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राम मंदिर पर राजनीति! वाजिब और ग़ैरवाजिब में फ़र्क समझ लिया है, क्या..?

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इंडिया (लेखक अवस्थी बी के) भाजपा, विश्व हिन्दू परिषद और इसके पार्टनर बजरंग दल आदि ने जनता को भरोसा दिलाया था कि अयोध्या में राम मंदिर बनकर रहेगा । जब वादा किया तो अब उससे परहेज क्यो ? भाजपा द्वारा तर्क दिया जा रहा है कि यह मामला अदालत में लंबित है । जब अदालत में लंबित है तो भाजपाइयों ने जनता के साथ किस आधार पर मंदिर बनाने का दावा किया ? क्या जनता की भावनाओ के साथ खिलवाड़ नही है ? क्या यह धोखाधड़ी की श्रेणी में शुमार नही है ?


हकीकत यह है कि भाजपा की दुकान मे सामान खत्म हो चुका है तभी तो चुनावों के वक्त घिसे पिटे मुद्दे राम मंदिर निर्माण की बात की जा रही है । यदि राम मंदिर बनाना ही था तो इतने दिन भाजपा नेता खामोश क्यों रहे ? क्या भाजपा नेता बता सकते है कि चुनाव के चार साल के भीतर कितने नेताओं ने राम मंदिर के दर्शन किए अथवा राम मंदिर बनाने की दिशा में प्रभावी पहल की । 


जिस प्रकार कांग्रेस गरीबी, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार का राग आजादी के बाद से अलाप रही है, उसी प्रकार भाजपा के पास बेचने लिए केवल एक मुद्दा है जिसे वह हर बार भुनाने का प्रयास करती है । मूर्ख जनता इन फरेबियों के जाल में फॅस कर उनकी बात को सच भी मान लेती है ।  खोटी चवन्नी की तरह यह मुद्दा एक बार कामयाब होगया था । लेकिन हर बार खोटी चवन्नी थोडे ही चलेगी । लगता यह भी है कि नरेन्द्र मोदी का विश्वास भी डगमगा गया है, इसलिए उन्होंने यूपी चुनाव में राम मंदिर का आसरा लिया । उसके बाद पूरी तरह खामोश होकर बैठ गए । गुजरात मे इस मुद्दे को भुनाने की कोशिश की होती तो जूते पड़ना स्वाभाविक था । इसलिए आजकल सीडी के जरिये सिढी पर चढ़ने के प्रयास किया जा रहा है । 


यदि भाजपा को वास्तव मे मंदिर बनाना है तो फालतू बैठे अडवानी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती आदि को सारे काम काज छोडकर राम मंदिर निर्माण के लिए युद्वस्तर पर जुट जाना चाहिए । यदि स्वयं नरेन्द्र मोदी भी वहाॅ चले जाए तो बेहतर होगा । मेरी भाजपा और कांग्रेस दोनो से एक ही विनती है कि जनता को बरगलाना छोडों । देश की जनता सबकुछ जानती है । इसलिए नए मुखोटों की जरुरत है । पुराने मुखोटे जर्जर हो चुके है ।

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