श्रीगंगानगर, । विश्व स्वास्थ्य संगठन तथा संयुक्त राष्ट्र द्वारा कोरोना वायरस संक्रमण को महामारी घोषित करने के परिपेक्ष में कोरोना वायरस संक्रमण से बचाव एवं रोकथाम हेतु तथा आमजन को आवश्यक चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने के संबंध में व्यापक लोकहित में राज्य सरकार द्वारा सभी संभव प्रयास निरन्तर किये जा रहे है तथा राज्य सरकार इसके लिये पूर्व से ही कटिबद्ध है।
जिला कलक्टर श्री शिवप्रसाद एम नकाते ने बताया कि राज्य सरकार के निर्देशानुसार जिले में सभी निजी चिकित्सालयों को निर्देशित किया गया था कि वे अपनी ओपीडी, आईपीडी, आपातकालीन सेवाएं सुचारू रूप से संचालित करते हुए उनके चिकित्सा संस्थानों में आने वाले मरीजों को समस्त आवश्यक चिकित्सीय सेवाएं उपलब्ध करावें, जिससेे आमजन को किसी परेशानी का सामना न करना पड़े।
राज्य सरकार द्वारा प्रदेश में चिकित्सा सुविधाओं के विस्तार हेतु कुछ चेरिटेबल ट्रस्ट एवं निजी संस्थानों को चिकित्सा संस्थानों की स्थापना एवं संचालन हेतु विभिन्न प्रकार की रियायतें एवं सुविधाएं प्रदान की गई है। राज्य सरकार के संज्ञान में आया है कि इनमें से कुछ निजी चिकित्सालयों द्वारा उनके अस्पताल में उपचार हेतु आने वाले कोविड-19 व अन्य गंभीर बिमारियों के मरीजों के उपचार से बचने के प्रयास कर उन्हें सरकारी व अन्य अस्पतालों में जाने के लिये प्रेरित किया जा रहा है, जो वैश्विक महामारी के इस गंभीर एवं नैतिक दायित्वों से विमुख होना है तथा इसे माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने भी गंभीरता से लिया है।
उन्होंने बताया कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय की भावना के अनुरूप कोरोना वायरस संक्रमण से बचाव एवं रोकथाम हेतु तथा आमजन को आवश्यक चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने के संबंध में व्यापक लोकहित में ऐसे सभी चेरिटेबल ट्रस्ट एवं निजी संस्थान जिन्हें चिकित्सा संस्थानों की स्थापना एवं संचालन हेतु राज्य सरकार द्वारा विभिन्न प्रकार की रियायतें व सुविधाएं प्रदान की गई है व ऐसे निजी चिकित्सालय जिन्हें कोविड-19 के उपचार हेतु चिन्हित, अधिकृत, अनुमत किया गया है, को निर्देशित किया जाता है कि वे अपने चिकित्सा संस्थान में आने वाले कोविड-19 के मरीजों को अपने सामाजिक, मानवीय एवं नैतिक दायित्वों के अधीन समुचित निशुल्क उपचार करें तथा उन्हें अन्य किसी चिकित्सालय में जाने के लिये बाध्य, प्रेरित न करें। दिशा निर्देशों की कडाई से पालना सुनिश्चित की जावे ताकि राज्य सरकार को ऐसे संस्थानों के विरूद्ध कोई अप्रिय निर्णय लेने हेतु बाध्य होना नही पड़े।
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