सरकार बने प्रोएक्टिव-सड़क की तरह लोकतंत्र की “स्वच्छता” के लिए बने कानून...!


कानून बनानेवाली पावन जगह में कानून बनानेवाले कानून तोड़ कर बैठे तो उसे क्या कहेंगे? देश में सांसदों और विधायको की कुल संख्या ४८९६ है।उनमे से १७६५ यानी ३६ प्रतिशत सांसद –विधायक दागी है। जिन पर सामान्य से लेकर हत्या, किडनेपिंग जैसे संगीन अपराध दर्ज है लेकिन वे अभी दोषी नहीं पाए गये है। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने अपने एक अहम फैंसले में कहा की ऐसे दागीयो को चुनाव लड़ने से कोर्ट नहीं रोक सकती। दागियो को रोकने के लिए संसद ही कानून बनाए। कोर्ट ने आम जनता ऐसे दागी उम्मीदवारों को पेहचान सके इसलिए चुनाव के दौरान स्थानीय अखबारों में तीन बार प्रचार करे की ये उम्मीदवार दागी है। सुप्रीम कोर्ट ने सही कहा की जब तक अपराध सही माना नहीं जाता, कोर्ट उसे दोषी करार कर सजा न दे, तब तक ऐसे किसी भी आरोपित प्रत्याशी को चुनाव लड़ने से रोका नहीं जा सकता। अदालत ने ऐतिहासिक फैंसला दे कर अपना काम कर दिखाया अब बारी है सरकार और संसद की।
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कानून संसद और राज्यों की विधानसभा में बनते है। उसी जगह कानून तोड़ कर कोई कानून बनाने बैठे तो समाज और देश में क्या संदेशा पहुंचेंगा ? इसलिए ऐसे दागियो को लोकतंत्र के पवित्र मंदिर में प्रवेश करने से रोकने हेतु संसद और सरकार कानून बनाये ये अदालत की और समय की मांग है। लोकसभा के आम चुनाव से पहले संसद का एक और सत्र मिलनेवाला है तब केंद्र सरकार कानून के लिए विधेयक पेश करे और सभी दल उसे समर्थन दे तो अगले आम चुनाव में एक भी दागी लोकतंत्र के पावन मंदिर में पैर भी नहीं रख सकेंगा। खबर तो ये भी है की राजनीति में अपराधियों को रोकने के लिए कानून बनाने का मामला सरकार के पास २०१४ से ही पडा है…! हाथ कंगन को आरसी क्या। जब चार साल से यह मामला सरकार के पास विचाराधीन पड़ा है तो सरकार ने अब तक इस पर क्या विचार किया? यदि सरकार ने 4 साल पहले ही इस पर विचार कर कानून बनाया होता तो मामला कोर्ट तक नहीं जाता। खैर देर आये दुरस्त आये की तरह अब इसमें संसद देर न करे और कानून बनाये।

सरकार की मंशा पर किसी को कोई शक नहीं और होना भी नहीं चाहिए।सरकार ने तीन तलाक के लिए कानून बनाने की बात अदालत की मानी और ६ महीने के भीतर ही कानून बनाया। जब वह सदन में पारित नहीं हो पाया तो हाल ही में सरकार ने अध्यादेश जारी कर उसे लागू भी कर दिया। इस सरकार ने मुस्लिम महिलाओँ की दयनीय स्थिति की चिंता है वैसे ही लोकतंत्र के पावन मंदिर की भी चिंता है। यदि ऐसा न होता तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पहलीबार संसद प्रवेश करते वक्त प्रवेशद्वार की सीढियों पर मत्था न टेकते। तीन तलाक कानून की तरह दागीयो को रोकने के लिए संसद अपना फर्ज अदा करे।उम्मीद पर दुनिया कायम है। भारत की जनता भी सरकार की उम्मीद पर आश लगाये है।
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