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धीरज, धर्म, मित्र और नारी, आपद काल परखिए चारी--परम विदुषी डॉ. राधिका दीदी

हनुमानगढ़। जंक्शन की नई धान मण्डी में 27 फरवरी से चल रही श्री संगीतमय श्रीराम कथा के तीसरे दिन कथा वाचक परम विदुषी डॉ. राधिका दीदी जी हरीद्वार वाले ने ‘धीरज, धर्म, मित्र और नारी, आपद काल परखिए चारी...’ दोहे का अर्थ बताते हुए कहा कि मनुष्य को अपने धैर्य, धर्म, मित्र और पत्नी इन सबकी परीक्षा विपत्ति के समय करनी चाहिए। विपत्ति के समय इनमें जो साथ डटकर खड़ा रहता है वही सच्चा हमदर्द व साथी होता है। परम विदुषी डॉ. राधिका दीदी जी ने यह विचार श्री राम भवन में चल रही दिव्य राम कथा के तीसरे दिन श्रद्धालुओं के विशाल जनसमूह के समक्ष व्यक्त किए। परम विदुषी डॉ. राधिका दीदी जी ने धैर्य पर चर्चा करते हुए कहा कि मनुष्य पर चाहे कितनी ही बड़ी विपत्ति या संकट क्यों न आ जाए, मगर उसे अपने धैर्य का दामन नहीं छोडऩा चाहिए। जो व्यक्ति संकट की घड़ी में धैर्य से काम लेता है और कभी धैर्य का दामन नहीं छोड़ता वही समाज में मान-सम्मान पाता है। परम विदुषी डॉ. राधिका दीदी जी ने कहा कि बड़े से बड़ा दु:ख या विपत्ति क्यों न आ जाए, मनुष्य को कभी अपने धर्म का त्याग नहीं करना चाहिए। विपत्ति के समय उसे ध्यान रखना चाहिए कि कहीं वह अधर्म के मार्ग पर तो नहीं चल पड़ा। छल-कपट, चोरी, ठगी, रिश्वतखोरी, बेइमानी, व्यभिचार आदि यह अधर्म है। जो व्यक्ति विपत्ति के  समय अपने धर्म का त्याग कर देता है वह पतन की ओर चल पड़ता है। स्वामी जी ने कहा कि विपत्ति के समय ही सच्चे मित्र की परीक्षा होती है। जो मित्र बुरे वक्त में या मुसीबत में काम आता है वही सच्चा मित्र होता है। मनुष्य को ऐसे सच्चे मित्र बनाने चाहिएं जो मुश्किल की घड़ी में पीठ दिखाकर कहीं खिसक न जाएं बल्कि संकट की घड़ी में साथ दें। सच्चा मित्र अपने मित्र को हर मुश्किल के  बाहर निकाल सकता है। रामायण में श्री राम जी ने कहा है कि मित्र को अगर छोटा सा भी दु:ख है तो उसे पहाड़ समान बड़ा समझ मदद करनी चाहिए और खुद के दु:ख को धूल के समान मानना चाहिए। कमलानंद जी ने कहा कि पत्नी को मुश्किल क ी घड़ी में अपने पति का साथ कभी नहीं छोडऩा चाहिए। पति चाहे अमीरी में हो या गरीबी में, उसके दु:ख-सुख में बराबर का भागीदार बनना चाहिए। कहावत है कि एक सफल पुरुष के पीछे महिला का हाथ होता है। ऐसे ही जिस पुरुष की पत्नी हर दम अपने पति का साथ देगी तो पति सफलता की ऊंचाइयों को छूता जाएगा। पत्नी को पति की हिम्मत बनना चाहिए। दु:ख के  समय पत्नी को हमेशा पति का मनोबल बढ़ाना चाहिए। गरीबी के समय पति को कभी यह अहसास न होने दें कि वह दु:खी है। सुख में तो सभी साथ देते हैं, मगर जो दु:ख में साथ दे वही सच्चा हितैषी कहा गया है। स्वामी जी ने कहा कि मनुष्य को कभी पराई स्त्री पर कुदृष्टि नहीं डालनी चाहिए। पराई स्त्री पर बुरी नजर डालना जघन्य अपराध माना गया है। इसका बड़ा दोष लगता है। जो मनुष्य पराई स्त्री पर कुदृष्टि डालता है, वहां विनाश के बादल मंडराने लगते हैं। इसकी स्पष्ट उदाहरण रावण से मिलती है।
हर व्यक्ति में समाए हैं प्रभु राम, न करो किसी की बुराई परम विदुषी डॉ. राधिका दीदी जी ने ‘तुझमे राम, मुझमे राम, सबमें राम समाया...’ का अर्थ समझाते हुए कहा कि हर इंसान के भीतर राम अर्थात भगवान का कण है। इसलिए कभी किसी की बुराई, निंदा या चुगली नहीं करनी चाहिए। सब को एक-दूसरे के साथ मिल-जुलकर रहना चाहिए। स्वामी जी ने श्रद्धालुओं को मांस, मदिरा आदि का सेवन त्यागने की प्रेरणा देते हुए कहा कि शास्त्रों में मांस-मदिरा सेवन करने वाला राक्षस समान माना गया है, क्योंकि पुरातन समय में राक्षस ही मांस-मदिरा का सेवन किया करते थे। इसलिए इनका त्याग करें।आयोजन समिति के सदस्यों ने कहा कि 27 फरवरी से 7 मार्च तक दोपहर 1 बजे से शाम 5 बजे तक होगी और कथा का समापन 8 मार्च को सुबह 10 बजे होगा।


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