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10 मई से शुरू हो रहे लॉकडाउन को लेकर वरिष्ठ साहित्यकार डॉ भरत ओला ने लोगों से की घरों में रहने की अपील

 हम घर में रहेंगे तो प्रशासन एवं स्वास्थ्य कर्मियों पर एक तरह से अहसान ही करेंगे- डॉ भरत ओला


10 मई से शुरू हो रहे लॉकडाउन को लेकर वरिष्ठ साहित्यकार डॉ भरत ओला ने लोगों से की घरों में रहने की अपील


हनुमानगढ़,। कोरोना महामारी के इस संक्रमण को रोकने के लिए सरकार ने 10 से 24 मई तक लॉकडाउन की घोषणा की है। लॉकडाउन में लोग घरों में ही रहें। अनावश्यक रूप से बाहर ना निकलें। इसको लेकर जिले के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ भरत ओला ने हनुमानगढ़ के निवासियों से अपील करते हुए कहा कि अगर हम घरों में रहेंगे तो जिला प्रशासन एवं स्वास्थ्य कर्मियों पर एक तरह से अहसान ही करेंगे। अस्पतालों का बोझ कम होगा तो डॉक्टर्स और स्वास्थ्य कर्मियों को भी थोड़ी रिलीफ मिलेगी। अति जरूरतमंद लोगों को बेड और पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन मिल सकेगी। ऐसे में डॉक्टर्स  कुछ और जिंदगी बचा पाने में कामयाब होंगे। डॉक्टर्स और स्वास्थ्य कर्मी भी इंसान हैं। कम से कम इनके लिए ही घरों में रहे। 

                          डॉ ओला ने प्रेस में आमजन से अपील करते हुए लिखा है कि पल-प्रतिपल बुरी खबर सुनने को मिल रही है। कभी कोई दोस्त जा रहा है, कभी दोस्त का परिजन, तो कभी कोई रिश्तेदार। इतने भयावह और क्रूर समय की तो किसी ने कल्पना ही नहीं की थी। समझ में नहीं आता क्या करें ? डॉक्टर कहते हैं पैनिक नहीं लेना। मानते हैं पैनिक लेने से कोई फायदा नहीं।लेकिन मन बहुत ही विचलित और उडार है। सोचा नहीं था कि 21वीं सदी में इस तरह की महामारी देखने को मिलेगी। हम सब एक दूसरे को यही सलाह दे रहे हैं कि घर में रहें और सुरक्षित रहें। बिल्कुल हमें घर में भी रहना है और सुरक्षित भी लेकिन डॉक्टर ,नर्स, स्वास्थ्य कर्मी, पुलिसकर्मी,प्रशासन और अन्य दूसरे वे लोग जो इस महामारी में रात दिन सेवाएं दे रहे हैं, वे बेचारे घर में कैसे रहें ? संकट और खिन्नता भरे समय में हमारा फर्ज बनता है कि हम उन लोगों के प्रति भी सोचें और उनको उचित सम्मान दें। 

                           कई बार यह देखने में आया है कि बीमार के परिजनों द्वारा डॉक्टर्स और स्वास्थ्य कर्मियों के साथ बदसलूकी की जाती है। मानते हैं कि बीमार के परिजनों पर दुखों का पहाड़ टूटा है लेकिन हमें संयम से काम लेना है।हमें यह भी देखना है कि डॉक्टर या स्वास्थ्य कर्मी जानबूझकर लापरवाही या किसी की जान नहीं ले रहे। वे भी इंसान हैं। उन्हें भी आराम की जरूरत है। उनका पेट भी खाना मांगता है। उनके भी छोटे-छोटे बच्चे हैं।उनके भी चिंतित मां-बाप और पत्नी घर पर इंतजार कर रहे हैं। इस भयानक महामारी से उन्हें भी डर लगता है। हमें यह समझना चाहिए कि उनकी भी कुछ मजबूरी या संसाधनों की कमी हो सकती है। इसमें कोई दो राय नहीं कि लापरवाही के कुछ अपवाद भी  हो सकते हैं या आपदा में भी अवसर तलाशने वाले संवेदनहीन लोग भी हो सकते हैं लेकिन थोड़े से लोगों के कारण बहुत सारे लोगों का अपमान नहीं किया जाना चाहिए।

                         आखिर में डॉ ओला ने लिखा है कि हम घर में रहेंगे तो प्रशासन एवं स्वास्थ्य कर्मियों पर भी एक तरह का  एहसान ही करेंगे।अस्पतालों का बोझ कम होगा तो डॉक्टर्स और स्वास्थ्य कर्मियों को भी थोड़ी रिलीफ मिलेगी। लोगों को बेड और ऑक्सीजन मिलेगी, तो वे कुछ और जिंदगी बचा पाने में कामयाब होंगे। समझिए डॉक्टर्स और स्वास्थ्य कर्मी भी इंसान हैं। तमाम कोरोना वॉरियर्स को दिल से सलाम।

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