राजस्थान पुलिस में सुधार की आवश्यकता। |
कुलदीप शर्मा,जर्नलिस्ट ✍️
हनुमानगढ़ जिला ही नहीं अपितु प्रदेश भर में कमोबेश ऐसे ही हालात हैं। जी हां, मैं बात कर रहा हूं पुलिस के ढांचे को लेकर। आने वाला वक्त पुलिस के लिए चुनौती भरा ज्यादा रहने वाला है। हर वक्त हर मिनट हर सेकंड बहुत कुछ बदलता जा रहा है। इसी प्रकार अगर पुलिसिंग चलती रही तो हमारा निजी अनुभव कहता है की पुलिस जनता के लिए समय कम निकाल पाएगी बल्कि अभियान और एक्ट में उलझ कर रह जाएगी। इस पूरे आलेख में हम सिर्फ और सिर्फ इसी बिंदुओं पर चर्चा करेंगे।
थानेदार बदलते है एफडब्ल्यू वो ही रहेंगे...
थानों में अक्सर थानेदारों की पोस्टिंग भले ही राजनीतिक लिहाज से या कानूनी लिहाज से होती है। लेकिन थाने का आ-सूचना अधिकारी लगातार बना रहता है। ऐसा अक्सर हर थाने में देखा जाता रहा है। इसका नुकसान कहे या फायदा। लेकिन कहीं ना कहीं यह निष्पक्ष और स्वतंत्र पुलिसिंग पर सवाल जरूर खड़ा करता है। इस लिहाज से थानेदारों के साथ-साथ आ-सूचना अधिकारी और कांस्टेबल की बीट रोटेट भी होती रहनी चाहिए। जिससे पुलिस की साख पर बटा नहीं लगता है।
सीएलजी,पुलिस मित्र,ग्राम रक्षक,सुरक्षा सखी महज दिखावा!
राजस्थान पुलिस अक्सर सीएलजी, पुलिस मित्र, ग्राम रक्षक, सुरक्षा सखी जैसे सदस्यों को बनाने और उनकी बैठक कर मीडिया में प्रेस नोट देने का काम करती आई है। लेकिन अगर धरातल पर देखा जाए तो इन सदस्यों का उपयोग सिर्फ बैठक के लिए होता है। इसके अलावा इन सदस्यों के निर्माण के पीछे मूल सिद्धांतों को ना तो पुलिस कामयाब कर पाई है और ना ही सदस्य कभी इस मामले में आवाज उठा पाए हैं। बड़े अधिकारी या कोई बड़े त्यौहार में इनका इस्तेमाल कोरम पूरा करने के लिए किया जाता है। आज भी थाने में अंग्रेजों के समय का सिस्टम चल रहा है प्रत्येक गांव के पक्ष और विपक्ष के नेता थानों ने चुन रखे है। पुलिस द्वारा बनाए सदस्यों को भूलकर इन्हीं लोगों से संपर्क साधकर मामले में हस्तक्षेप करने के लिए कहा जाता है। अब इसे पुलिस की गलती कहें या मजबूरी। लेकिन कहीं ना कहीं पुलिस का भी काफी हद तक धीरे-धीरे राजनीतीकरण हो चुका है। अंदर खाते सब अपने-अपने विचारधारा से ग्रसित है।
एक्ट और अभियान के फेर में उलझी पुलिस,पेंडेंसी को देख बुरा हाल
राजस्थान में कांग्रेस के लास्ट के 3 साल से लेकर अब भाजपा के 6 महीने के दौरान राजस्थान पुलिस ने ट्रेंड पकड़ा हुआ है। उस ट्रेंड का नाम अभियान दिया गया है। जिसे कभी कभार विशेष अभियान भी कहा गया है। इस विशेष अभियान के तहत पुलिस एक्ट और अन्य कारवाइयां करने में उलझी रहती है। जिसके चलते कई दफा तो पीड़ित थाने के चक्कर लगाकर परेशान हो जाते हैं। इसका उदाहरण सिर्फ इस बात से देखा जा सकता है कि अब दूर दराज के गांव के लोग भी थाने में कम और एसपी कार्यालय तक ज्यादा पहुंचने लगे हैं। क्राइम रिपोर्टिंग करते हुए काफी वर्ष हो चुके हैं प्रत्येक पीड़ित से मिलने का मौका मिलता है। उस पीड़ित से जब भी उसके दिल का हाल जानना चाहा तो कहीं ना कहीं वह सुनवाई न करने की वजह से जिला मुख्यालय तक पहुंचता है। एक्ट और अभियान की कार्रवाइयों में पुलिस इतनी व्यस्त हो चुकी है कि जब वह पीछे मुड़कर देखती है तो उनके सामने शिवाय पेंडेंसी के कुछ नजर नहीं आता। हर थाने में एक्ट और अभियान की इतनी कारवाइयां हो रही है कि आने वाले थानेदार के लिए उतनी कार्रवाई करना और अपनी टीम से पीड़ित को भी सुनने का प्रेशर देना एक चुनौती बन गया है। हर दूसरे दिन अभियान का नाम बदलकर पुलिस को बिजी रखा जा रहा है। इस अभियान और एक्ट से उन पीड़ितों को कितना फायदा होगा यह तो आप और हम जानते हैं। लेकिन अधिकतर पुलिसकर्मी या तो वीआरएस लेने की सोच रहे हैं या एप्लीकेशन डाल चुके हैं। इसके अलावा जो बचे खुचे खुद से हिम्मत कर अपने परिवार के लिए ड्यूटी कर रहे हैं वह नींद,बीपी और शुगर के मरीज हो चुके हैं। अब पुलिस के लिए सिर्फ भगवान का सहारा ही है।
बाकी कभी ओर समय...
ईश्वर सबको सद्बुद्धि देवे और सबका भला करे....
🙏🙏
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