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हनुमानगढ़ विशेष : ना नेता ईमानदार ना जनता तो विरोध कौन करे! चलती फिरती जिंदा लाशों का शहर हैं मेरा....


कुलदीप शर्मा की कलम से विशेष रिपोर्ट
हनुमानगढ़ । शहर की व्यवस्था को लेकर जितने सवाल खड़े किये जाए कम ही होंगे ! शहर में हर रोज कोई ना कोई बड़ा हादसा,कांड,लापरवाही और बेपरवाही देखने को मिलती हैं ! शहर में जहां जनता व नेता दोनों सो रहे होते हैं उसे हम शायद "जिंदा लाश" ही कहेंगे..... ! अगर फिर भी कोई आपके पास शब्द हो तो हमे जरूर बतावे...!

शहर में जहां देखो अव्यवस्थाये जन्म ले रही हैं! शहर में सत्ता पक्ष  अपनी जमीन खोती हुई नजर आ रही हैं! बहुत से ऐसे उदाहरण हैं जिससे समझा जा सकता हैं कि आखिर ऐसा भी हो सकता हैं क्या...? 

कुलदीप शर्मा विशेष रिपोर्ट

सफाई व्यवस्था को लेकर राज्य बाल अधिकार सरंक्षण सदस्य अर्जुन बागड़ी ने मुहिम छेड़ी लेकिन उसी मुहिम को नगरपरिषद ने राजनीतिक स्टंट बताया ! तो वहीं अर्जुन बागड़ी ने पूरे फोटोज व खबरों के साथ एक मंच कार्यक्रम आयोजित किया । जिसमें शहर के वो लोग भी नदारद दिखे जो अपने आप को शहर का सबसे बड़ा शुभचिंतक कहते हैं....! 

कुलदीप शर्मा विशेष रिपोर्ट

जिस शहर में हर समस्या का आखिरी पड़ाव सिर्फ ज्ञापन तक ही सीमित हो जाता हैं और वो भी चंद गिने-चुने लोगो के द्वारा ये काम किया जाता हैं उस शहर को हम क्या कहेंगे...?? जागरूक... या मूर्ख बनना....??

कुलदीप शर्मा विशेष रिपोर्ट

शहर में सरकार किसी की रही धड़ा-धड़ अतिक्रमण करवा दिए गए या कर दिए गए ! लेकिन सभी चुप रहे आखिर जब हाई कोर्ट के आदेश हुए तो नींद खुली की नहीं जी ये गलती तो हुई अब उसमें खाना पूर्ति कर दी जाए तो ठीक है ! लेकिन ना तो इस शहर के नेताओ को,ना ही शहर के वाशिन्दों को और ना ही नोकरशाहो को इसकी चिंता हैं...! सभी अपनी-अपनी धुन में मस्त नज़र आते हैं !


अब शहर में सरेआम लूट-पाट, डकैती व गोली मारने की घटनाएं आम बात हो चुकी हैं लेकिन शहर के नेता,वासिंदे और प्रशासन लम्बी चादर तान सोये हुए हैं! जब भी इस शहर को देखता हूँ तो एक बात याद आती हैं "लगता हैं जिंदा चलती-फिरती लाशों का शहर हैं मेरा" !

कुलदीप शर्मा विशेष रिपोर्ट

जो शहर कभी रोजगारी के नाम पर आगे माना जाता था जहां सबसे बड़ी मील हुआ करती थी वो बन्द हो गयी लेकिन नेता,शहर वासिंदे गहरी नींद में सोते रहे ! उन लोगो की तरफ किसी ने नहीं देखा जो अचानक बेरोजगार हो गए। जब उन्ही घायल व बेरोजगारों को रोटी के लाले पड़ने लगे तो शहर के नेताओ को याद आया कि नहीं यार ये भूख मर रहे हैं! अब फिर भी चंद लोग ही शामिल हो पाए ,शहर भी शांत दिखा । 


खैर कोई बड़ा नेता होता या कोई हंसी मजाक या विवाह शादी का कार्यक्रम होता तो पूरा शहर निकल पड़ता खुद को चमकदार वस्त्रों में ढक के! लेकिन अब कमजोरों को कौन सुने लेकिन जिस प्रकार से हनुमानगढ़ ने जो कुछ झेला वो काबिले तारीफ ही कहूंगा कि जनता को फिर भी कोई फर्क नहीं पड़ा...! खैर जिंदा लाशो का शहर तो हैं ही मेरा...!

अब सरकार ने फिर काले-कानून को पारित करने के लिए विधानसभा में पेश किया तो जोरदार हंगामा हुआ बाहर मीडिया ने सरकार को जमकर लताड़ा तो वहीं जनता की विरोध के सामने सरकार को उस कानून को प्रवर समिति को सौंपना पड़ा जो कि अपने आप मे बहुत बड़ी तानाशाही थी! लेकिन कुछ एक नेताओ को छोड़ कर जिले में कोई खास नहीं हो पाया! शहर के नेता से लेकर वासिंदे आराम से गहरी नींद में सोए हुए हैं! अब हम क्या कहे...??


शहर में जो कुछ लोग बचे उन्होंने अपनी धार्मिक,समाजिक, राजनीतिक व अन्य संगठनों को निर्माण कर लिया जो अपनी डफली बजाने में लगे हुए हैं ! अब समझ से परे हैं कि शहर को आखिर बचाये तो कौन बचाएं...!


अब समझ नहीं आता जहां विरोध ही सिर्फ दिखावे व ज्ञापनों तक सीमित रह जाता हैं उस शहर के लिए क्या कहोगे...?? "ना नेता ईमानदार,ना जनता तो विरोध कौन करे...!


अब तो बस बार-बार दिल ये ही कहता हैं "जिंदा लाशो का शहर हैं मेरा"...!

लेखक व पत्रकार कुलदीप शर्मा

कृपया इस को लेकर अपनी प्रतिक्रिया नीचे कमेंट बॉक्स में।जरूर लिखे ताकि हम आपके सुझावों व शिकायतों को समझ सके.... 

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