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आखिर उनका क्या होगा जो हड़ताल नहीं कर पायेंगे...,सबकी सुनने वाली पुलिस की आख़िर कब और कौन सुनेगा,कौन करेगा पुलिस के लिए हड़ताल....?


आखिर यह कैसा लोकतंत्र है..?

लव कुमार जैन_✒
सातवें पे कमीशन को लागू करवाने और पांचवी अनुसूची में हुए संशोधन को लेकर हुई वेतन कटौती रुकवाने हेतु हर विभाग के कर्मचारी और अधिकारी अपने-अपने ढंग से इस चुनावी वर्ष में सरकार पर दबाव बनाते रहे है और बना रहे हैं  जैसे.....
01. जैसा कि हाल ही में पटवारी वर्ग द्वारा की गई हड़ताल से सरकार ने पटवारी बनने की शैक्षणिक योग्यता 12वीं से स्नातक करते हुए विभिन्न मांगों पर सहमति बनी
02. ठीक इसी प्रकार रोडवेज कर्मचारियों द्वारा की गई तीन दिवसीय हड़ताल से विभिन्न मांगों पर सहमति बनी
03.इधर ट्रक यूनियन द्वारा की गई हड़ताल से भी विभिन्न मांगों पर सहमति बनी 
उक्त तीन हाल ही की हड़तालों के अलावा भी कई कर्मचारी वर्गों ने अपनी मांगों को हड़ताल के द्वारा सरकार को मनवाई है.. 
जिसमें अध्यापक, ग्रामसेवक मंत्रालयिक कर्मचारी इत्यादि है..
अब बड़ा सवाल यह है कि आखिर पुलिस विभाग जो संवैधानिक रूप से हड़ताल नहीं कर सकता है और ना ही कोई यूनियन बना सकता है

क्योंकि यह विभाग कानून व्यवस्था से सीधा जुड़ा हुआ है मगर इसका मतलब यह भी नहीं होना चाहिए कि जो हड़ताल नहीं कर सकता उसकी बात कोई नहीं सुनेगा....
 कितनी विडंबना है कि बिना हड़ताल कोई सुनता नहीं और हड़ताल पुलिस कर सकती नहीं..

 वर्तमान समय में अपनी जायज मांगों को सरकार के सम्मुख रखना और उनको मनवाने का एकमात्र तरीका हड़ताल ही है जो पुलिस विभाग कर नहीं सकता
आखिर यह कैसा लोकतंत्र है..
पुलिस कर सकती है तो मेस बहिष्कार ओर आज तक किया भी है तो सिर्फ और सिर्फ मैस बहिष्कार जिससे सरकार को किसी भी तरह का कोई आर्थिक,सामाजिक एवं राजनीतिक रुप से कोई नुकसान नहीं होता है क्योंकि पुलिस मैस बहिष्कार (खाना नहीं खा कर) करते हुए भी अपना कर्तव्य बखूबी निभाती है.. इस कारण पुलिस,सरकार और जनता का ध्यान अपनी और आकर्षित नहीं कर पाती है जो बहुत बड़ी विडंबना है....
उल्लेखनीय है 
शैक्षणिक योग्यता बढ़ाने की मांग लगातार की जा रही है। लेकिन वसुंधरा सरकार में सुनने वाला कोई नहीं है। इसी का नतीजा है कि मंहगाई के इस दौर में वर्दी धुलाई के प्रतिमाह मात्र 113 रुपए तथा फील्ड ट्रेवल अलाउंस के मात्र 500 रुपए ही दिए जाते हैं। मैस अलाउंस भी दो हजार रुपए ही है। एक सिपाही की पे-ग्रेड 2400 रुपए निर्धारित है। पूर्ववती कांग्रेस सरकार ने पुलिस कर्मियों के वेतनमानों में वृद्धि की थी, लेकिन वर्ष 2013 में भाजपा की सरकार आने के बाद वेतन में 5 हजार रुपए तक की कटौती कर दी गई। इतना ही नहीं सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें भी अक्टूबर 2017 से लागू की गई है, जबकि केन्द्र सरकार ने जनवरी 2016 से ही सातवां वेतन आयोग लागू कर दिया था। इसके अलावा भी पुलिस कर्मियों की अनेक मांगे हैं लेकिन इन छोटी-छोटी मांगों का भी समाधान नहीं हो रहा है
मान लिया जाए कि लॉ & ऑर्डर की व्यवस्था संभालने वाली पुलिस इसे ही अपने हाथों में ले ले तो क्या हो... ऐसा सोच कर और सुनकर एक आम आदमी की रूह कांप जाती है फिर भी सरकार का इस ओर कोई ध्यान नहीं
सरकारों को अपनी समझ दिखते हुवे एक हाथ आगे बढ़ाते हुवे पुलिस जो सबकी व्यथा सुनती है उनकी व्यथा को भी कभी सुनना चाहिए...
 कोई चिंगारी भयानक आग में बदले उससे पहले भी उस पर काबू पाना चाहिए इसी में जनहित है पुलिस विभाग जो कानून व्यवस्था की महत्वपूर्ण कड़ी है उसका सरकार को इस तरह कानून से बंधे होने का नाजायज फायदा नहीं उठाना चाहिए

 क्योंकि सहनशीलता की भी कोई पराकाष्ठा होती है

उपरोक्त लेख-विचार मेरे निजी विचार है,जरूरी नहीं कि सभी मेरे विचारों से सहमत ही होंगे फिर भी निवेदन है कि आप अपने विचार अवश्य रखें ,सभी के विचारों का स्वागत है ।

लेखक रिपोर्ट एक्सक्लूसिव के सवांददाता भी है
लव कुमार जैन/पत्रकार​​​​
​मेंबर ऑफ़ CLG(वृत स्तर)​​
पुलिस थाना सालमगढ़ RAJ​.

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