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प्रतीकात्मक तस्वीर |
श्रीगंगानगर।[गोविंद गोयल] श्रीगंगानगर मेँ जिस प्रकार से भावी ऊमीद्वारों की लिस्ट मेँ नामों की संख्या बढ़ रही है, उससे एक बात तो तय है कि चुनाव आते आते कार्यकर्ताओं की कदर बढ़ जाएगी। वर्तमान और पूर्व पार्षदों की खातिर पहले से अधिक होगी । सामाजिक,धार्मिक, आर्थिक संस्थाओं के पदाधिकारियों की आव भगत बढ़ेगी। क्योंकि चुनाव मेँ कुछ चेहरे दिखाने के लिए होते हैं और कुछ पास मेँ बैठाने के लिए। कुछ साथ रखने के लिए होते हैं और अनेक पर्दे के पीछे छिपाए रखने के वास्ते। किसी से दिन मेँ सरे आम मिलना वोटरों को लुभाता है और किसी किसी से रात के अंधेरे मेँ अकेले मिलना पड़ता है। चुनाव मेँ सभी व्यक्ति काम के होते हैं।
जो काम का है वह भी और जो अपने घर मेँ भी किसी काम का नहीं है वह भी। चुनाव मेँ बीजेपी और कांग्रेस तो होंगी हीं, इनके साथ साथ आप भी हो सकती है। जमींदारा को कहीं आसरा नहीं मिला तो जमींदारा भी आ सकती है मैदान मेँ। वे भी होंगे जिनको कांग्रेस और बीजेपी टिकट नहीं देंगी। कुल मिलकर लगभग आधा दर्जन उम्मीदवार ऐसे होंगे जिनके बीच टक्कर होने की संभावना राजनीतिक गलियारों मेँ व्यक्त की जा रही है। किसी का यह अंतिम चुनाव होगा और किसी का पहला। जब ऐसे ऐसे उम्मीदवार मैदान मेँ आने की उम्मीद हो तो फिर कार्यकर्ताओं की जरूरत तो पड़ेगी ही। कार्यकर्ताओं के बिना उम्मीदवार किसी काम का नहीं।
कार्यकर्ताओं से ही हवा बनती है। माहौल बनाया जाता है। शर्त लगती है। सट्टा कंपनी मेँ चर्चा होती है। नारे लगते हैं। नुक्कड़ सभाओं मेँ भीड़ दिखती है। और सबसे बड़ी बात ये कि उम्मीदवार को हौसला होता है। कुछ कार्यकर्ता पार्टी से बंधे होते हैं और अनेक किसी व्यक्ति से। बहुत सारे पेड वर्कर भी होते हैं। उम्मीदवार का नाम और काम देखकर भी कार्यकर्ता अपने आप भी आ जाते हैं। कुछ जीत सकने लायक उम्मीदवार के आगे पीछे आने लगते हैं। कई वे नेता भी कार्यकर्ता बनने को मजबूर हो जाते हैं जिनको टिकट नहीं मिलती।
जिसके साथ जितने अधिक कार्यकर्ता होते हैं, उस उम्मीदवार के जीतने की चर्चा भी अधिक होती है। दिवाली की राम राम के बहाने संभावित उम्मीदवारों ने अवश्य ही ऐसे व्यक्तियों से संपर्क किया होगा। आज के दिन बीजेपी मेँ संजय महिपाल, रमेश राजपाल, प्रहलाद टाक, अशोक नागपाल, हरी सिंह कामरा, शिव स्वामी, प्रदीप धेरड़, अमित चलाना, राजकुमार सोनी,संजय मूंदड़ा खुद को टिकट का दावेदार मान रहे हैं। अजय नागपाल की चाल भी थोड़ी थोड़ी बदलने लगी है।
ऐसे ही कांग्रेस मेँ राजकुमार गौड़, संतोष सहारण, जगदीश जांदू, जयदीप बिहाणी, अंकुर मिगलानी,जे एम कामरा, अशोक भूतना, राजेन्द्र सोनी, राजकुमार कक्कड़,कश्मीरी लाल जसूजा, ज्योति कांडा, नरेश अग्रवाल भी अपनी अपनी दावेदारी जता रहे हैं। पीसीसी का मेम्बर बनने के बाद मनिन्दर कौर नन्दा भी अपने आप को सिरियस दावेदार मानने लगीं हैं। उन्होने तो स्नेह मिलन भी किया। हलचल तो शिव दयाल गुप्ता और विजय जिंदल के अंदर भी है, लेकिन वे राजकुमार गौड़ के साथ बंधे हैं, इसलिए खुल के आने मेँ हिचकिचा रहे हैं।
श्याम शेखावटी खाट लेकर ऐसे ही नहीं घूम रहे। वर्तमान विधायक कामिनी जिंदल हैं। 2008 मेँ चुनाव लड़ चुके मनिन्द्र सिंह मान हैं। और कई दशक से राजनीति के केंद्र बिंदू बने हुए राधेश्याम गंगानगर राजनीति छोड़ रेवड़ी नहीं बेचने वाले। महेश पेड़ीवाल का मन भी है। अरोड़ा बिरादरी के वे सभी नेता/कार्यकर्ता, जो बीजेपी और कांग्रेस मेँ हैं, खुद को टिकट का दावेदार मानते ही हैं। जब ऐसे ऐसे जाने माने चेहरे चुनाव मेँ आने को लालायित हों तो फिर कार्यकर्ताओं की पूछ होना स्वाभाविक है।
इसमें तो कोई शक नहीं कि इस बार गंगानगर मेँ कई दमदार उम्मीदवार होने की संभावना है। आज की राजनीतिक स्थिति से तो ऐसा ही आभास होता है। यूं एक साल बाकी है, वक्त क्या करवट ले, कौन जाने। परंतु सब कुछ ऐसा ही रहा तो फिर कई जाने माने व्यक्ति उम्मीदवार के रूप मेँ गंगानगर विधानसभा सीट पर होंगे, इसमें कोई संदेह नहीं।
चार लाइन पढ़ो-
मेरी तन्हाइयों का हिसाब दे जा
मेरे हर सवाल का जवाब दे जा,
तेरे संग देखे थे मैंने जो भी ख्वाब
वो सारे आज मुझे तू ख्वाब दे जा।
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