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हिंदी साहित्य भारती" की ऑनलाइन "संस्मरण-काव्यगोष्ठी"


प्रेरणास्पद संस्मरणों एवं  विविधवर्णी कविताओं की सुन्दर प्रस्तुति‌

 

       उदयपुर, 20 अगस्त। अंतरराष्ट्रीय संस्था "हिंदी साहित्य भारती" के तत्वावधान में गत दिवस 'साप्ताहिक कार्यक्रम-शृंखला' में संस्मरण-काव्यगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें देशभर के रचनाकारों व विद्वान मनीषियों ने बहुरंगी छटा बिखेरते हुए श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।

        कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ.नलिनी पुरोहित,गुजरात ने की एवं मुख्यातिथ्य डॉ. नरेश मिश्र, हरियाणा ने किया। संचालन डॉ. मुक्ता सिकरवार ने किया।

      कार्यक्रम का शुभारंभ श्रीमती रीमा पाण्डेय,कोलकाता द्वारा प्रस्तुत भावपूर्ण 'वाणी वंदना' से हुआ।

       कार्यक्रम में अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए डॉ. नलिनी पुरोहित ने "हिन्दी साहित्य भारती" के केंद्रीय अध्यक्ष डॉ.रवीन्द्र शुक्ल, केंद्रीय मीडिया संयोजिका डॉ.रमा सिंह एवं संयोजक मंडल द्वारा इस कार्यक्रम के सुसंचालन के लिए हार्दिक आभार व्यक्त करते हुए कहा कि "हिंदी साहित्य भारती" ने साहित्यानुरागियों, रचनाधर्मियों एवं समाज के बुद्धिजीवी वर्ग को एक साथ जोड़कर हिंदी के उन्नयन हेतु महती भूमिका का निर्वहन किया है। उन्होंने कहा कि बहुत ही कम समय में हिंदी साहित्य भारती ने राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपने गठन का परचम लहरा दिया है। इस प्रयास से हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में प्रतिस्थापित करने में अवश्य ही सफलता मिलेगी।

         इस अवसर पर मुख्य अतिथि डॉ नरेश मिश्र ने काव्य रचना प्रस्तुत की-

"रात के बाद होता है सवेरा सदा सोचकर मन में यह भरोसा करो.."

       अगले क्रम में कवि अनिल अमल लखीमपुर खीरी ने सेल्यूलर जेल में तत्कालीन मंत्री द्वारा सावरकर के शिलालेख हटवाने पर पीड़ा व्यक्त करते हुए रचना,  "जिनकी कुर्बानी से भारत अब तक जीता है, जिन की जीवन गाथा रामायण है गीता है, ऐसे बलिदानी जब धरती पर अपमानित होते हैं.... तब मेरी कविता शब्दों में अंगारे भर लाती है..." सुनाकर श्रोताओं में राष्ट्रीयता भावबोध की हिलोरों का संचारकर दिया।

        कार्यक्रम को काव्यपाठ की ओर  मोड़ते हुए श्री विनीत भारद्वाज, उत्तराखंड ने सुंदर गीत प्रस्तुत किया, "राम को जनना हरइक युग काल की इच्छा रही है, पर विधाता को जन्मना देह के बस में नहीं है.."

 डॉ. किंकरपाल सिंह द्वारा एक सुंदर कविता, जिसमें मन के भावों का सुंदर चित्रांकन हुआ, प्रस्तुत की गई, "जब कभी घर आपके मिलने चला आता हूँ मैं, आपके नैनों में तिरते इंद्रधनु पाता हूँ मैं.."

    इसी क्रम में श्री रामबाबू शुक्ल शाहजहांपुर ने सुंदर कविता प्रस्तुत की, "दंभ किया खंड- खंड वीरों ने फिरंगियों का, ऐसे रणवांकुरों की शान लिखता हूं मैं..,उन्होंने परमवीर चक्र विजेता यदुनाथ सिंह का स्मरण करते हुए हुतात्मा वीरों को नमन् किया। तमिलनाडु से डॉक्टर के. आनंदी द्वारा 9 वर्ष की उम्र में उनके ऊपर एक भवन के ध्वस्त होकर गिरने की एक दुर्घटना का मार्मिक चित्रण किया गया। 

   रीमा पांडेय, कोलकाता द्वारा कॉलेज के दिनों का संस्मरण "परीक्षा"  देने के   लिए  गलत नंबर की बस में बैठ जाने एवं सहयात्री महिला द्वारा सहयोग का प्रभावी एवं भावपूर्ण बिंब प्रस्तुत किया।  

       अंत में  संचालन कर रही डॉ. मुक्ता सिकरवार ने सभी विद्वानों, साहित्य मनीषियों, श्रोताओं एवं मीडिया संवाददाताओं का आभार प्रदर्शन किया।  

       कार्यक्रम में संस्था के चंचला दवे,अनीता मिश्रा,डॉ.केशव शर्मा, रामचरण "रुचिर", सूरजमल मंगल,डॉ.अन्नपूर्णा, वी.पी.सिंह, डॉ. विमल सिंह, डॉ.राजेन्द्र शुक्ल, डॉ.लता चौहान, डॉ. सुरभि दत्त, डॉ सुखदेव माखीजा, नरेंद्र व्यास, विनोद मिश्रा, डॉ वंदना सेन, पुष्पा मिश्रा जगदीश शर्मा, डॉ.जमुना कृष्णराज आदि सहित समूह के सभी सदस्यों ने ऑनलाइन कार्यक्रम का आनन्द लेते हुए अपनी प्रतिक्रियाएँ देकर विद्वान मनीषीगण का आभार व्यक्त कर उनका उत्साहवर्धन किया। कार्यक्रम  बहुत ही उपयोगी, ज्ञानवर्धक एवं सराहनीय बताते हुए सभी ने भूरि- भूरि प्रशंसा की।           

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