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Lumpy virus spreading in cattle : मवेसियों में फैल रहे लम्पी स्कीन रोग की रोकथाम हेतु अभियान चलाकर कार्य करें-डॉ. रवि पूनियां

Lumpy virus spreading in cattle


सादुलपुर, (ओमप्रकाश)। राजस्थान राज्य के अन्य जिलों के अनुसार चूरू जिले के राजगढ तहसील में भी मवेशियों में लम्पी स्कीन डिजिज (Lumpy Skin disease) (एल.एस्.डी.) का प्रकोप बढ रहा है। नोडल क्षेत्र पशुपालन विभाग राजगढ (Pashupalan Vibhag Rajgarh) में 9 आरआरटी का वरिष्ठ पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ. रवि पूनियां के नेतृत्व में गठन कर सभी संस्थाओं को रोग की रोकथाम हेतु अभियान चलाकर कार्य करने के लिए निर्देशित किया गया है। 


डॉ रवि पूनियां ने सभी पशुपालक व गौशाला प्रबंधन समितियों से अनुरोध किया है कि उनके यहां कोई भी मवेसी लम्पी स्कीन डिजिज (Lumpy virus spreading in cattle) से ग्रस्ति पाया जाता है उसे तुरन्त प्रभाव से स्वस्थ पशुओं से अलग कर साफ-सुथरें बाड़े में पृथक से रखा जावे एवं चारा-पानी भी स्वस्थ्य पशुओं से अलग दिया जावे। साथ ही साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखा जावें तथा नजदीकी पशु चिकित्सा संस्थान से सम्पर्क कर आवश्यक उपचार की कार्यवाही करावें। उन्होंने बताया कि पशुपालक अपने बाड़ों में तथा गौशाला प्रबंधन समितियां गौशालाओं में कीटनाशक घोल का छिडक़ाव कर साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें तथा साथ ही बाड़ों में नीम व गुगल आदि से धुआं कर मक्खी मच्छर व अन्य कीट-पतंगों को बाड़ों से दूर रखने का प्रयास करें। डॉ पूनियां ने बताया कि संक्रामक रोग से मृत पशु को 1.5 मीटर गहरे गड्ढे में चूनेे या नमक के साथ दबा दे एवं मृत पशु के सम्पर्क में रही वस्तुओं व स्थान को फिनाइल लाल दवा आदि से कीटाणु रहित करें। 


नोडल क्षेत्र राजगढ में संचालित समस्त 27 गौशालाओं में विभाग के एस.वी.डी./वी.डी. की देख-रेख में एन्टीसेप्टीक घोल का स्प्रे करवाया जा रहा है। डॉ पूनियां ने बताया कि राजगढ क्षेत्र की 07 गौशालाओं मेंं 57 लम्पी स्कीन डिजिज (Lumpy Skin disease) ग्रस्त गौवंश उपचाराधीन है तथा गौशालाओं में अभी तक एक भी पशु की मृत्यू इस बीमारी से नहीं हुई है। इसके अतिरिक्त 09 गाँवों में 38 पशुओं में इस बीमारी से ग्रस्ति पशुओं का भी उपचार किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि लम्पी स्कीन डिजिज एक वायरस जनित संक्रामक बीमारी है जो पशुओं से मनुष्य में नहीं फैलती, इसलिए पशुपालकों को अनावश्यक रूप से घबराने की आवश्यकता नहीं है। तथा पशुओं का दुध गर्म कर काम में लेवें। उचित उपचार एवं देखभाल से ज्यादातर पशु 2-3 सप्ताह में ठीक हो जाते हैं। मगर गंभीर स्थिति में द्वितीयक इन्फेक्शन, निमोनिया होने से पशु की मृत्यू हो जाती है तथा मृत्यू दर कम ही रिकॉर्ड (2-3 प्रतिशत) प्रभावित पशु में दर्ज की गई है, लेकिन ज्यादातर पशु ठीक हो जाते हैं। 

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