इन दिनों बड़ी अजीब सी शै छा रखी है गलियारों में। सरहद के गाँवो की पगडंडियों से लेकर मैट्रो की धकधक में खुद को शामिल करने की जुस्तजू में जादूगर की सरकार को बदल कर साहिबा की सरकार को चुनने वाले आम आदमी खुद को बेबस, बेसहारा औऱ बेनूर देख रहे है वही हर किसी की आवाज़ को मुखर करने वाले मीडिया के खिलाफ साहिबा की दमनकारी नीति ने भी लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ को हैरान ,परेशान कर रखा है।
माना कि लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ सक्षम है लेकिन इनके काले कानून की बात विधानसभा की वेल से निकल कर बहुत दूर तक जाती नजर आ रही है।
भले प्रदेश में भ्रष्टाचार पर लगाम लगाओ लेकिन सूबे की साहिबा कलम छीनने से कुछ नही होगा
देश भर में भ्रष्टाचार के कई मामले समय-समय पर उजागर होते आये हे और उनमे से कई में वहा के जिम्मेदार अफसर भी शामिल होते हे, जिसे मीडिया द्वारा या मीडिया की मदद से सामने लाया जाता है। लेकिन राजस्थान सरकार ने अब इस पोल खोल मिडिया पर पाबंदी लगा दी है !
यह सभी को ध्यान है ! लेकिन लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ मीडिया कई तरह के दबाव के बावजूद हर जगह से इस तरह की खबरों को जनता के सामने लाता हे ताकि देश से भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, गरीबी कम हो और लोगो को मुलभूत सुविधाओ के लिए किसी अफसरशाही का शिकार ना होना पड़े या यु कहे की किसी भी तरह की पंगु व्यवस्था के सामने घुटने टैकने पर मजबूर न होना पड़े। लेकिन पिछले दिनों राजस्थान की अफसर शाही पर मिडिया द्वारा आखं उठाना अब एक मुसीबत से भरा हो गया है !
ऐसे में अब देश के प्रधान सेवक नरेंद्र मोदी का कथन न कोई खाएगा और न खाने देंगे वाला कथन यहां राजस्थान की बीजेपी सरकार के इस कानून जिसे काला कानून कहा है ! जो यहाँ अब धूमिल होता साफ़ तौर से दिखाई देता नजर आ रहा है !
एक पत्रकार हमेशा सच्चे और ईमानदार अफसरों के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर सरकार की जनकल्याणकारी कार्यो में सहयोग करते है और वक़्त आने पर भ्रष्ट और बेईमान अफसरों के खिलाफ आवाज भी उठाते है। मगर मानवता के रक्षको और समाज के हितो की रक्षा करने वालो को जब इस पंगु व्यवस्था और भ्रष्ट या भ्रष्टो को बचाने वाले अफसरों के खिलाफ कलम से नही लिखना अब कहा जायज है ! अगर लिख दिया तो उस पत्रकार को कानून की सजा !
ताज़ा उदाहरण कथित तौर पर राजस्थान सरकार ने पिछले महीने दो विधेयक- राज दंड विधियां संशोधन विधेयक, 2017 और सीआरपीसी की दंड प्रक्रिया सहिंता, 2017 पेश किया था. इस विधेयक में राज्य के सेवानिवृत्त एवं सेवारत न्यायाधीशों, मजिस्ट्रेटों और लोकसेवकों के खिलाफ ड्यूटी के दौरान किसी कार्रवाई को लेकर सरकार की पूर्व अनुमति के बिना उन्हें जांच से संरक्षण देने की बात की गई है. यह विधेयक बिना अनुमति के ऐसे मामलों की मीडिया रिपोर्टिंग पर भी रोक लगाता है.
विधेयक के अनुसार, मीडिया अगर सरकार द्वारा जांच के आदेश देने से पहले इनमें से किसी के नामों को प्रकाशित करता है, तो उसके लिए 2 साल की सजा का प्रावधान है. जिसको लेकर राजस्थान के प्रमुख हिंदी दैनिक राजस्थान पत्रिका ने कहा है कि राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे जब तक मीडिया और लोकतंत्र का गला घोंटने वाले विवादित विधेयक को वापस नहीं लेतींं, तब तक अख़बार उनका बहिष्कार करते हुए उनके या उनसे संबंधित किसी भी समाचार का प्रकाशन नहीं करेगा. हाल ही में राजस्थान सरकार ने दो विधेयक पेश किए थे, जिनको लेकर काफी विवाद और विरोध के बाद इसे विधानसभा की प्रवर समिति के पास भेज दिया गया, लेकिन वापस नहीं लिया गया है. गौरतलब है कि काले कानून के तहत मीडिया 6 महीने तक राज्य के किसी भी आरोपी जज, मजिस्ट्रेट या सरकारी अधिकारियों के खिलाफ न तो कुछ दिखाएगी और न ही छापेगी, जब तक कि सरकारी एजेंसी उन आरोपों के मामले में जांच की मंजूरी न दे दे।
इसका उल्लंघन करने पर दो साल की सजा हो सकती है। जिस दौर में गुड गवर्नेंस शब्द की सबसे ज्यादा चर्चा होती है। जब सरकारी कार्यों में पारदर्शिता के लिए आरटीआई, सिटीजन चार्टर जैसी अवधारणाओं से लोककल्याणकारी शासन पर बल दिया जा रहा हो, तब ऐसे काले कानून किसलिए और किसके लिए। देश में भ्रष्टाचार ख़त्म होगा तो देश का और विकास होगा,
आखिर साहिबा इस तरह कलम छीनने से कुछ नहीं होगा।पत्रकार रूखी-सुखी खाकर बिना ए. सी. में भी खुश होगा, भ्रष्टाचार पर लगाम लगाइये साहब कलम छीनने से कुछ नही होगा।
#माधुसिंह गोरा(टिप्पणी)
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