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हारे हुए नेताओं पर दांव आखिर किसलिए?


(जी.एन.एस) रायपुर। कांग्रेस भले ही विधानसभा चुनाव में जीतने वाले दावेदारों को टिकट देने की बात कह रही हो लेकिन अब तक जीतने भी नाम तय होने की चर्चा है वे तथाकथित बड़े नेता पिछले एक-एक व दो-दो चुनाव हार चके हैं और उन्हीं को सिंगल नामों में जगह दे दी गई है। पार्टी ने जब जीतने वाले को प्रत्याशी बनाने के मापदंड के आधार पर टिकिट देने का निर्णय लिया है बावजूद पराजित नेताओं पर ही दांव खेला जा रहा है।

वर्ष 2013-14 के चुनाव में भी इन्हीं नेताओं को जीतने वाला प्रत्याशी मानकर आगे किया गया था हार का सामना करना पड़ा था फिर उन्हीं हारे हुए प्रत्याशियों की पुनरावृत्ति की जा रही है। पार्टी के भीतर इस बात की जोरदार चर्चा है कि आखिर इन पराजित बड़े नामों के स्थान पर नए और युवा दावेदारों को उम्मीदवार क्यों नहीं बनाया जा रहा है। इन पराजित नेताओं के क्षेत्रों में भी दर्जनों कार्यकर्ताओं ने दावेदारी पेश की है जिनकी जमीनी पकड़ है फिर उन नए चेहरों पर कांग्रेस के पदाधिकारी दांव क्यों नहीं लगा रहे।
पिछले चुनाव में भी चरणदास महंत और रविन्द्र चौबे जैसे नेताओं ने तथाकथित जीतने वाले उम्मीदवारों को टिकिट दी और सरकार बनाने का दावा किया था लेकिन वे खुद ही चुनाव हार गए। अब एक बार फिर यही लोग टिकिट वितरण कर रहे हैं यह ताज्जुब की बात है। मो. अकबर, रुद्रकुमार गुरु, प्रतिमा चंद्राकर, अमितेश शुक्ला, शिवकुमार डहरिया, चरणदास महंत, रविन्द्र चौबे, डॉ प्रेमसाय सिंह कब से बड़े नेता बन गए, ये चुनाव हारने वाली जमात कैसे कांग्रेस का उद्धार कर पाएगी? जिन सिंगल नामों के तय होने के संकेत मिल रहे है उनमें इन्हीं बड़े नामों के शामिल होने की चर्चा है। इनके विधानसभा क्षेत्रों में तमाम दावेदारों के दावों पर गौर ही नहीं किया गया। संभवत: इन्हीं जीतने योग्य उम्मीदवारों के भरोसे इनका यूपी से आया नेतृत्व पूर्व नौकरशाह जो नेता बनकर भाजपा सरकार को उखाड़ फेंककर कांग्रेस की सरकार बनाने का दावा कर रहा है उनमें क्या इसकी योग्यता-क्षमता परिलक्षित हो रही है।

 यह सवाल कांग्रेसियों के मन में उठ रहा है। कांग्रेसी इसे आलाकमान के लिए विचारणीय प्रश्न बता रहे हैं। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने 15 अगस्त से पहले टिकिट वितरण का ताल ठोका था लेकिन 15 सितंबर आने को है अभी केवल बैठके ही चल रही है। जो नहीं कर सकते उसका कांग्रेसजनों को आश्वासन दिया जाता है। इससे हाईकमान में बैठे नेताओं की अपरिपक्वता झलकती है। भाजपा एक ताकतवर और केडरबेस पार्टी है, केन्द्र सहित 21 राज्यों में उसकी सरकारें हैं उससे लडऩे के लिए कांग्रेस के नेताओं को अपनी कथनी और करनी पर अडिग रहने की जरूरत है अन्यथा मौजूदा रणनीति में कांग्रेस अभी से पिछड़ती नजर आ रही है।

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