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श्रीगंगानगर -बुढ़ाते गंगानगर को छोड़ती युवा पीढ़ी


श्रीगंगानगर।[गोविंद गोयल] इंसान के जन्म की शुरुआत बहुत पहले से हो जाती है। फिर 9 माह बाद जब वह पहली बार माँ को दिखाई देता है,उसका रोना सुखद लगता है, तब होता है उसका जन्म। ठीक यूं ही, कोई भी शहर ऐसे ही नहीं बस जाता। वर्षों लगते हैं उसे बसने मेँ। गर्भ मेँ भी आता है और फिर अंदर उसका पोषण भी होता है। तब कहीं जाकर उसका आकार बनता है।

 निश्चित रूप से श्रीगंगानगर भी इसी प्रकार बना होगा। इसी प्रकार बसा होगा। कोई शहर कैसा होना चाहिए? इस प्रश्न के  जवाब अनेक हो सकते हैं। लेकिन इस शहर की शुरुआत 1910 मेँ रामनगर से हुई। जिसे सब पुरानी आबादी के नाम से जानते हैं। कौन पहले आया, किसने पहला घर बनाया, इसकी जानकारी नहीं है, केवल यही ज्ञात हुआ कि 1910 मेँ परिवार आए और जहां वे आए उस जगह को रामनगर नाम दिया गया। रेलगाड़ी पहली बार 1923 मेँ शुरू हुई। हालांकि 1 जनवरी 1901 मेँ दुलमेरा से सूरतगढ़ के बीच रेल गाड़ी आने की जानकारी भी मिली है। ये तो सभी को पता है कि 26 अक्तूबर 1927 के दिन गंगनहर मेँ पानी प्रवाहित हुआ। यही माना जाता है कि गंगानगर शहर की स्थापना का काम भी उसी दिन हुआ। लेकिन इसमें कितनी सच्चाई है, यह किसी को नहीं ज्ञात।

 इसलिए इस दिन को प्रतीकात्मक रूप से गंगानगर का स्थापना दिवस मान लिया गया।  1930 मेँ यहां नागपालिका बनी, जो 1962 मेँ नगर परिषद बनाई गई। 1933 मेँ गंगानगर का पहला कारख़ाना गंगानगर इंडस्ट्रीज के नाम से शुरू हुआ। जो आज कल बड़ा बाजार के नाम से जाना जाता है। 1937 मेँ धानमंडी की स्थापना हुई। 1945 मेँ यहां बीकानेर इंडस्ट्रीज कारपोरेशन लिमिटेड के नाम से चीनी मिल की स्थापना हुई। जो बाद मेँ गंगानगर शुगर मिल के नाम से जानी गई। जिसे कुछ समय पहले ही कमीनपुरा मेँ शिफ्ट किया गया है। 

उसकी जमीन पर मिनी सचिवालय बनाए जाने का प्रस्ताव है। 1951 मेँ जेसीटी मिल मेँ उत्पादन शुरू हुआ। नई जनरेशन को शायद ज्ञात ना हो कि पुरानी आबादी मेँ बहुत बड़ी कपड़ा मिल हुआ करती थी, जो लगभग बीस साल पहले बंद कर दी गई। इस मिल मेँ कई हजार व्यक्ति काम करते थे। शहर  मेँ बिजली 1952 मेँ आई बताई गई। उससे पहले मुख्य चौराहों पर मिट्टी तेल से लालटेन या चिमनी जलायी जाती थी रात को। इनमें तेल डालने के लिए बाकायदा कर्मचारी रखे थे। आदर्श नगर रफ्यूजी कालोनी था। आज भी किसी बिजली के बिल मेँ आदर्श नगर के स्थान पर रफ्यूजी कालोनी लिखा मिल जाएगा। बस ऐसे  ही गंगानगर बसता रहा। इसका विकास होता रहा। एक वक्त ऐसा आया कि जो था वह हाथ से जाने लगा। जेसीटी मिल बंद हुई। कॉटन कॉम्प्लेक्स गया। तिलम संघ मेँ वो बात नहीं रही।

 रोजगार के साधन शुरू मेँ ही कोई अधिक नहीं थे, जो थे वे भी चले गए। प्राइवेट क्षेत्र मेँ तो थोड़ा बहुत विकास दिखाई देता है,लेकिन रोजगार के साधन नहीं बने। हां, जो बेरोजगार हैं, वे बहुत से व्यक्तियों और संस्थाओं के लिए रोजगार जरूर बन चुके हैं। कोचिंग लेते हैं, नौकरी पाने के लिए। शिक्षा मेँ बेहतर प्रदर्शन करने वाले लड़के लड़कियां बाहर जा रहे हैं। जो फिर वहीं के होकर रह जाते हैं। हर साल कितने ही युवा इस शहर को अलविदा कहने को मजबूर हैं। गंगानगर 90 साल का हो चुका है, इसके बावजूद उसमें इतनी ताकत नहीं कि वह अपनी युवा पीढ़ी को अपने पास रोक सके। अपने निकट रख सके। 

अपनी मां की गोद को कौन छोड़ना चाहता है, लेकिन  मजबूरी है। माँ के पास बच्चे की भूख मिटाने और तरक्की के लिए संसाधन नहीं तो वह भी क्या करे! यूं लगता है जैसे किसी रोज इस बुढ़ाते शहर मेँ केवल बुजुर्ग ही रह जाएंगे। या वे दिखाई देंगे जिनके पास अपने गंगानगर के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं होगा। पता नहीं कब सोचेंगे हमारे जन प्रतिनिधि और कब गंगानगर को अपनाएगी राजस्थान सरकार।

 दो लाइन पढ़ो-

तेरी यादों का नगर इतना बड़ा हो गया

तुझे ढूँढने निकला था, खुद ही खो गया। 

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1 टिप्पणियाँ

  1. कोसी भी शहर की 90 साल की उम्र उसके यौवन की होती है ,ना कि बुजुर्गियत की , इसलिए बुढाता शहर कहना उचित कहाँ है ।

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