिला कर रख दिया है। कई जगह स्थानीय पुलिस पर अभियान के नाम पर इतना प्रेशर बढ़ जाता है की वो खुद के सोर्स तक को लाकर 151 में पाबंद करने पर मजबूर हो गए हैं। आमजन के बीच में सरकार और पुलिस अपने कार्यशैली से जनता को उनका हितेशी दिखाने का प्रयास कर रही है। इसमें कुछ हद तक कामयाब भी रही है। इन महीनो में लगातार चलाए अभियान के समय कम समय होने के चलते पुलिस कार्रवाई का सोर्स बनाने में कमजोर साबित हो जाती है जिसका फायदा अपराधियों को मिल जाता है। थाना स्तर पर बढ़ती पेंडेसी अब पुलिसकर्मियों के लिए बीपी शुगर के बढ़ने का काम कर रही हैं। कम नफरी का दंश झेल रही पुलिस के सामने इतने ही कर्मियो से काम लेना कर्मियो के लिए ही बोझ बन रहा है। रेगुलर दर्ज होने वाले मामलो की जांच के बीच अभियान ने कई चीजों को प्रभावित कर दिया है। अब पुलिस मुख्यालय को भी पुलिसकर्मियों की सेहत व आमजन के हितों को देखते हुए अभियान को एक बारगी विराम देना चाहिए। पुलिस मुख्यालय अगर जहां बड़ा अपराध हो वहां तुरंत सभी थानों की एक एक टीम बनाकर उसी पर कार्य करे तो अपराध व अपराधी दोनो नहीं बचेंगे। पुलिस के इस अभियान को विपक्ष पहले डेमेज कंट्रोल का नाम दे चुकी है! जिसको लेकर सरकार विपक्ष के निशाने पर हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है की अभियान से कुछ हद तक अपराध पर रोकथाम लगी है लेकिन ये फौरी राहत ही है। पुलिस अगर पब्लिक के संपर्क में रहकर अपनी बीट प्रणाली व सिएलजी सदस्यो को बढ़ाए तो सूचना तंत्र थोड़ा मजबूत होगा जिसका फायदा आने वाले वक्त में मिलेगा।


खैर ईश्वर सबका भला करे!



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