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राजस्थान -क्या सभी जजो व जांच एजेंसियों को हटा देना चाहिए,भाजपा को इतना डर क्यों...?,अभिव्यक्ति की आजादी पर प्रहार की तैयारी


राजस्थान । (सतीश बैरी) अभिव्यक्ति की आजादी पर प्रहार पर सरकार का झूठा बहाना

अभिव्यक्ति की आजादी, जो संविधान ने हर भारतीय को दी है, उस पर सरकार ने कड़ा प्रहार करते हुए भ्रष्ट अधिकारियों को बलात्कार पीडि़तों जैसी सुरक्षा देने का फैसला किया है। 

सरकार का कहना है कि इससे झूठा मुकदमा दर्ज करवाकर अधिकारियों और नेताओं को बदनाम किया जाता है। 

1. क्या आम आदमी पर झूठे मुकदमे दर्ज नहीं होते। खुद पुलिस अधिकारी लोगों पर झूठे मुकदमे दर्ज करवाते हैं। एक नहीं एक हजार प्रमाण हैं। 

2. अगर अधिकारी को बदनाम करने के उद्देश्य से मुकदमे दर्ज होते हैं तो इसके लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 500, 501 में पीडि़त अधिकारी के पास अधिकार होता है कि वह बदनाम करने वाले व्यक्ति के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दर्ज करवाये। 

सिर्फ भाजपा को ही क्यों लगता है कि नेताओं और अधिकारियों के खिलाफ झूठे मुकदमे दर्ज हो रहे हैं। केन्द्र शासित मोदी सरकार ने पिछले तीन सालों में सिर्फ कांगे्रस और आम आदमी पार्टी के खिलाफ ही ईडी, सीबीआई के खिलाफ जांच करवायी। अपनी पार्टी के किसी भी एक कार्यकर्ता के खिलाफ ईडी, आयकर और सीबीआई के छापे नहीं डलवाये। वह भाजपा में हैं तो दूध के धूले हैं। कांग्रेस में हैं तो भ्रष्टाचारी हैं। 

पहले महाराष्ट्र में यह काला कानून बनाया गया और अब राजस्थान में। इसके बाद हरियाणा में भी इस कानून की तैयारी है। ऐसे संकेत मिले हैं चण्डीगढ़ से। 

झूठा मुकदमा दर्ज करवाने वालों के खिलाफ 182 के तहत कार्यवाही का प्रावधान है। पीडि़त अधिकारी कोर्ट में अपने वकील के माध्यम से कार्यवाही क्यों नहीं करवाता। 

सरकार की स्पष्ट मंशा है कि वह स्वतंत्र मीडिया को भी कानून के दायरे में लाने के लिए प्रयासरत है ताकि उस पर दबाव बनाया जा सके कि वह सरकार और उसके भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ नहीं लिख सके। 

सरकार सीधा ही कानून बना दे, पोक्सो एक्ट जैसा। मीडिया के जो संस्थान हैं वो बंद हो जाये। मीडिया को दूसरी तरह से कंट्रोल करने के लिए प्रयासरत है। 

इस गु्रप में बैठे मेरे अधिकारी क्या यह नहीं बतायेंगे कि दहेज प्रताडऩा, बलात्कार जैसे मुकदमों का दुरुपयोग नहीं होता? 80 प्रतिशत से अधिक मुकदमों का दुरुपयोग होता है तो क्यों न सरकार इस पर कानून बना दे। महिला उत्पीडऩ के मुकदमे भी सरकार के आदेशों से ही दर्ज होंगे। 

सरकार के पास पुलिस जैसी कठपुतली जांच एजेंसी है। जो नेताओं के ईशारों पर नाचती है। नेताओं की डिजायर पर ही एसएचओ की नियुक्ति होती है। सत्तापक्ष के विधायक की अनुशंषा पर डीवाईएसपी लगता है। एडीशनल एसपी लगता है। इसके बावजूद सरकार को लगता है कि उसके अधिकारियों और नेताओं के साथ दुर्भावनापूर्वक कार्यवाही होती है तो इससे शर्म की कोई बात नहीं हो सकती। वहीं केन्द्र की मोदी सरकार अब सोशल मीडिया पर भी कंट्रोल के लिए कानून बना रही है। मोदी के कार्यकाल संभालते ही लालकृष्ण आडवाणी ने एक टिप्पणी की थी कि देश में अघोषित आपातकाल लागू हो रहा है, क्या सचमुच वह समय आ गया है। मोदी की ही यह कला है कि करोड़ों लोगों से रोजगार छीनकर उनको बेरोजगार बनाने की अपनी जीएसटी और नोटबंदी जैसी फेल योजनाओं को भी राष्ट्रहित के रूप में प्रचार कर सकती है। जो उसके खिलाफ बोलेगा, वह कानून के दायरे में आयेगा। दूररदर्शी आडवाणी ने सचमुच अपने चेले के लिए सही लिखा था। 

Satish Beri
Sri Ganganagar

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