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देश में अमीरी गरीबी का बढ़ता फासला


बारक्लेज-हुरुन इंडिया के सर्व और अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के लेबर और एम्प्लॉएमेंट विभाग के एक अध्ययन से जो आकड़े सामने आए है वह वाकई चैकाने वाले है। भारत में अमीरी और गरीबी का जो फासला है वह वाकई चैकाने वाला है। भारत की कुल आबादी के पास जो सम्पत्ति है उसका अनुपाति राई और पर्वत जैसा है। तस्वीर इतनी साफ है कि पता चल जाएगा कि सरकार स्वंय जानबूझकर गरीबों की अनदेखी कर रही है। देश में एक तरफ जहाॅ 1000 हजार करोड़ से ज्यादा की सम्पत्ति वाले 831 लोग है वही न्यूनतम वेतन से भी काफी कम वालों की संख्या फिलहाल 47 प्रतिशत बताई जा रही है। हालाॅकि इन आॅकड़ों में काफी कुछ साफ नही है लेकिन इतना तय है कि इन आॅकड़ों से यह जरूर साबित हो रहा है कि भारत दिखावे के रूप में भले ही तरक्की कर रहा हों लेकिन देश की जनता की माली हालत ठीक नही है। यही कारण है कि मात्र दस से बीच रूपये की दवाॅ के लिए राजकीय, खैराती चिकित्सालयों में हजारों की भीड़ अपना पूरा पूरा दिन खपा कर अपना इलाज करा रही है।
अमीर-गरीब के बीच अंतर कम करने की कोशिशों के बीच देश के अमीरों की ताजा सूची अलग ही तस्वीर बयां कर रही है। बारक्लेज-हुरुन इंडिया के मुताबिक, देश में दो साल में ऐसे लोगों की तादाद दोगुने से भी ज्यादा हो गई है, जिनकी संपत्ति 1,000 करोड़ रुपये या इससे ज्यादा है। 2018 की सूची में ऐसे लोगों की संख्या 831 है। 2016 में यह संख्या 339 थी। रिलायंस इंडस्ट्रीज के प्रमुख मुकेश अंबानी इस सूची में सबसे ऊपर हैं।1सूची के मुताबिक, देश के 831 अमीरों की कुल संपत्ति 719 अरब डॉलर (करीब 52.26 लाख करोड़ रुपये) आंकी गई है। यह देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के चैथाई हिस्से के बराबर है। 

अकेले मुकेश अंबानी की संपत्ति 3.71 लाख करोड़ रुपये है। हुरुन इंडिया के मैनेजिंग डायरेक्टर और चीफ रिसर्चर अनस रहमान जुनैद ने कहा कि अमीरों की बढ़ती तादाद के हिसाब से भारत सबसे तेजी से बढ़ने वाला देश है। दो साल में इस सूची में शामिल लोगों की संख्या दोगुने से भी ज्यादा हो गई है। इस सूची में शामिल लोगों में सबसे कम उम्र ओयो रूम्स के रितेश अग्रवाल की है। वह मात्र 24 साल के हैं। वहीं, 95 साल की उम्र के साथ एमडीएच के धरमपाल गुलाटी सूची के सबसे उम्रदराज व्यक्ति हैं। सूची में महिलाओं की संख्या भी सालभर पहले के मुकाबले 157 फीसद बढ़कर 136 हो गई है। सॉफ्टवेयर एवं सेवा क्षेत्र के 7.9 फीसद और उपभोक्ता वस्तुओं के कारोबार से जुड़े 6.4 फीसद लोग हैं। मुंबई से 233 लोगों को सूची में जगह मिली है। दिल्ली से 163 और बेंगलुरु से 70 लोग सूची में जगह बनाने में सफल रहे हैं। अब सिक्के के दूसरे पहलू की ओर देखने पर पता चलता है कि अमीरी गरीबी के बीच फासला बढ़ चुका है। देश में एक चपरासी पद के लिए इंजीनियर यहां तक कि पीएचडी डिग्री वालों को आवेदन करते हुए आपने सुना ही होगा। 

चालीस पदों के लिए चार लाख आवेदन भी सुने होगें। लेकिन अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के लेबर और एम्प्लॉएमेंट विभाग के एक अध्ययन के मुताबिक देश में 87 फीसदी लोगों की कमाई सरकारी विभाग के चपरासी से भी कम है। अध्ययन के मुताबिक, देश में 87 फीसदी लोगों की एक महीने का आमदनी 10,000 रुपये से कम है। इसमें 82 फीसदी पुरुष और 92 फीसदी महिलाएं शामिल हैं। इसकी तुलना इसी दौर में सातवें वेतन आयोग के तहत न्यूनतम सैलरी 18,000 महीना से की गई है। स्वरोजगार में कितनी कमाई? स्वरोजगार के मोर्चे पर 85 प्रतिशत लोग ऐसे हैं जिनकी महीने की आमदनी 10 हजार रुपये से नीचे है। इसमें 41.3 प्रतिशत लोग ऐसे हैं जिनकी कमाई 5 हजार से कम है। 26 प्रतिशत लोग खुद का काम करके 5 हजार से 7.5 हजार रुपये महीना कमा पाते हैं। इस रिपोर्ट को तैयार करने वाले अमित बसोले ने बताया है कि इस अध्य्यन में लेबर ब्यूरो के रोजगार सर्वे 2015-16 के आंकड़े और नेशनल सैंपल सर्वे के आंकड़े शामिल किए गए हैं। अब इनमें सबसे चैकाने वाली बाॅत यह कि देश में 87 प्रतिशत लोग चापरासी से भी कम वेतन पा रहे है। लेकिन यह पूरा सच नही है बल्कि इस अध्ययन में दूकानो, ठेले, ढाबों, व्यापारिक संस्थानों, रेस्टोंरेन्टो, सब्जी मंडिया, आढ़तों पर काम करने वाले मजदूर,चालक आदि का ब्यौरा है ही नही यहाॅ तो सरकार के न्यूनतम वेतन अधिनियम को पलीता दिखाते हुए खाने के साथ मात्र दो से चार हजार रूपये वेतन दिया जा रहा है। इसकी संख्या बहुसंख्या है। 
बेरोजगारी चरम पर होने के कारण भारत का पढ़ा लिखा युवा पाॅच हजार की नौकरी के लिए मारा मारा घूम रहा है। आने वाले समय में अमीरी और गरीबी के बीच की खाई कौन सा बड़ा और वीभत्स परिवर्तन लाएगी इसका जबाब तो गर्भ में छूपा है लेकिन इतना तय है कि समाज में सामान्जस्य बिठानें में अब तक की सभी सरकारें असफल साबित हुई है या फिर उन्होंने इस ओर ध्यान ही नही दिया। परंतु अमीरों और गरीबों के बीच बढ़ती खाई जैसी कई चुनौतियां हैं। अमीरी और गरीबी की बढ़ती खाई आर्थिक विकास को प्रभावित कर रही है। इसकी वजह कमजोर तबकों के बच्चों को शिक्षा का पर्याप्त मौका नहीं मिलना है। देश में गरीबों की वास्तविकत संख्या कितनी हो यह तो पूरी तरह से साफ नही है। लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा पिछलें चार सालों में जो आकड़े विभिन्न योजनाओं के रूप में सामने आए वह चैकाने वाले है। जैसे लोगों के पास इतना पैसा नही कि वह अपनी बहु बेटी की इज्जत के लिए इज्जतघर भी नही बनवा सकते उनकी संख्या फिलहाल यह है कि स्वच्छ भारत मिशन के तहत देश में अबतक 3 करोड़ 87 लाख से अधिक घरों में शौचालय बनाया जा चुका है। काफी लोग तो ऐसे थे कि उनके पास बैंक में खाते खुलवाने तक के पैसे नही थी सरकारी आकड़ों के अनुसार वह संख्या 1,80,96,130 आंकी गई जिन्होंने जनधन योजना में अपने बैंक खाते खुलवाये। अब उज्जवा गैस को ही ले तो यह आकड़ा भी फिलहाल 3 करोड़ परिवार तक पहुंच चुका है। यानि देश में गरीबों की संख्या अनगिनत है। इसका असर सामाजिक गतिशीलता और देशों में क्षमता के विकास पर पड़ रहा है।

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