"कहा जाता है कि इंसान की ज़िन्दगी में "यादों" का बड़ा "महत्व" होता है या यूँ कहें तो ग़लत नहीं होगा कि हमारे जीवन में बहुत से इंसान "यादों के सहारे" ही जीते हैं। लेकिन दोस्तों, यादें सिर्फ़ "सुहानी" ही नहीं होतीं, "बुरी" भी होती हैं, और बुरी यादों को भूलना "बेहद कठिन" होता है।
"दरअसल, ये सच है कि हमारी ज़िन्दगी में हम यादों से बच नहीं सकते, अच्छी हों या बुरी दोनों ही तरह की यादों को हम भूल नहीं पाते, "अच्छी यादें" इसलियें नहीं भूल पाते, क्योंकि उनमें हमारा बीता हुआ "सुनहरा वक़्त" होता है, और उसे याद करने से हमें "सुकून" मिलता है।
और "बुरी यादें" इसलियें नहीं "भूल" पाते, क्योंकि जो हमारे साथ बुरा हुआ है, उसकी "टीस" रह-रहकर हमारे "मन" को "दुखाती" रहती है।
"असल में, अच्छी यादों को तो हम ख़ुद ही जानबूझकर "याद" करना चाहते हैं, और करते भी हैं, क्योंकि उसमें हमें "ख़ुशी" महसूस होती है, लेकिन बुरी यादें "ख़्वाबों" और "ख़्यालों" में "अचानक, "अनायास" ही आ टपकती हैं, हम चाहकर भी उनसे पीछा नहीं छुड़ा सकते, ख़ास तौर पर "महिलाएँ" और "बच्चे" जब किसी बड़े "हादसे" या "बुरे अनुभव" से गुज़रते हैं,
तो इसका असर उनके "दिलों-दिमाग" पर जीवन भर दिखायी देता रहता है, और वो बुरी यादें उन्हें जीवन भर "परेशान" करती रहती हैं।
"दोस्तों, ये सच है कि हमारी ज़िन्दगी में "यादें" बहुत "महत्वपूर्ण स्थान" रखती हैं, लेकिन ये भी सच है कि सारी ज़िन्दगी यादों के सहारे नहीं "काटी" जा सकती, हमें चाहिए कि अच्छी यादों को "संजो कर" रखने के साथ-साथ अपने दिल और दिमाग से "बुरी यादों" की "सफ़ाई" भी समय-समय पर करते रहें,
क्योंकि अगर हम बुरी यादों पकड़कर बैठे रहेंगे तो जीवन भर "विलाप ही करते रहेंगे, और जीवन में आगे नहीं बढ़ पायेंगे, और इसी के साथ-साथ हमें ये भी चाहिये कि जो अच्छी यादें बीत चुकी हैं उनकी "पुनरावृत्ति" की उम्मीद "बार-बार" ना करें, क्योंकि, "गुज़रा हुआ ज़माना आता नहीं दोबारा" लेकिन भविष्य में जीवन में कुछ "अच्छा" होने की "आशा" ज़रूर रखें, क्योंकि "उम्मीद" पर ही दुनिया "क़ायम" है। (शुक्रिया)
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(लेखक - राशिद सैफ़ी "आप" मुरादाबाद)
संस्थापक/अध्यक्ष
*इन्सानियत वेलफेयर सोसाइटी*
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