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उड़ गए हैं भाजपा विधायकों और मंत्रियों के हाथों के तोते


श्रीगंगानगर (विनोद सोखल)। अलवर और अजमेर संसदीय सीट तथा मांडलगढ़ विधानसभा सीट के उप चुनाव में पराजय के बाद हनुमानगढ़ और श्रीगंगानगर जिले के भाजपा विधायकों और मंत्रियों के हाथों के तोते उड़ गए हैं। चार साल से सत्ता का स्वाद चख रहे भाजपा विधायकों और मंत्रियों के आराम में उप चुनाव में हुई पार्टी की हार ने खलल डाल दिया है। विधानसभा चुनाव में टिकट को लेकर फिक्रमंद दोनों जिलों के ये नेता अपने करीबी लोगों से अपने भविष्य के बारे में चर्चा करने पर मजबूर हो गए हैं। अपना टिकट कटने की स्थिति में वे अपने बेटे-पोतों को आगे करने को बेहतर विकल्प मान रहे हैं।





भाजपा के लोग उप चुनावों में मिली करारी हार के कारण सत्ता और संगठन में बदलाव तय मान रहे हैं। उच्च स्तर पर बदलाव होगा तो हालात की नए सिरे से समीक्षा होना तय है। बेहद सख्त फैसले लेने के लिए मशहूर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह इस हार को हंसी में उड़ा देंगे, यह सोचना ही फिजूल है।







 उप चुनावों में मिली हार आगामी विधानसभा चुनाव के लिहाज से भाजपा पर मंडरा रहे बड़े खतरे के रूप में नजर आ रही है। अगर भाजपा विधानसभा चुनाव हारी तो इसके बाद होने वाले लोकसभा चुनाव में भी पार्टी के लिए मुसीबत खड़ी हो जाएगी। वर्ष 2019 में फिर से केन्द्र में काबिज होने के सपने देख रही भाजपा राजस्थान जैसे बड़े प्रदेश को अपने हाथ से आसानी से निकलने देगी, यह कोई नहीं सोच सकता। आलाकमान ने हार पर मंथन शुरू कर दिया है। इस मंथन के परिणाम सामने आने में ज्यादा देर लगने वाली नहीं है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि जमीनी स्तर पर सुधार के लिए सख्त फैसले लिए जाएंगे। इसके तहत सत्ता और संगठन में व्यापक बदलाव और चुनाव में कड़ी समीक्षा के बाद ही टिकट देना शामिल होगा। उम्रदराज और अक्षम, जनता में छवि बनाने में विफल विधायकों के टिकट सबसे पहले कटेंगे।




पार्टी में चल रही इस सुगबुगाहट से इलाके के भाजपा विधायकों और मंत्रियों के चेहरे का रंग उड़ गया है। खान राज्य मंत्री सुरेन्द्रपाल सिंह टीटी और प्रभारी मंत्री जल संसाधन मंत्री डॉ. रामप्रताप इनमें शामिल हैं। टिकट पर खतरा मंडराते ही वे अपने बेटों को आगे बढ़ाने से नहीं चूकेंगे। हनुमानगढ़ में डॉ. रामप्रताप के बड़े पुत्र अमित सहू अपने पिता का विकल्प बनने के लिए तैयार हैं। रामप्रताप के छोटे बेटे की राजनीति में दिलचस्पी नहीं है और बड़े बेटे अमित को राजनीति के सिवाय कुछ सुहाता ही नहीं है। उधर, श्रीकरणपुर मेें सुरेन्द्रपाल सिंह टीटी का भारी विरोध नजर आ रहा है। पिछले चुनाव में वोटों से उनकी झोली भर देने वाले लोग इस बार सरेआम मुखालफत करते नजर आ रहे हैं। निर्वाचन क्षेत्र में खराब हुई छवि से टीटी के टिकट पर पहले ही संकट नजर आ रहा था, अब अलवर में उनके प्रभार में भाजपा की करीब दो लाख वोटों से हुई हार भी खतरे की घंटी बन गई है।






टीटी पहले ही अपने बेटे समनदीप को पार्टी का जिला पदाधिकारी बनाकर राजनीतिक मैदान में उतार चुके हैं। पार्टी अगर उनका टिकट काटती है तो बेटे को आगे करने के अलावा उनके पास कोई चारा नहीं है। सूरतगढ़ में विधायक राजेन्द्र भादू का बेटा भी पिता की विरासत संभालने के लिए तैयार है।






सादुलशहर में वृद्धावस्था के हावी होने से विधायक गुरजंट सिंह बराड़ पहले से ही लोगों के बीच पौत्र गुरवीर सिंह बराड़ को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर चुके हैं। भारतीय जनता युवा मोर्चा के जिलाध्यक्ष गुरवीर सिंह अपने दादा की विरासत संभालने के लिए तैयारियों में जुटे हुए हैं। श्रीगंगानगर में पूर्व राज्य मंत्री राधेश्याम गंगानगर बेटे रमेश राजपाल को खुलेतौर पर अपना विकल्प घोषित कर चुके हैं। वृद्धावस्था के चलते राधेश्याम भी चाहते हैं कि पार्टी रमेश को उम्मीदवार बनाए।






बागी हो जाएं तो क्या हैरानी
अनूपगढ़, संगरिया, भादरा और पीलीबंगा की जनता भी मौजूदा भाजपा विधायकों से खुश नहीं है। उप चुनाव के नतीजों के बाद बदले परिदृश्य मेें इन विधायकों को टिकट मिलेगा, ऐसा कह पाना संभव नहीं है। अगर पार्टी मौजूदा विधायकों और मंत्रियों का टिकट काट कर उनके परिवार में किसी को आगे नहीं करती है तो ये नेता निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदान में आ डटें तो किसी को हैरानी नहीं होगी। पिछले चुनाव में निहालचंद मेघवाल और डॉ. रामप्रताप ने बागी तेवर दिखा ही दिए थे।


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