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डूबता जा रहा रेगिस्तान का जहाज

धोरों में नजर नहीं आती ऊंटो की टोली,किसानों ने लिया मशीनरी का सहारा


भूमिपूत्रों व ऊंट का आपसी गहरा संबंध रहा है। इन दोनों का जीवन एक -दूसरे के बिना अधूरा हैं। आज आधुनिकता के युग में कृषी कार्यो को किसान ऊंट की बजाय ट्रैक्टरों से करवा रहे है। जिस कारण रेगिस्तान का जहाज अपने मिटते अस्थ्तिव की लड़ाई लड़ रहा हैं। परन्तु लघु किसान आज भी अपनी थोड़ी-थोड़ी कृषी भूमि में ऊंट से ही हल जोतते हैं। और सदियों से ऊंट किसान परिवार में सदस्य की तरह रहता आ रहा है। ऊंट तो किसान के बड़े बेटे की तरह खेत के काम में हाथ बंटवाता हैं। राजस्थान की मरू भूमि में अनाज पैदा करवाने में ऊंट का सबसे बड़ा योगदान रहा हैं।



खेती का काम ऊंट के कंधों पर:
लघु किसान आज भी बिजाई से लेकर अनाज को उपजा कर मंडी तक ऊंट के सहारे की पहुंचाता हैं। और हर रोज किसान के साथ खेत जाकर लकड़ी,हरा,भरोटी लाने तक साथ देता हैं।

बंजर भूमि को बनाता हैं उपजाऊ
किसान ऊंट से उबड़-खाबडज़मीन को समतल करके सोना ऊगाता है इसके अलावा राजस्थान प्रांत में बहुत से परिवारों को रोजगार देकर जीवन की गाड़ी चलाता हैं।


विदेशीयों की पंसद बना रेगिस्तान का जहाज:
प्रति वर्ष हमारे राज्य में हजारों की तादाद में विदेशों से सैलानी आते है। जो बीकानेर,जैसलमेर के रेतीलें धोरों में आन्नद लेने के लिए पैसे देकर ऊंट की सवारी करते हैं। जिससें हमारे राज्य को विदेशी मुद्रा प्राप्त होती हैं।

ऊंटनी का दूध अमृत तुल्य:
ऊंटनी का दूध हमारे स्वास्थ्य के लिए अति उतम माना जाता है। और ये कई आयुवैदिक औषधियों में भी डाला जाता है। ऊंट से हल जोतने से वायु-ध्वनी और ना ही रासायनिक प्रदूषण फैलता। ऊंट से खेती करने से हमारा स्वास्थ्स व वातावरण भी सुध रहता हैं।

चारा के अभाव में भी बेघर हो रहे ऊंट:
आज चारे की मंहगाई की मार झेल रहे किसान मजबूरी में बफादार ऊंट को औने-पौने दामों पर बेच रहे हैं। आज ऊंट माफिया गिरोह इनके पिछे हाथ धोकर पड़े हैं। जो यहां से ऊंट खरीद कर बिना किसी रोक-टोक के उत्तर प्रदेश,मेरठ व साहनपुर शहरों में ले जाकर इनकी गदर्नाे पर छुरी चलाते हैं। सरकार के काई ठोस कदम न उठाने के कारणक ऊंट गिरोह का माफियों का ग्राफ दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा हैं।  बात करे नोहर तहसील की तो वो ऊंटों की तस्करी का गढ़ ही बन गया। यहां के ऊंट गिरोह के हौसलें इतने बुंलद है कि एक साल पूर्व नोहर से ट्रक में ऊंट ले जा रहे थे तस्कर,जब नोहर पुलिस ने उनका पिछा किया तो ट्रक से पुलिस जीप को टक्कर मार कर ट्रक सहित भाग गए। अगर सरकार ने समय रहते हुए ऊंट तस्करी पर पूर्णत:रोक नहीं लगाई तो वो दिन दूर नहीं कि ऊंट के दर्शन ही दुर्लभ हो जाऐगें। गोगा मेड़ी मेला घटते ऊंटों की संख्या का उदाहरण हैं।

अन्न दाता को बचाओं:
किसानों के कठोर संकल्प से ही ऊंट की लुप्त होती प्रजाति को बचाया जा सकता हैं। या सरकार कोई ऊंट गिरोह और बेचने वाले किसान के पर ऐसा कानून बनाये। जिससें दोनों को बराबर की सजा मिले। प्रदेश की निजी संस्थाओं,संगठनों व सामाजिक कार्यक्रताओं को ऊंट बचाने के लिए आगे आना चाहिए।

कानून नहीं ठोस और बेखोफ तस्कर:
 पुलिस हर माह दर्जन भर वाहनों से सैंकड़ो की तादाद में  तस्करी कर ले जा रहे ऊंटों को मुक्त करवाती हैं।  लेकिन कोई ठोस कार्यवाही न होने के कारण तस्कर जल्द ही जमानत पर छूट जाते हैं। फिर वो ही घोड़े और वो ही मैदान।

नहीं धूप-छाया की परवाह
किसान रामकुमार खीचड़ ने बताया कि ऊंट ग्रमी-सर्दी की परवाह न कर तेज धूप में रेतीलें धोरों में स्थित खेतों में किसान को अपनी पीठ पर बैठाकर ले जाता हैं। ऊंट के बिना किसान का जीवन अधूरा ही नहीं बेकार भी हो जाता हैं।


 पत्रकार जयलाल वर्मा चारणवासी(नोहर)







                                 

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